देश की शीर्ष जांच एजेंसी इनदिनों आलोचनाओं के
केन्द्र बिंदु में हैं. इसकी तुलना पिंजरे में बंद तोते से की जा रही है जिसे जो
सिखाया जाता है वही बोलता है. फर्क सिर्फ इतना है कि तोता के किस्मत में पिंजरे के
अंदर जिंदगी बितानी है जबकि सीबीआई अधिकारी पिंजरे से बाहर निकलने पर यूपीएससी का
सदस्य, इंटरस्टेट काउन्सिल का सदस्य एयर गवर्नर तक के पद पर जाते हैं. तर्क यह
दिया दिया जाता है कि उनके अनुभवों का लाभ लेने के लिए उन्हें ये पद दिए गए हैं.
एक महिला कांग्रेसी नेत्री के इस बयान में तब दम होता जब वह शीर्ष जांच एजेंसी के
उपलब्धियों को गिनाते. उपलब्धियों को न देख आम लोग सीबीआई का अपने स्तर से नया
नामांकरण शुरू कर दिए हैं. उनका मत है कि कोई मामला ठंढे बस्ते में डालना हो तो
सीबीआई को सौंपना श्र्येस्कर समझा जाता है. सीबीआई को मामला सौंपने का मतलब है, “क्लोज केस बिफोर इन्वेस्टिगेशन”. सीबीआई भी इस नए नाम को
चरितार्थ करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है.
जब
शीर्ष जांच एजेंसी का यह हाल है तो अन्य जांच एजेंसी की स्थिति क्या हो सकती है यह
भी विचारणीय विषय है. कोल ब्लॉक आबंटन के मामले में जांच को लेकर सीबीआई की हो रही
किरकिरी को लेकर विपक्षी नेताओं में काफी प्रतिक्रिया है. एक शीर्ष नेता की
प्रतिक्रिया कुछ अधिक ही गौरतलब है. उन्होंने अपने चिर-परिचित अंदाज में कह दिया
कि “कल कोई भी मंत्री हो
सकता है”. स्पष्ट संकेत जियो और
जीने दो की नीति पर था. मतलब साफ़ है कि खादी पर लगे दाग को नजरअंदाज किया जाय
जिसकी ज्यादा सम्भावना अब दिखनी लगी है. क्योंकि लालबहादुर शास्त्री सरीखे
कांग्रेसी नेताओं का जमाना लद गया है. भ्रष्टाचार ही राजनीति का पतवार बन चुका है.
कर्नाटक के चुनाव नतीजे को इसी आधार पर भुनाया जा सकता है. जनता बेबस है कि दोनों
तरफ सिर्फ खादी ही खादी है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
*देवनारायण साहा
वरिष्ठ पत्रकार
मधेपुरा.
सीबीआई बोले तो “क्लोज केस बिफोर इन्वेस्टिगेशन”
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
May 09, 2013
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