|वि० सं०|26 दिसंबर 2013|
जिले में ठंढ बढते ही चोरियां भी अक्सर बढ़ जाती हैं.
चोरियों से सबसे अधिक प्रभावित व्यापारी वर्ग होते हैं, इसमें शायद की किसी को शक
हो, क्योंकि सड़कों के इर्द-गिर्द के दुकान चोरों के सॉफ्ट टारगेट होते हैं.
अक्सर
देखा जाता है कि चोरी की घटनाओं के लिए लोग झट से पुलिस को जिम्मेवार ठहरा कर सड़क
जाम आदि करने लगते हैं. पर इस बात को समझने की आवश्यकता है कि खुद अर्जित की हुई
संपत्ति की सुरक्षा का सबसे पहला भार संपत्ति मालिक पर होता है. व्यापारी चाहें तो
मामूली दो-चार सौ रूपये प्रति व्यक्ति प्रत्येक महीना चंदा कर रात्रि प्रहरी अपने खर्च पर भी रख सकते हैं. ख़ाक बचाने के लिए लाख
गंवाने के बाद शोर मचाने से शायद ही कुछ हासिल हो.
कुछ ऐसा
ही विचार गत 17 दिसंबर को मधेपुरा के नए एसपी आनंद कुमार सिंह ने मधेपुरा के
व्यापारियों के साथ बैठक में रखा. व्यापार संघ के सदस्यों ने जब मधेपुरा के मुख्य
मार्ग सहित हर मुहल्ला में पुलिस गश्ती/ चौकीदारों की प्रतिनियुक्ति की मांग की तो
पुलिस अधीक्षक ने थानाध्यक्ष मधेपुरा को आदेश दिया कि हर मुहल्ले में पुलिस गश्ती
की व्यवस्था करें, साथ ही चौकीदारों को भी रात्रि प्रहरी के रूप में प्रतिनियुक्त
करें.
एसपी ने
व्यापार संघ के सदस्यों को भी यह सुझाव दिया कि वे अपने स्तर से भी नेपाली प्रहरी
तैनात करें, साथ ही दुकान के आगे समुचित रौशनी का प्रबंध करें तथा अपने स्तर से भी
सचेत रहें. एसपी ने व्यापारियों को यह भी सुझाव दिया कि वे अपने स्तर से जगह-जगह
अलाव एवं चाय की व्यवस्था करें, जिससे पुलिस पदाधिकारी एवं कर्मी को ठंढ में राहत
मिल सके और अपराध पर अंकुश लगाया जा सके.
शिकायत
और सुझाव अपनी जगह है पर एक सच ये भी है कि ‘चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय’ की कहावत को अपने अंत:करण में उतार लेने वाले कई
व्यापारियों को पुलिस अधीक्षक का सुझाव बिलकुल अच्छा नहीं लगा होगा.
बढ़ती चोरियां: लाख बचाने के लिए खाक खर्च करने की जरूरत ?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 26, 2013
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