
भले ही कोरोना संकट के बीच रोजगार की समस्या और समाधान को लेकर जिला प्रशासन एवं राज्य सरकार द्वारा मनरेगा योजना को वरदान बताया जा रहा है लेकिन मधेपुरा में मनरेगा योजना सिर्फ लूट की योजना बन कर रह गयी है.
इतना ही नहीं जिले में अधिकारी और पंचायत जनप्रतिनिधियों के लिए दुधारू गाय बनी हुई है.
दरअसल पंचायतों में चल रही महात्मा गाँधी रोजगार गारंटी योजना में जिन्दा लोगों को काम नहीं मिल पा रहा है और मुर्दे यानी मृत लोगों को मिल रहा है रोजगार.
जी हाँ जिले में मुर्दे मनरेगा योजनाओं में बनाते हैं अपनी हाजिरी और मुर्दे के नाम पर होती है मोटी रकम की फर्जी निकासी. हालाँकि इस मामले को लेकर डीएम नवदीप शुक्ला ने इसकी गंभीरता को देखते हुए उच्च स्तरीय जांच कर कार्रवाई का दे रहे हैं हवाला.
मधेपुरा जिले के आलमनगर, उदाकिशुनगंज, कुमारखंड, सिंहेश्वर और मधेपुरा सदर प्रखंड में केन्द्र सरकार की महत्पूर्ण मनरेगा योजनाओं में भारी पैमाने पर अनियमितता के आरोप सामने आ रहे हैं. अगर हम सरकारी आंकड़ों की माने तो उदाकिशुनगंज में 52 लाख, आलमनगर में 38 लाख और मधेपुरा सदर प्रखंड में 31 लाख रुपये मजदूरों के खाते में नहीं जा रहे हैं . लोग आरोप लगाते हैं कि जिले में बड़े पैमाने पर फर्जी जॉब कार्ड के आधार पर पंचायतों में लोगों को काम करता दिखाया जाता है. जिस वजह से ऐसी परेशानी आ रही है.
वहीं चौंकाने वाली धरातलीय हकीकत यह है कि जिले के उदाकिशुनगंज प्रखंड अंतर्गत पिपरा करोती पंचायत स्थित एक दर्जन से अधिक मृत लोगों के नाम से जॉब कार्ड बना है और मुर्दे खुद उपस्थिति पंजी में हाजिरी लगाते हैं और इनके नाम पर फर्जी तरीके से मोटी रकम की निकासी कर मुखिया और पीआरएस अपनी चांदी काट रहे हैं. गाँव में कई लोगों का आरोप है कि उनके यहाँ जिन्दे को मनरेगा में काम नहीं मिलता है और मुर्दे काम करते हैं और उनके नाम पर हाजिरी भी लगती है तथा मुखिया और मनरेगा अधिकारी के मिली-भगत से इन मृत लोगों के नाम पर फर्जी तरीके से मजदूरी की निकासी भी होती है.
वहीं इस मामले को लेकर मुर्दे के नाम पर फर्जी तरके से पैसा निकासी की बात को आरोपी मुखिया पति छठू पौदार इसे ग्रामीण राजनीत का हिस्सा बताते हैं और उनकी दलील है कि इस सम्बन्ध में जानकारी मनरेगा से जुड़े कर्मी और अधिकारी ही दे पाएँगे.
जिले में जारी मनरेगा घोटाले और सरकारी रकम की लूट को लेकर अब विपक्ष भी सरकार पर हमलावर है. राजद के प्रदेश महासचिव ई. प्रभाष कुमार इसे सत्ता संरक्षण में जारी लूट बताते हैं. साथ ही उनका कहना है कि मनरेगा से सम्बंधित गड़बड़ी की शिकायत यदि ऊँचे स्तर पर भी की जाती है तो अधिकारी जाँच के नाम पर इसे ठन्डे बस्ते में डाल देते हैं.
बहरहाल मधेपुरा डीएम इस संबंध में मामले को गंभीर बताते हुए उच्च स्तरीय जाँच कमिटी बना कर योजनाओं की जाँच करवाकर विधिसम्मत कार्रवाई का भरोसा दिला रहे हैं. अब देखना दिलचस्प होगा कि आखिर कब तक उच्चस्तरीय जाँच होती है और घोटालेबाजों के खिलाफ कार्रवाई होती है. बहरहाल जिले में केन्द्रीय महत्वपूर्ण योजना मनरेगा अधिकारी और पंचायत जनप्रतिनिधियों की दुधारू गाय बन कर रह गयी है.

जिन्दा लोग हैं बेरोजगार, मनरेगा में मुर्दे लगा रहे हैं हाजिरी
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
July 28, 2020
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