कहते हैं लोकतंत्र में जनता ही सब कुछ होती है.जनता के हाथ में तंत्र बनाने से लेकर तंत्र उजाड़ने तक का मन्त्र होता है.यही कारण है कि आये दिन मुट्ठी भर लोग भी न्याय व्यवस्था का ध्यान आकृष्ट करने के लिए जनतंत्र का भरपूर प्रयोग कर रहे हैं.माने तो कोशी अंचल जैसे पिछड़े इलाके में यह तंत्र काफी कमाल दिखा रहा है.जनतंत्र इतना सशक्त हो गया है कि बकरी प्राकृतिक तंत्र के चपेट में भले ही आकर क्यों न मर जाये,जनतंत्र प्राकृतिक तंत्र से भी हिसाब करने के लिए उसके रसूल सरकार व कार्यपालिका तंत्र को औकात में लाने के लिए लोकतंत्र के ही लाइफलाइन सड़क व रेल को जाम कर देते हैं.
ऐसा नही है कि जनतंत्र समझदार नही है.एक से दो घंटे की बात होती है.बस हम जैसे चाय पर बिकने वाले पत्रकार के पहुँचते ही जनतंत्र अपना सियारी दांत निकल कर ‘फोटू’ खिंचाने आगे हो जाते हैं.तभी जनतंत्र की औकात का पता चलता है.वो क्रांतिकारी गर्जना “हमारी मांगे पूरी करो, भ्रष्ट प्रशासन होश में आओ, इस मृत बकरी के हर्जाना के रूप में पांच लाख तथा मुफ्तखोर आश्रितों को सरकारी सेवा में जगह दो”, आश्वासन मिलते और ‘फोटू’ खिंचाते ही भीड़ गायब.”अरे ये क्या?”इस मृत बकरी को तो साथ ले जाओ.लेकिन पलक झपकते ही भीड़ गायब.यही है जनतंत्र का डिमांडिंग स्टाइल.शायद भारतीय साम्यवाद की अगली कड़ी यही होनी थी.
ये तो था नाटक का सीन या अर्धसत्य.लेकिन स्थिति इससे भी बदतर है.
लोकतंत्र का इससे भद्दा मजाक और क्या होगा कि लोग सस्ती लोकप्रियता व मांग के लिए लोगों के लिए ही बनी लाइफलाइन सड़क व रेल को जाम कर देते हैं.शायद ये जनतंत्र को पता नही होता कि “इमरजेंसी’ क्या होती है.उस जाम में कोई ऐसा भी होगा जिसके नियत समय पर नही पहुँचने से उसके माँ की जान जा सकती है, किसी के नही पहुँचने से बेटी या बहन की शादी टूट सकती है, किसी का कैरियर बर्बाद हो सकता है.शायद आप भी कभी इसका हिस्सा बनें.......
तो फिर क्या करें?
लोकतंत्र में अपनी मांग मनवाने के लिए सरकार व संविधान ने इस तरह की छूट दे रखी है.लेकिन इसका मतलब यह नही है कि आपकी मांग सड़क व रेल जाम के बाद ही मानी जाय.विधि विशेषज्ञों के अनुसार किसी जाम व प्रदर्शन के लिए प्रशासन से 24 घंटा पहले अनुमति ली जाती है, अन्यथा यह अपराध के दायरे में में आता है.अगर प्रशासन सख्त हो जाये तो आप पर कानूनी कार्यवाही या केस भी हो सकता है.
अरे, आप महान हैं ! आप चाहें तो.....
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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January 04, 2011
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