गम को कम करने की शायद
मुफीद जगह है चाय खाना,
जहाँ लेन-देन के मामले तय होते हैं,
बनती चाय महज बहाना.
चाय की चुस्की लेकर अटका कार्य ,
पुन: सरकने लगता है.
टेबुल पर टहलने लगता है.
नफरत,वियोग की कडवाहट और मिठास
जब आपस में घुल मिल जाते हैं,
चुस्की की मधुर ध्वनि सुन
हम खुद में खो जाते हैं.
चाय कभी फैशन जरूर थी,
बन गयी आज हमारी जरूरत,
हाकिम हो या फिर चपरासी,
मुंह अँधेरे,बिछावन पर ही
अब चाय परोसी जाती है,
पतिव्रता भी पति देवता को,
चाय से ही रिझाती है.
आधुनिकता की पहचान यही है,
घर-घर में यह मीठा जहर,
इसके बिना हम असभ्य कहलाते,
और जीना सचमुच है दूभर.
--पी० बिहारी ‘बेधड़क’,अधिवक्ता,मधेपुरा
चाय
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
May 08, 2011
Rating:

वाह ..चाय ने बहुत कुछ कह दिया ..सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteचाय की चुस्की लेकर अटका कार्य ,
ReplyDeleteपुन: सरकने लगता है.
सुस्त पड़ा फ़ाइल फिर एक बार ,
टेबुल पर टहलने लगता है.
chay ki yah ada badi nirali hoti hai
क्या बात है ...
ReplyDeleteआज सुबह ही मैंने भी चाय पर लिखा ... मगर बिलकुल इससे उलट !
chay per itani achchi chaya ki keemat batati hui bahut sunder rachanaa.badhaai aapko.
ReplyDeleteplease mere blog per bhi najaren inayat kijiye,mujhe achcha lagega.thnks
really a tasty tasty chai!
ReplyDeleteसच कहा है हमारे जीवन से चाय निकल जाए तो कुछ नही बचेगा ... चाय की लाजवाब महिमा ...
ReplyDeleteगम को कम करने की शायद
ReplyDeleteमुफीद जगह है चाय खाना,
जहाँ लेन-देन के मामले तय होते हैं,
बनती चाय महज बहाना.बहुत खूबसूरत कविता. बहुत- बहुत बधाई \
आपकी कविता चाय के कप में तूफ़ान है.....
ReplyDeleteयाद आया कि काका हाथरसी ने भी चाय पर बड़ी शानदार कविता लिखी थी