मन से सलाम कर रहा हूं हुस्न आरा को ।
धर्म के झूठ-फरेब से दूर जा चुकी हुस्न आरा ने
बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा में कीर्तिमान रचा है । सन् 2008 में परिवार से विद्रोह कर हिन्दू साथी राजन झा (फेसबुक
के मेरे साथी) से विवाह रचाने वाली हुस्न आरा सफल अभ्यर्थियों
में अकेली मुस्लिम महिला हैं । हुस्न आरा
को मेधा सूची में 407 व महिलाओं में 51 वां स्थान मिला है । अब वह बीडीओ साहब कहलायेंगी ।
जीवनसंगी राजन हुस्नआरा की सफलता को कड़ी मेहनत का फल बता रहे हैं । थोड़ी देर पहले बात हुई । कहा,हुस्न आरा ने दुनिया के सारे ताने सुने । परिवार को छोड़ा । हमदोनों पटना कालेज में 2000 में मिले थे । सामने रमना रोड के इफ्तेखार अहमद के छह संतानों में सबसे बड़ी हुस्न आरा ने प्यार को जिंदा रखने को सभी कुर्बानियां दीं । पेशे से किताब कारोबारी इफ्तेखार अहमद बेटी के फैसले के सख्त खिलाफ थे । फिर भी सितंबर,2008 में दोनों ने स्पेशल मैरेज ऐक्ट के तहत शादी कर ली ।
हुस्न आरा के पति बने किसान के बेटे राजन झा मूल रुप से मधुबनी जिले के झंझारपुर के तरडीहा गांव के रहने वाले हैं । प्रारंभ में राजन के परिवार ने भी हुस्न आरा को कबूल नहीं किया,लेकिन बाद में मंजूर हो गई । आना-जाना हो गया । आज अपनी सफलता का श्रेय वह अपने ससुराल वालों को भी दे रही हैं । लेकिन इतने वर्षों के बाद भी हुस्न आरा को अपने माता-पिता के घर में इंट्री नहीं मिली है ।
शादी के बाद राजन व हुस्न आरा को पटना छोड़ना पड़ा । दोनों दिल्ली चले गये । चुनौतियों से दोनों नहीं हारे । हुस्न आरा ने सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरु कर दी । उधर राजन जेएनयू में भर्ती हो गये । दोनों जेएनयू के छात्रावास में ही रहने लगे । अलग-अलग पर्व त्योहारों को लेकर कोई झगड़ा नहीं,ज्यादा मनाते भी नहीं हैं । राजन ने पीएचडी के लिए शोध के साथ-साथ राजनीति में कदम रखा । हुस्न आरा शिद्दत से अपने मिशन में जुटी रही । बीपीएससी की सफलता के बाद भी हुस्न आरा की नजर सिविल सर्विसेज पर है । फिर से लख-लख बधाई मिसाल बनी हुस्न आरा को । साथ देने को राजन भी नाज करने के काबिल हैं ।
जीवनसंगी राजन हुस्नआरा की सफलता को कड़ी मेहनत का फल बता रहे हैं । थोड़ी देर पहले बात हुई । कहा,हुस्न आरा ने दुनिया के सारे ताने सुने । परिवार को छोड़ा । हमदोनों पटना कालेज में 2000 में मिले थे । सामने रमना रोड के इफ्तेखार अहमद के छह संतानों में सबसे बड़ी हुस्न आरा ने प्यार को जिंदा रखने को सभी कुर्बानियां दीं । पेशे से किताब कारोबारी इफ्तेखार अहमद बेटी के फैसले के सख्त खिलाफ थे । फिर भी सितंबर,2008 में दोनों ने स्पेशल मैरेज ऐक्ट के तहत शादी कर ली ।
हुस्न आरा के पति बने किसान के बेटे राजन झा मूल रुप से मधुबनी जिले के झंझारपुर के तरडीहा गांव के रहने वाले हैं । प्रारंभ में राजन के परिवार ने भी हुस्न आरा को कबूल नहीं किया,लेकिन बाद में मंजूर हो गई । आना-जाना हो गया । आज अपनी सफलता का श्रेय वह अपने ससुराल वालों को भी दे रही हैं । लेकिन इतने वर्षों के बाद भी हुस्न आरा को अपने माता-पिता के घर में इंट्री नहीं मिली है ।
शादी के बाद राजन व हुस्न आरा को पटना छोड़ना पड़ा । दोनों दिल्ली चले गये । चुनौतियों से दोनों नहीं हारे । हुस्न आरा ने सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरु कर दी । उधर राजन जेएनयू में भर्ती हो गये । दोनों जेएनयू के छात्रावास में ही रहने लगे । अलग-अलग पर्व त्योहारों को लेकर कोई झगड़ा नहीं,ज्यादा मनाते भी नहीं हैं । राजन ने पीएचडी के लिए शोध के साथ-साथ राजनीति में कदम रखा । हुस्न आरा शिद्दत से अपने मिशन में जुटी रही । बीपीएससी की सफलता के बाद भी हुस्न आरा की नजर सिविल सर्विसेज पर है । फिर से लख-लख बधाई मिसाल बनी हुस्न आरा को । साथ देने को राजन भी नाज करने के काबिल हैं ।
ज्ञानेश्वर वात्सायन, पटना
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
हुस्न आरा को सलाम
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
August 19, 2013
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