राकेश सिंह/११/११/११
मधेपुरा निवासी हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ किसी परिचय के मुहताज नहीं है.साहित्य के क्षेत्र में इनकी कृतियाँ आज अनमोल साबित हो रही है.०१ जनवरी १९३४ को जन्मे हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ के साहित्य, इतिहास और संस्कृति पर अनेक शोध आज पूरे देश के पाठकों के द्वारा उपयोग में लाये जा रहे हैं.इनकी अनेक पुस्तकें आज कोसी अंचल को जानने का सबसे सटीक माध्यम बन गयी हैं.
महज सत्रह वर्ष की आयु में जब इनकी पहली कविता पुस्तक ‘अर्चना’ १९५१ में प्रकाशित हुई, हिन्दी क्षेत्र में इनका भरपूर स्वागत हुआ.तत्कालीन शिक्षा मंत्री आचार्य बद्री नाथ वर्मा, आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री, कलक्टर सिंह केसरी, आरसी प्रसाद सिंह, हंस कुमार तिवारी, सुमित्रा कुमारी सिन्हा, गौरी शंकर मिश्रा द्विजेन्द्र, पोद्दार रामावतार अरूण, श्याम नंदन किशोर आदि साहित्यकारों ने इस किशोर कवि का हार्दिक अभिनन्दन किया.दैनिक राष्ट्रवाणी पटना ने लिखा- ‘आग
दबाकर अमृत मुस्कान ले मधुर गीत गाने वाले गीत काव्य के प्रमुख साधकों में शलभ जी की गणना है.’ वहीं साप्ताहिक ‘मशाल’ ने इस पुस्तक की समीक्षा करते हुए लिखा-‘शलभ की रचनाओं में अनुभूति की मार्मिकता के अतिरिक्त गीत्यात्मक माधुर्य है.यदि कवी के विषय में कहा जाय कि बिहार के श्रेष्ठ गीतकारों में इनका विशिष्ठ स्थान है तो कुछ भी अत्युक्ति नहीं.’

इनकी प्रकाशित कृतियों में महत्वपूर्ण हैं, ‘अर्चना’ (गीत काव्य) १९५१ ई०, ‘आनंद’ (खंड काव्य) १९६० ई०, ‘एक बनजारा विजन में’ (काव्य) १९८९ ई०, ‘मधेपुरा में स्वाधीनता आंदोलन का इतिहास’ (इतिहास) १९९६ ई०, शैव अवधारणा और सिंघेश्वर’ (प्राचीन इतिहास और संस्कृति) १९९८ ई०, ‘मन्त्रद्रष्टा ऋष्य श्रृंग’ (प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति) २००३ ई०, ‘कोशी अंचल की अनमोल धरोहरें’ (एतिहासिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक निबंध) २००५ ई०, ‘अंगिका लिपि की एतिहासिक पृष्ठभूमि’ (लिपि विज्ञान) २००६ ई०, ‘अंग लिपि का इतिहास’ (लिपि विज्ञान) २००८ ई०.इसके अलावे इनकी मैथिली में भी लिखे कई निबंध विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए है.
नई दिल्ली में आयोजित सहस्त्राब्दी विश्व हिन्दी समेलन के भव्य समारोह में १७ सितम्बर २००० को पूर्व उच्चायुक्त डा० लक्ष्मीमल सिंघवी के द्वारा कोसी अंचल के इस साहित्य मनीषी को स्वर्णपदक के साथ ‘राष्ट्रीय हिन्दीसेवी सहस्त्राब्दी सम्मान’ प्रदान किया गया.कोसी के किसी साहित्यकार को मिलने वाला ये शायद सबसे बड़ा सम्मान है.
मधेपुरा टाइम्स को शुभकामना देते हुए शलभ जी बताते हैं कि मधेपुरा के विषय में लिखते समय आज के कई लेखक व पत्रकारों को तथ्यपरक जानकारी की आवश्यकता है.मधेपुरा का इतिहास व संस्कृति काफी गौरवमयी है.
मधेपुरा टाइम्स कोसी व बिहार की इस महान हस्ती की लंबी उम्र की कामना करती है.
हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’:कोसी अंचल के साहित्य मनीषी
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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November 11, 2011
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इतने बड़े शख्सियत के साथ मै भी कई कवी सम्मलेन में भाग ले चूका हू...बचपन से मुझे हिंदी कविता और हिंदी साहित्य से बहुत लगाव है.मै भगवान से इनकी स्वस्थ की कामना करता हू...और कोसी में हिंदी साहित्य के योगदान के लिए इन्हें नमन करता हू.
ReplyDeleteआदरणीय श्री हरिशंकर श्रीवास्तव 'शलभ' का सानिध्य पिछले 4-5 साल से मुझे मिल रहा है।उनकी पांडुलिपियों को भी सहेजने का सोभाग्य मुझे मिला है।वास्तव में उनका ज्ञान काफी परिपक्व है।सेकड़ो कविताएँ आज भी उन्हें कंठस्थ हैं।आप उनसे वैदिक साहित्य से लेकर वर्तमान तक के किसी विषय पर बात कर लें।हर चीज पर समान पकड़ है।यों कह ले चलता फिरता इनसाक्लोपीडिया हैं।कोशी की संस्कृति को सहेजने में उनका अतुलनीय योगदान रहा है।विखरे हुए विभिन्न गल्प कथाओं को लिपिबद्ध करने का श्रेय शलभ जी को जाता है।अनेक पुस्तकों की रचना करके उन्होंने अपनी विद्वता और अद्भुत क्षमता का परिचय तो दिया ही है साथ- साथ मातृभूमि के प्रति जो आगाध प्रेम और समर्पण दिखाया है वह काबिले तारीफ है।जब वे किसी गीत या कविता को गाते है तो छंद,मात्र और लय की ऐसी छटा निखरती है की पाठक को लगता है उनके गला में साक्षात् सरस्वती विराजमान हो गयी हैं।शलभ जी कोशी के ही नहीं राज्य और राष्ट्र के शिखर पुरूष हैं।उनकी रचनाओं की अनु गूँज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुँच चुकी है।साहित्य की दुनिया में जितना ही वे लब्धप्रतिष्ठित हैं व्यावहारिक जीवन में उतना ही सरल,सौम्य साधारण भी हैं।सबसे अच्छी बात यह है कि ईश्वर ने विराट व्यक्तित्व के धनी इस युग पुरुष को चिंतनशील मस्तिष्कदिया है।मैं उनके स्वस्थ दीर्घायु जीवन की कामना करता हूँ।
ReplyDeleteआज कोशी के महान सपूत शलभ जी नहीं रहे
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