ये तेरा ‘बंद’ ये मेरा ‘बंद’, ये ‘बंद’ बहुत हसीन है...

बंद. बिहार बंद, भारत बंद. महंगाई बढ़ रही है, बंद. अपराध बढ़ रहे हैं, बंद. सरकार अपने वादे से मुकर गई, बंद. दुकानें बंद, रेल बंद, बस बंद. समस्या सुलझ गई. बंद के बाद जब सारी चीजें खुलीं तो चारों तरफ अच्छे दिन आ गए.
    अब आपको बंद कैसा लगता है ये तो आप जानें. हाँ, अगर आप किसी राजनीतिक पार्टी के कट्टर समर्थक या विरोधी हैं तो आपकी राय का कोई मतलब नहीं रह जाता है. अपनी पार्टी का बंद आपके लिए पूरी तरह जायज, विरोधी के घोर नाजायज.
    आइये वास्तविकता के परिपेक्ष्य में एक बार बंद को समझने के लिए इन बातों पर गौर कीजिए.

बंद क्या है?: बंद विरोधी पार्टी के विरोध में आम और भोली जनता तक अपनी बात पहुंचाने का एक जरिया है ताकि अपने स्वार्थ की रोटी सेंक सकें और राजनीति की दाल गला सकें. रोटी सेंकने और दाल गलने के बाद नेताजी इसे सत्ता सुख की थाली में परोस कर भोग लगाते हुए अमूमन पांच साल मजे मार सकते हैं.

बंद के कितने प्रकार?: बंद के तरीके पर यदि गौर किये जाएँ तो आपको अलग-अलग तरीके नजर आ सकते हैं. तरीकों के आधार पर चलिए हम इसे दो नाम देकर इसका वर्गीकरण करते हैं. बंद के दो प्रकार हैं, 1. लोकतांत्रिक बंद व 2. अलोकतांत्रिक बंद.
कैसे समझें कौन सा बंद लोकतांत्रिक है और कौन सा अलोकतांत्रिक?
    बंद, धरना, प्रदर्शन, नारेबाजी आदि शायद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में आ सकते हैं जो हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है. शायद हमने इसलिए लगाया है कि कई लोग माँ-बहन की गाली समेत नाना प्रकार के घटिये नारे को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मानते हैं, भगवान् उनसे बचाए. पर किसी मुद्दे पर यदि कोई दल या व्यक्ति समूह बंद का आह्वान करता है और उसके आश्वासन पर यदि स्वत:स्फूर्त बंद को समर्थन मिलने लगते हैं या फिर एक्का-दुक्का व्यवसायी या अन्य दुकाने आदि बंद नहीं कर रहा हो और बंद समर्थक अपनी मांगों को जायज कहते उनसे बंद को समर्थन देने की विनती करता हो तो आप ऐसे बंद को लोकतांत्रिक बंद कह सकते हैं.
    और यदि आह्वान के बाद या तो अधिकाँश व्यवसायी अपनी प्रतिष्ठानों को बंद नहीं करते हैं और बंद समर्थक यदि लाठी-डंडे दिखाकर बंद करवाते हैं तो ये अलोकतांत्रिक बंद की श्रेणी में होगा. या फिर स्वत:स्फूर्त बंद भी दिख रहा हो और ये पार्टी के गुंडों की दहशत के कारण हो तो भी इसे इसी श्रेणी में रखा जाएगा.
अलोकतांत्रिक बंद सफल होकर भी असफल होता है और यदि बंद के दौरान आम लोगों को बड़ी परेशानी का सामना करना पड़े तो बंद समर्थकों के लिए ये विचार करने का समय है कि आखिर बंद किसके हित में किया गया. कभी-कभी बंद के दौरान बीमार या एम्बुलेंस तक को रोक कर किसी नागरिक को मौत के मुंह में धकेल दिया जाय तो उस बंद को अलोकतांत्रिक, आपराधिक और ‘हत्यारों का बंद’ कहा जाना चाहिए.

अंत में, बंद अपनी जगह है, सफल होना या असफल होना अपनी जगह, पर गरीब, बीमार और लाचार की सुविधा का ध्यान तो रखें ही क्योंकि उस परिस्थिति में कहीं आपके अपने भी हो सकते हैं. पर अधिकाँश बंद समर्थकों को दूसरों के दुःख से कोई लेना-देना नहीं होता है. चंद नौजवानों के लिए तो बंद एक मनोरंजन की तरह होता है और ये चेहरे किसी भी पार्टी के बंद में उछलते-कूदते आपको दिख सकते हैं, क्योंकि इन भाड़े के टट्टुओं के लिए ‘ये तेरा बंद, ये मेरा बंद, ये बंद बहुत हसीन है....’
(लेखक के निजी विचार हैं.)
ये तेरा ‘बंद’ ये मेरा ‘बंद’, ये ‘बंद’ बहुत हसीन है... ये तेरा ‘बंद’ ये मेरा ‘बंद’, ये ‘बंद’ बहुत हसीन है... Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on February 28, 2016 Rating: 5

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