याकूब मेमन और फांसी, बीच में खड़ी राजनीति

बम्बई (आज का मुम्बई), 12 मार्च 1993 रोज शुक्रवार, दोपहर 1 बजकर 30 मिनट पर बम्बई (मुम्बई) के जावेरी बाजार में एक बम धमाका हुआ फिर एक के बाद एक विभिन्न जगहों पर लगातार 12 और धमाके हुए. कुल मिलाकर 13 धमाके हुए जिसमे 258 निर्दोष लोग मारे गए और 700 से अधिक लोग घायल. घटना में कई आरोपी बनाये गए उनमें से एक गिरफ्तार आरोपी याकूब मेमन को भारतीय न्याय प्रणाली से फांसी की सजा मिली. सजा घटना की गंभीरता के हिसाब से दिया गया. हाँ क़ानूनी प्रक्रिया के कारण समय ज्यादा लगा. सजा की तारीख मुकर्रर की गयी 30 जुलाई 2015. (हालाँकि अभी कुछ और दया याचिका पर सुनवाई शेष है.) अब कुछ लोग इस फांसी का विरोध कर रहे हैं जो तथाकथित भारतीय है.
अच्छी बात है, भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी सभी को समान रूप से दी गयी है इसलिए अपने-अपने विचार जरूर रखने  चाहिए और फांसी जैसे मुद्दे पर तो अवश्य ही, मगर टीवी पर देख रहा था किसी ने याकूब को मुसलमान होने के कारण फांसी देने की बात कही तो किसी ने इसके इसके बदले दूसरे आरोपी को फांसी देने की बात कही. किसी ने सजा में कटौती करने की बात कही तो किसी ने राजीव गांधी और बेअंत सिंह के कातिल को फांसी क्यों नहीं हुई इसलिए याकूब को भी फांसी नहीं देने की बात कही, और भी बहुत सारी प्रतिक्रियाएं पूरे देश भर से आने लगी. सभी के अपने-अपने तर्क थे याकूब मेमन की फांसी पर.

         हमने जो ऊपर मरने वालों और घायलों की संख्या बताई है वो सरकारी आंकड़ा है जबकि हकीकत इससे कहीं ज्यादा है. आईये अब थोड़ा पीछे चलते है सन् 1993 के घटना की तारीख में. 27 मार्च 1993 को रमेश पाल की बहन की शादी थी. बिहार आने से पहले शादी के लिए जरुरी सामान खरीदने के लिए जावेरी बाज़ार में अपने मित्र से पैसे लेने गया था लौटने के क्रम में धमाके में मारा गया. रमेश पाल मर गया बात तो यही खत्म हो गयी लेकिन आज कोई जाकर रमेश की बहन या फिर उसकी बूढ़ी माँ से पूछिये क्या वाकई बात ख़त्म हो गई?   ऐसे हीं..  विवेक बम्बई के एक होटल में नौकरी  करता है, यूपी से बम्बई अपने माँ बाप को घुमाने के लिए बुलाया था 11 मार्च को ही वो लोग बम्बई आये थे और 12 मार्च को बाप-बेटा एक बूढ़ी औरत को अकेला छोड़कर धमाके के साथ आसमान में उड़ गए. बात शायद यहाँ भी ख़त्म हो गई, मगर विवेक की बूढ़ी माँ और  छोटी बहन (अगर आज जिन्दा हो तो ) से पूछिये क्या वाकई बात ख़त्म हो गयीये तो सिर्फ दो लोगों की बाते हमने कही, ऐसे तीन सौ से अधिक निर्दोष लोग मारे गए थे और उनके परिवार आज भी किसी ना किसी रूप में अपने प्यारों को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए व्याकुल हैं. मरणोपरांत उनके परिजन इंसाफ की कार्यवाही देखने के लिए अपने देवता और  देशवासियों के तरफ नजरें लगाये होंगे. मुझे नहीं लगता है कि इस धमाके में मारे गए और घायल लोगों ने इन आरोपियों को कभी कोई नुकसान पहुँचाया होगा. फिर इतनी नफरत और अकाल मौत इनलोगों को क्यों मिला? और आज जब इनके दोषियों को फांसी की सजा मिलती है तो हमारे अपने देशवासी ही इन  शैतानों के पक्ष लिए खड़े हो जाते हैं. शर्म आनी चाहिए की हम किसके पैरवीकार हैं! अगर याकूब मेमन जैसों के लिए दया दिखानी है या फिर फांसी का विरोध करना है तो एक बार उन मारे गए लोगों के घरों में झाँक कर आना चाहिए था, धमाके में विकलांग और अपंग हो चुके लोगों के रोजी-रोटी का जुगाड़ कर आना चाहिए था, मगर नहीं यहाँ सस्ती लोकप्रियता और सुर्खियां चाहिए इसके लिए चाहे मानव भावना, देशप्रेम भावना हाशिये पर ही क्यों ना चले जाए. कभी नहीं भूलना चाहिए की याकूब मेमन, दाऊद इब्राहिम और टाइगर मेमन पूरे देश को दहला देने वाली 1993 मुम्बई बम धमाका के मुख्य साजिशकर्ता था.
याकूब मेमन और फांसी, बीच में खड़ी राजनीति याकूब मेमन और फांसी, बीच में खड़ी राजनीति Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on July 27, 2015 Rating: 5

3 comments:

  1. Ji haa Bhartiya samvidhan me vicharon ke abhivyakti ki aajadi sabon ko hai , mujhe bhi......mai kahta hun jisne bhi Yakub menan ki fansi rokne ki baat ki visfot me barbad hue logo ki fikr jise nahi usse bhi fansi dena chahiye .

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  2. yakub meman ko fasi nahi mumbai ke jaberi bazar ke chaurahe pe bandh kar unke parijan (jo dhamake me mare gaye)ko bulakar pathar se marwana dena chahiye.sath hi sabse pahle desh ke gaddhar ko desh se bahar karna chahiye. jo memen par daya kar rahe h.

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  3. जिन्हें भी याकूब की फांसी से दुःख हो रहा है , वो कृपया पंखे से लटक कर याकूब को सच्ची श्रधांजलि दे सकते हैं..!!

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