मुख्यमंत्री जी,मेरी बेटी को मरने की इजाजत दीजिए.

माँ बनना खुद के लिए एक बड़ी ही खास अनुभूति होती है.माँ कहलाकर हर औरत खुद को गौरवान्वित महसूस करती है.


लेकिन यदि कलेजे के टुकड़े के लिए इच्छामृत्यु की इजाजत माँगी जाय तो उस विषम परिस्थिति को शब्दों में बयां  करना मुश्किल होगा.ऐसा ही कुछ हुआ है पूर्णियां के गुलाबबाग निवासी देशबंधु राय और रंजीता राय के साथ.

      दरअसल देशबंधु राय और रंजीता राय की बेटी साक्षी पिछले दस वर्षों से मेनिन्जाइटिस की शिकार है.अपनी बेटी की इलाज के लिए माँ-बाप ने हरसंभव दवा-दारू की और हर उस भगवान की चौखट पर मन्नत मांगी जहाँ से कुछ उम्मीद की जा सकती थी.भगवान
के दर से तो निराशा मिली ही,तथाकथित सभ्य  समाज के भी दरवाजे बंद रहे और किसी ने कोई मदद नही की.परिणाम यह हुआ की साक्षी के इलाज में घर की जमा-पूंजी भी खत्म हो गयी और साक्षी जिन्दा लाश की तरह दस वर्षों से पड़ी शून्य को निहारते रहती है.

         इलाज कराते-कराते थक चुकी रंजीता ने सबसे पहले २००९ में पूर्णियां के तत्कालीन डीएम से मदद की गुहार लगाई.इन्तजार में आँखें पत्र गयी लेकिन न कोई खत आया न कोई खबर आई.दुबारा ३ फरवरी २०११ को रंजीता राय ने डीएम के जनता दरबार में गुहार लगाई लेकिन ढाई महीने बीतने के बाद भी नतीजा सिफार ही निकला.अंतत: रंजीता राय ने बिहार के मुख्यमंत्री के नाम एक चिट्ठी लिखी कि उसकी बेटी की इलाज की व्यवस्था अगर नहीं हो सकती है तो उसे इच्छामृत्यु की इजाजत दे दी जाय.

       साक्षी के पिता देशबंधु राय पेशे से वकील हैं और भलीभांति जानते हैं कि इस देश में इच्छामृत्यु की इजाजत नही है.बेल्जियम, नीदरलैंड, स्विटजरलैंड तथा अमेरिका में इच्छामृत्यु को मान्यता है लेकिन वहाँ भी बच्चों की इच्छामृत्यु गैरकानूनी है. हाल के दिनों में इच्छामृत्यु प्रकरण तब सुर्ख़ियों में आया जब मुम्बई की ६० वर्षीया नर्स अरूणा शानवाज जो पिछले ३७ वर्षों से बलात्कार के बाद बेहोशी की हालत में है, की इच्छामृत्यु की माग उठी थी,पर सुप्रीम कोर्ट ने उसे भी इजाजत नही दी.
(पूर्णियां से लौटकर पंकज भारतीय/१५ अप्रैल २०११ )
मुख्यमंत्री जी,मेरी बेटी को मरने की इजाजत दीजिए. मुख्यमंत्री जी,मेरी बेटी को मरने की इजाजत दीजिए. Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on April 15, 2011 Rating: 5

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