‘बेबाकी’ और ‘हकीकत’ की दूसरी बर्षगांठ

आओ इन तारीखों में सुर्खियाँ पैदा करें,
इस जमीं की बस्तियों से, आसमां पैदा करें.
        महज दो वर्ष पूर्व कुछ ऐसे ही जज्बे के साथ विचारों की प्रसव-वेदना के बाद समाजवाद की कर्मभूमि मधेपुरा में मधेपुरा टाइम्स का जन्म हुआ.अपार सुखद अनुभूति के बीच पीड़ा क्षणभंगुर साबित हुआ. हाँ, बाल्यावस्था के पहले वर्ष जरूर महसूस हुआ कि जन्म देना आसान होता है लेकिन पालना कठिन.बावजूद यह सफर जारी रहा.
         आज मधेपुरा टाइम्स की दूसरी वर्षगाँठ पर आप सुधि पाठकों को टाइम्स परिवार की ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं.यह आपके हौसलाअफजाई का ही परिणाम था कि जब भी हम लड़खड़ाए, आपने दो कदम आगे बढ़कर अपने दामन का सहारा दिया. हम यह कतई नहीं भुला सकते कि आप सबों ने हमें अंगुली पकड़ कर न केवल चलना सिखाया बल्कि सच की राह भी दिखाई और सफेदपोशों की पहचान भी कराई.उन तमाम सहयोगी मित्रों को कोटिशः धन्यवाद जिन्होंने अपनी अमूल्य लेखनी से मधेपुरा टाइम्स का सम्मान बढ़ाया.
          तीसरा वर्ष, चुनौतियों से भरा होगा,ऐसा हम मानते हैं.खुद अपने पैरों पर खड़ा होना आसान नहीं होता है.समाज की अपेक्षाएं भी बढ़ेगी तो नकाबपोशों से चुनौतियाँ भी मिलेंगी. जयचंद और मीर जाफर की पहचान भी जरूरी होगी.इन तमाम बाधाओं के बीच शुचिता के साथ धर्म का पालन करना भी हमारी प्राथमिकता होगी.ऐसे में हम आपके निरंतर सहयोग की अपेक्षा रखते हैं.
        स्नेहीजन ! वक्त निश्चित ही करवट बदल रहा है और हालात तेजी से बदल रहे हैं.बदलते वक्त के आईने में अगर पत्रकारिता क्षेत्र को देखें तो निराशा ही मिलती है.पत्रकारिता के तेवर ढीले हो रहे हैं और कलम की लेखनी कुन्द हो रही है. निश्चय ही यह वक्त की सबसे बड़ी बिडम्बना है. प्रेस काउन्सिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू के उस बयान से हम पूरी तरह सहमत हैं कि बिहार में पत्रकारिता स्वतंत्र नहीं है.संभव है काटजू के बयान के कुछ राजनीतिक निहितार्थ भी हों, लेकिन हम उस बयान के भाव से पूरी तरह सहमत हैं कि यहाँ चमचागिरी और विज्ञापन के बोझ तले बेबाकी, स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति और सच दब कर रह गयी है और पत्रकारिता एक बाजारूपेशा बन कर रह गया है.
           नीरा राडिया टेप प्रकरण के बाद पत्रकारिता जगत से जुड़े लोगों की छवि महज दलाल की बनकर रह गयी है. पेडन्यूज की वजह से अखबारों की छवि क्या है किसी से छुपी हुई नहीं है. सनसनी परोसने के आदि हो चुके इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया की छवि दांव पर है.जिला और प्रखंड स्तर पर काम कर रहे पत्रकार बंधु समाचार और विज्ञापन के दो पाट के बीच किस तरह पिस रहे हैं यह सर्वविदित है.प्रबंधन का बढ़ता शिकंजा और जारी शोषण कस्बाई पत्रकारों को पूरी तरह दलाल बनने को बाध्य कर दिया है.जाहिर है पत्रकारिता के इस संक्रमण दौड़ से गुजरते हुए आपकी शुभकामना ही ऐसा संबल है जो हमें पत्रकारिता धर्म से विमुख नहीं होने दे रही है.
           मैं अकेला चला था जानिये मंजिल, लोग आते गए और कारवाँ बनता गया.स्पष्ट है दो वर्ष के सफर में सवा तीन लाख विजिट्स एक बड़ी उपलब्धि है.लेकिन हम मानते हैं कि सितारों से आगे भी जहाँ है. आपका विश्वास मिलता रहा तो शीघ्र ही हम साप्ताहिक अखबार और इलेक्ट्रॉनिक्स चैनल के साथ सच के कुरुक्षेत्र में दाखिल होंगे. आपसे आग्रह है कि आप हमें सच का आईना दिखाते रहें ताकि हम इस बाजार में खुद को बिकने से बचा सकें.आप सुधि पाठकों को हम विश्वास दिलाना चाहेंगे कि बेबाकी और हकीकत हमारा हथियार है और यही हमारा मूलमंत्र भी है.बिहार के १००वें स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ हम बेहतर बिहार के निर्माण में कुछ इस तरह की अपनी भागीदारी निभाना चाहते हैं-
      मैं बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूँ,
       मैं इन नजारों का अंधा तमाशबीन नहीं,
                 पुन: दूसरी वर्षगाँठ की शुभकामनाएं सहित,
                 मधेपुरा टाइम्स टीम.
‘बेबाकी’ और ‘हकीकत’ की दूसरी बर्षगांठ ‘बेबाकी’ और ‘हकीकत’ की दूसरी बर्षगांठ Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on March 21, 2012 Rating: 5

4 comments:

  1. दूसरी वर्षगाँठ की शुभकामना

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  2. Happy birthday to Madhepura Times.
    Kavita dete rahe for Ranjan kumar, Madhepura.
    ** **

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  3. A big congrats to 'Madhepura Times' and Rakesh Sir. We are glad having Madhepura Times for 2 yrs... We'll always support it..
    Waiting for any step by MT.
    A great day for all of us.. Cheer up...
    -ak

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  4. हाँ भाई, मधेपुरा टाइम्स को ढेर सारी शुभकामनाएँ.. भाई, जब लोकतंत्र में चौथे खंभे की कलई खुल चुकी हो, मीडिया पेड न्य़ूज के जरिए धन उगाही में लगा हो.., कार्पोरेट घरानो का मीडिया पर कब्जा और राज्य सत्ता के आगे मीडिया का नतमस्तक होना सर्वविदित है....इस ग्लोबल विलेज मे आप अपनी विशेष जिम्मेवारी के साथ डटे है .. हमारी अशेष मंगलकामनाएं आपके साथ है!
    और हाँ राकेश भाई, नेट पत्रकारिता उस अर्द्ध तोंदियल प्रिंट पत्रकारों के विरुद्ध एक आक्रोश भी है जो गोगल्स लगाकर किसी पान की दुकान पर दांत खोदते नजर आते हैं, थानेदार-जमादार से संबन्धों की दुहाई देकर आमलोगों पर धौंस कायम करते हैं.. यह स्मरण रखने की जरुरत है कि प्रिंट और आभासी पत्रकारिताके बीच बिल्कुल छ्त्तीस का आकड़ा है जिसका वजूद कागज से जुड़ा है वह स्क्रीन को कभी प्रमोट नही करना चाहेगा धंधे में प्रिंट और वर्चुअल पत्रकारिता के अपने-अपने रास्ते हैं। सच्चाई यह है कि यह ’बैर’ एक के अस्तित्व से जुड़ा है, इसमे सिर्फ शाब्दिक समरसता की गुंजाइश है..बहरहाल, दो वर्षों की यह यात्रा, आपको आगे एक सजग प्रहरी की भूमिका मे नई ऊर्जा प्रदान करेगी पुनः हार्दिक शुभकामनाएं.. आपका
    - अरविन्द श्रीवास्तव, मधेपुरा.

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