
पर एक
बात कहूँ, बुरा मत मानियेगा. और यदि मान भी गए तो ठेंगे से. मेरे हिसाब से आप
निहायत घटिया किस्म के आदमी हैं. बेटे को पढ़ा-लिखा कर लायक क्या बना दिया, आपके
सिद्धांत कहीं घास चरने चले गए. कई बेटियों के अभागे पिता जब बेटी का रिश्ता आपके
बेटे के लिए लेकर आपके पास आये तो आप दहेज मांगने लगे. क्यूं ???
क्या
बेटी के पिता ने जो धन अर्जन किया वो आपकी बपौती संपत्ति है ? क्या उसे आप उनके मन
से खर्च करने की आजादी दे देंगे तो वो अपने कलेजे के टुकड़े को कुछ नहीं देंगे ?
यदि नहीं भी देते हैं तो क्या पराये घर की उस बेटी को जो अब आपके घर की शोभा है,
को खिलाने की औकात नहीं है. लाचार और मजबूर बाप को दरवाजे से वापस इसलिए कर देते
हैं कि वो आपके ‘डिमांड’ पर खरा नहीं उतरा. बेशर्मी से
बाद में कहते हैं- लड़की तो अच्छी थी, पर बाप पैसा ही
नहीं निकाला. और बगल में बैठी
आपकी वही मैडम जिसकी शादी में भी उसके बाप को पापड़ बेलने पड़े थे, उस समय की बात को
भूलकर आपके घटिया विचारों में बहकर कहती है- सब फक्करबा को हमरे बेटा दिखता है ?

माफ
कीजियेगा. आप खुद की पीठ थपथपाते रहिये, पर आपको अभी काफी आत्ममंथन करने की
आवश्यकता है. अगर ईमानदारी से आप अपने विचारों को ‘जस्टिफाई’ करें तो आप निहायत गिरे हुए टाइप के इंसान हैं.
आत्ममंथन
कीजिए और इस गंदी दहेज प्रथा को भी अपने घर से निकालिए, वर्ना साफ़ कपड़े पहन कर
सिद्धांत और आदर्श की बात करना आपको शोभा नहीं देता. इन शब्दों पर भी
जरा सोचिये—
“Every dowry demand is a DEATH THREAT, Don’t marry! Walk away!”
रिंकू सिंह
प्रबंध संपादक
दहेज की बात पर कहाँ चले जाते हैं आपके आदर्श और सिद्धांत ???
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
February 28, 2013
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