दीप प्रज्ज्वलित करते अधिकारी |
संवाददाता/08 जुलाई 2012
जिला मुख्यालय स्थित कला भवन में बढ़ती घरेलू हिंसा पर रोक के उद्येश्य से बनाये गए “घरेलू हिंसा अधिनियम 2005” पर एकदिवसीय जिला स्तरीय उन्मुखीकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसका उदघाटन मधेपुरा के जिला एवं सत्र न्यायाधीश मो० अकरम रिजवी तथा जिलाधिकारी श्री उपेन्द्र कुमार ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया.
इस अवसर पर अपने भाषण में जिलाधिकारी उपेन्द्र कुमार ने कहा महिला हेल्पलाइन के द्वारा आयोजित यह कार्यशाला काफी सराहनीय कदम है.उन्होंने कहा कि आज इस कार्यक्रम में जिस तरह के विद्वान तथा विभिन्न क्षेत्रों से लोग भाग लेने उपस्थित हुए हैं उसे देखते हुए मैं इसे ‘ऑगस्टस असेम्ब्लेंस’ कहूँगा.उहोने कहा कि घरेलू हिंसा के 90 फीसदी मामले घर की चहारदीवारी के अंदर ही रह जाते हैं.पीड़ित महिला की आवाज बाहर नही आ पाती है,वो दर्द भोगती रह जाती है.ऐसे में इस अधिनियम को अमली जामा पहनाने की आवश्यकता है.
जिला एवं सत्र न्यायाधीश मो० अकरम रिजवी ने कहा कि चंद वजह या जज्बात की वजह से जिंदगी को समाप्त नहीं करना चाहिए.उन्होंने महिलाओं को अपने अधिकार को जानने की सलाह दी पर साथ भी ये भी नसीहत दी कि अधिकार का प्रयोग इतना ज्यादा मत कीजिए कि आपकी अपनी जिंदगी ही बर्बाद हो जाए.
वहीं अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश डा० रामलखन सिंह यादव ने इस अधिनियम को काफी कठोर बताते हुए कहा कि महिला नहीं चाहेगी तो आपको खाना बनाकर नहीं देगी.आपको अपना काम खुद करना होगा. इसलिए पुरुष वर्ग को सावधान हो जाना चाहिए.इक्कीसवीं सदी महिलाओं की सदी है.उन्होंने आज की महिलाओं की स्थिति को बताते हुए कहा कि आज भी दुनियां कि पचास प्रतिशत महिलाएं निरक्षर हैं और सत्तर प्रतिशत महिलाओं के पास अपना बैंक खाता नहीं है.महिलाओं को समान अधिकार दिलाने के लिए ही “घरेलू हिंसा अधिनियम 2005” बनाया गया है और 20 अक्टूबर 2006 को पूरे देश में लागू कर दिया.मधेपुरा के परिवार न्यायाधीश प्रदीप कुमार मल्लिक ने कहा कि इस अधिनियम को महिलाओं को ढाल के रूप में लेना चाहिए न कि तलवार के रूप में.
पटना उच्च न्यायालय की अधिवक्ता श्रीमती श्रुति सिंह ने महिला हेल्पलाइन के द्वारा इस कार्यशाला कि काफी सराहना की तथा महिलाओं को उनके अधिकारों के लिए इस अधिनियम के प्रयोग की आवश्यकता बताई. उन्होंने पटना में इस एक्ट के बहुत हद तक सफल होने की बात कही और कहा कि ये एक्ट पूरी तरह एक महिला को सम्मान दे सकता है न सिर्फ ससुराल में ही बल्कि मायके में भी.
अधिवक्ता श्रीमती श्रुति सिंह |
इस मौके पर एसडीपीओ द्वारिका पाल,जिला प्रोग्राम पदाधिकारी गुलाम मुस्तफा अंसारी आदि ने भी महिलाओं की वर्तमान स्थिति और उनके अधिकारों के बारे में प्रकाश डाला.
जिले के इस तरह के इस पहले कार्यशाला में न्यायाधीश ए.के.झा, सीजेएम अनिल कुमार सिन्हा, डीडीसी श्रवण कुमार पंसारी, एडीएम आजीव वत्सराज सहित कई अन्य पदाधिकारी, सीडीपीओ आदि भी उपस्थित थे.कार्यक्रम महिला हेल्पलाइन की परियोजना पदाधिकारी पायल प्रकाश के द्वारा आयोजित किया गया था.
“पुरुष वर्ग सावधान! इक्कीसवीं सदी महिलाओं की है”
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
July 08, 2012
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महिलाओँ के हित के लीए ये अछ्छा कानुन है महिलाएं अपने ढाल के रुप मे ईस्तेमाल करे
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