हिंदुओं के महानतम पर्वों में से एक दीपावली पूरे भारत में आज मनाई जा रही है.इसके अलावे पूरी दुनियाँ में जहाँ भी हिंदू रहते हैं,भी इस पर्व को मनाया जाएगा.पुराणों के अनुसार इस कार्तिक अमावस्या की रात स्वयं लक्ष्मी भूलोक आकार विचरण करती है और साफ़-सुथरे व प्रकाशयुक्त जगहों पर अंश के रूप में रह जाती है.दीपावली पर घरों को साफ़-सुथरा करना तथा रोशनीयुक्त बनाने के पीछे इस मान्यता का भी असर है.देखा जाय तो धनतेरस, नरक चतुर्दशी और लक्ष्मीपूजन के ही सम्मिलित रूप को दिवाली के रूप में मनाते हैं.धर्मग्रन्थ ये भी कहते हैं कि इसी दिन भगवान श्रीराम रावण तथा अन्य असुर का वध करके अयोध्या लौटे थे,जिस खुशी में दीप जलाये गए थे.
इस दिन आतिशबाजी भी जम कर की जाती है.ये अलग बात है कि इस बार महंगाई की मार ने लोगों के इस उत्साह पर भी असर डाला है.आतिशबाजी के पीछे भी धार्मिक मान्यता है.कहते हैं कि दीपावली की अमावस्या से पितरों की रात आरम्भ होती है. पटाखे जलाने के पीछे पुरानी मान्यता ये भी है कि आसमान में और धरती पर रौशनी की पूरी व्यवस्था की जाय ताकि पितर अपने मार्ग से भटक न जाएँ.जुए के सम्बन्ध में पौराणिक मान्यता ये है कि इस रात भगवान शंकर और पार्वती ने जुआ खेला था,जिसमे भगवान शंकर पराजित हो गए थे.
मधेपुरा में आतिशबाजी का पता तो सबको रहता है,पर बहुतों को ये शायद ही पता हो कि जिले में जुए का भी काफी प्रचलन है.विभिन्न जगहों पर सुरक्षित रूप से जुआ खेलने के लिए लोग जगह उपलब्ध कराने वालों को भी पैसे देते हैं.जिले में सेठ-साहूकार तो लाखों का जुआ खेलते ही हैं,कुछ फक्कड़ लोग भी कर्ज लेकर अमीर बनने के चक्कर में सब कुछ गवां बैठते हैं.सूत्रों का मानना है कि जिले भर में कई जगह पुलिस के संरक्षण में भी जुआ खेलवाया जाता है.पुलिस भी इस बहाने मालामाल होती है.यानी लाखों रूपये के जुए के इस खेल के अंत में ‘कोई मालामाल है तो कोई कंगाल है’ वाली बात चरितार्थ होती है.
दीपावली आज:जिले में जुए का भी है काफी प्रचलन
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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October 26, 2011
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