सत्ता की सहेली और राजनेताओं की रखैल है बिजली

मैं अपनी अंधेरी कोठरी में चारपाई पर चित्त लेटा चिंतामग्न था.किरोसिन की किल्लत पर झुंझलाहट हो रही थी.सच पूछिए तो कुछ खाने-पीने के आदियों की भांति मुझे भी लिखने-पढ़ने का रोग है, लेकिन शहर के सोहबत में रहकर भी गवईं दु:ख से आज तक निजात नही लिक पाई.छिक,तुझे जिंदगी मेरी!
         अचानक दबे पाँव आतंकवादी की तरह घुस आये मेरे स्वप्नगुरु अष्टावक्र महाराज की भनक भारतीय ख़ुफ़िया विभाग की नाईं मुझे तनिक भी नहीं लग पाई.मैं हडबडाकर तब
उठ बैठा जब गुरु ने जबरदस्ती सांस खींचकर अपनी वाणी-ब्लास्ट की, "बेटा बेधड़क! चैन से मातम मना रहे हो क्या?मैंने उनके चरण स्पर्श कर घोतालेबाजी उत्तर दिया, "गुरुवर फिलहाल मुझे अपने किसी सगे-सम्बन्धियों के स्वर्ग सिधारने की खबर नही है मगर...." मैंने दिलजले आशिक की तरह अपना भड़ास निकाला "गुरु महाराज, सुशासन की सरकार में राशन और किरासन का सच्चा स्वाद सरकारी तंत्र और बिचौलियों के साथ-साथ जन-वितरण विक्रेता ही ले पाते हैं.महान उपभोक्ता हाथ मलता ही रह जाता है."
        आँखें तरेरकर गुरु ने घोर प्रतिवाद किया,"अबे उल्लुओं का सरदार! प्रगतिशीलता की पलीता में यों आग लगाते तुम्हे शर्म आनी चाहिए."
       मैंने विनम्र विरोध जताया,"हाँ,गुरुजी हम गरीबों के हक में डिबरी ही नसीब है.बिजली तो सत्ता की सहेली और राजनेताओं की रखैल बन कर रह गयी.वह उन्ही के साथ आती है फिर चली जाती है.शहरवासी शरणार्थी सी जिंदगी जी रहे हैं.गम के आंसू पी रहे हैं.उनकी इच्छा-आकांक्षा गोया सूली पर टंग  गयी है सरकार जब कभी सुधार की बांग देती है,दीनों की जिंदगी और दयनीय हो जाती है.बिजली की असमान्य सप्लाई से आम-अवाम तडपने लगते हैं." मैंने एक लंबी सांस ली.
         गुरु ने अपनी आँखों हमदर्दी पैदा कर पूछा,क्या तात्पर्य?
   "तात्पर्य यह है कि बिजली रानी जब कभी आती भी है तो दुर्वासा ऋषि की दादी बनकर या फिर पांडू कि चाची बन जाती है."मैंने रहस्यमयी मुस्कान के साथ गुरु के म्लान चेहरे पर अपनी नजर टिका दी.
    पहेलीनुमा जवाब शायद गुरु के पल्ले नही पड़ा,उन्हें स्पष्ट उत्तर की चाह थी जैसे बीपीएल कार्डधारियों को एक अदद इंदिरा आवास की.
मैंने गुरु की जिज्ञासा शांत करने की गरज से कहा,"गुरुजी बिजली हमेशा सरकारी कल्याणकारी योजना की भांति ठंढे बस्ते में खर्राटे लेती रहती है.विभाग कि मेहरबानी से जब सक्रीय होती भी है तो उसकी बी० पी० हाई-लो होती रहती है" मैंने उबासी ली.
    गुरु ने सहजता से स्वीकार किया,"झुके टूटे खम्भों पर टूटे-उलझे तार मौत का फंदा दीखता है.जान-माल की क्षति यदा-कद होती रहती है.आंधी-पानी में जनता की जान हलक में अटक जाती है.ट्रांसफर्मरों की आवाज अघोषित युद्धकाल का अंदेशा दे जाती है."बस इतना कहकर वे लंबी जम्हाई लेकर गुरु गंभीर हो गए.
    गुरु की गंभीरता को भंग करने की नीयत से मैंने क्षणिका छोड़ी-
        "बिजली मनचली प्रेमिका की भांति,अपनी एक झलक दिखला जाती है.
         प्रेमियों को तरसा कर फिर,पास मुश्किल से आती है."
क्षणिका सुनकर गुरु आनंदतिरेक से झूम उठे,उनका पोपला मुख-गहवर सुरंगा-सा खुला.उनकी 'हो-हो' की हंसी मुझे अपने लिए आशीर्वाद सी लगी.


--पी० बिहारी 'बेधड़क'
सत्ता की सहेली और राजनेताओं की रखैल है बिजली सत्ता की सहेली और राजनेताओं की रखैल है बिजली Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on March 27, 2011 Rating: 5

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