कोसीनामा-10 : जन लोकपाल का समर्थन नहीं, वो हमारा नेता नहीं

यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि भ्रष्टाचार के कारण ही कोसी पूरे इलाके के लोगों को त्रस्त कर रही है। एक ओर जहां अन्ना भ्रष्टाचार और लोकपाल को लेकर अनशन कर रहे हैं, वहीं पूरा कोसी का इलाका भ्रष्टाचार से त्रस्त है।
और तो और इन इलाके की जनता ने जो प्रतिनिधि चुना है, वे भी भ्रष्टाचार के पैरोकार बने हुए हैं। क्या कोसी की जनता को इस बात का अहसास नहीं है कि वे अपने खून-पसीने की कमाई का कितना हिस्सा घूस देते हैं। कितना हिस्सा दलालों के हाथों में जाता है। अधिकारी से लेकर मंत्री तक भ्रष्टाचार के गर्त में डूबे हुए हैं। नहीं तो पूरे कोसी इलाके का हस्र ऐसा नहीं होता।
ऐसे में समय आ गया है कि पूरे कोसी इलाके की जनता अपनी चुने हुए प्रतिनिधियों की चाल, चरित्र और चेहरे को देखना होगा। अन्ना हजारे ने जिस तरह भ्रष्टाचार के विरोध में आंदोलन खड़ा किया, उससे हर किसी का स्वार्थ जुड़ा है। अभी भले ही आपको पता न चले लेकिन यकीन मानिये जन लोकपाल बिल संसद में पास हो जाता है तो आपका काम  तय समय में पूरा होगा और यदि नहीं होता है तो आप इसकी शिकायत कर सकते हैं। इसलिए कोसी क्षेत्र से चुने जाने वाले सभी विधायकों और सांसदों पर आम लोगों को नजर रखनी होगी कि वह जन लोकपाल बिल को लेकर क्या राय रखते हैं।
जहां की जमीन सोना उगलती है, लोग इतने मेहनती है, वहां के लोग पलायन के लिए मजबूर न होते। कोसी प्रोजेक्ट से जुड़े जूनियर इंजीनियर से लेकर नेताओं के घर हो आइये, पता चल जाएगा कि उन्होंने कितना खाया है। कोसीनामा के आठवें भाग में गौरीशंकर राजहंस के लेख से भ्रष्टाचार का सारा ताना-बाना आपको दिखाई देगा। वैसे भी 2008 में कोसी के द्वारा मचाई गई त्रासदी को शायद ही कोई भूला हो। चाहे सुपौल हो या फिर मधेपुरा, सहरसा, पूर्णिया, सभी जिलों में जो कोहराम मचा, उसे याद कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। बावजूद इसके, तीन साल बीत चुके हैं और हर साल बाढ़ आने की आशंका से लोग त्रस्त रहते हैं। पिछले तीन सालों में चाहे केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार, स्थानीय विधायक हो या सांसद, जितने भी लोगों ने जितनी सहायता की, उसका अस्सी फीसद हिस्सा भी इलाके के विकास में लगा होता तो आज कोसी इलाके के सभी जिलों की हालत कुछ और होती।
क्या आप इस बात से इंकार कर सकते हैं कि कोसी के किसी भी जिले या ब्लॉक में सरकारी काम बिना दलाल की सहायता से संभव हो सकता है। यहां   तक कि शिक्षामित्र में जिन शिक्षकों की नियुक्ति हुई है, उनके नाम पर कोई और नौकरी कर रहा है। सरकार की नजर में कोई और शिक्षक है, स्कूल में कोई और पढ़ा रहा है। जब तनख्वाह मिलने की बात आती है तो दो हजार रुपए स्कूल में काम करने वाले शिक्षक को मिलता है, बाकी सरकारी फाइल में दर्ज शिक्षक के पॉकेट में जाता है। पूरे इलाके के जितने भी दबंग परिवार के बेटे-बेटियों ने नौकरी पाई है, उनका रिकार्ड देख लें या फिर अपने-आसपास नजर उठा कर ही देख लें। आप किसी भी दफ्तर में चले जाएं, जब तक पॉकेट गर्म नहीं करेंगे या फिर पान-सुपाड़ी से लेकर चाय-पानी की व्यवस्था या फिर घर के बच्चों के लिए मिठाई का इंतजाम नहीं करेंगे, तब तक आपकी फाइल एक टेबल से दूसरे टेबल सरक ही नहीं सकती।
ऐसे में जरूरत है आम लोगों को जागरूक होने की। अन्ना का आंदोलन अपने आखिरी मुकाम की ओर अग्रसर है। लोकपाल बिल संसद में पारित हो भी गया तो भी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना आसान नहीं होगा। इसके लिए हम और आपको जागना होगा। कभी राजीव गांधी ने कहा था कि यदि एक रुपया केंद्र से जाता है तो आखिरी व्यक्ति के पास बीस पैसा भी नहीं पहुंचता।
कोसी क्षेत्र की जनता को अपने नुमांइदे की बातों पर ध्यान देना होगा। साथ ही, इस बात का ख्याल रखना होगा कि जब संसद में बहस हो तो कोसी क्षेत्र के सांसद क्या बोलते हैं, किस पक्ष में खड़े होते हैं। खासकर लालू यादव और शरद यादव पर और भी नजर रखनी होगी, क्योंकि बाहर से आकर ये कोसी की मिट्टी पर राजनीति कर अपना ऊंगली सीधा करते हैं और फिर मुड़कर देखते भी नहीं। पटना की सड़कें जब हेमामालिनी के गाल की तरह हो सकती हैं तो फिर कोसी क्षेत्र की सड़कें क्यों नहीं। कोसी क्षेत्र के लोगों को प्रण करना होगा कि लालू यादव से लेकर शरद यादव तक ही नहीं कोसी क्षेत्र के जो भी सांसद लोकपाल बिल के विरोध में खड़े हों, उनसे वह पूछें कि वे क्यों भ्रष्टाचार से आम लोगों को निजात दिलाना नहीं चाहते। उनके घरों पर प्रदर्शन करें और उनसे सवाल करें। यदि आम जनता उनकी बातों से संतुष्ट नहीं हैं तो अगले चुनाव में उन्हें सबक सिखाने के लिए तैयार हो जाएं।

--विनीत उत्पल,नई दिल्ली 

कोसीनामा-10 : जन लोकपाल का समर्थन नहीं, वो हमारा नेता नहीं कोसीनामा-10 : जन लोकपाल का समर्थन नहीं, वो हमारा नेता नहीं Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on August 26, 2011 Rating: 5

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