‘जर, जमीन, जोरू जोर की, नहीं तो किसी और की’

एक बड़ी पुरानी कहावत है, जर, जमीन, जोरू जोर की, नहीं तो किसी और की. जर यानि धन या सोना और जोरू यानि पत्नी के बारे में ये कहावत सच हो या न हो, पर जमीन के मामले में तो कहावत बहुत हद तक सटीक बैठती है. खास कर मधेपुरा जिले में तो बहुत सी जमीनें दूसरी की होने के बाद भी कई दबंगों ने इसे लाठी के जोर हथिया रखा है.
      एक दूसरी कहावत की चर्चा भी यहाँ प्रासंगिक दिखती है कि चोर के लिए ताला क्या, बेईमान के लिए केवाला क्या ? मतलब साफ़ है कुछ जगहों पर आपके केवाला भी साथ नहीं देने वाले हैं. यहाँ दबंग बेईमान हेरा-फेरी करके, रिश्वत देकर खतियान में अपना नाम चढ़वा कर, या अंचल कार्यालय के जन्मजात भ्रष्ट कर्मचारी से अपने नाम की रसीद कटवाकर आपके नाम की जमीन पर कब्ज़ा कर लेते हैं और आप बड़ी परेशानी में पड़ जाते हैं.

कोर्ट और पुलिस भी कमजोर: पुलिस के पास यदि आप अपने जमीन पर दूसरे के कब्जे की शिकायत लेकर जाते हैं तो आपका विरोधी भी उन्हें किसी तरह का कागज़ दिखाकर यह भरोसा दिलाने का प्रयास करता है कि विवादित जमीन उसकी ही है. दूसरी स्थिति में यदि आपके विरोधी के पास कोई मजबूत और ठोस सबूत नहीं है तो वो थाने को कुछ ले-देकर मैनेज करने में अक्सर कामयाब हो जाता है.
      मामले को यदि आप कोर्ट में ले जाते हैं तो वहां भी आपके लिए जल्द राहत नहीं मिलने वाली है. मुकदमों के बोझ से हांफती न्यायालय में भी आपके विपक्षी केश को वर्षों और दशकों खींच ले जाते हैं और आपको थका देते हैं. याद रखिये चोर दौड़ने में नहीं थकते, भले लोग थक जाते हैं.

वकील करते हैं जोंक का काम: कोर्ट में सिविल के अधिकाँश वकील आपके लिए जोंक की तरह साबित होंगे. केश को जल्द खतम कर ये अपने धंधे को मंदा होने नहीं देना चाहते. कई मामलों में तो विवादित जमीन की कीमत से अधिक खर्च आपका केश लड़ने में करवा दिया जाता है. और यहाँ एक और कहावत चरितार्थ हो जाती है कि बरद बिकल चरवाही में.
(वि.सं.)
‘जर, जमीन, जोरू जोर की, नहीं तो किसी और की’ ‘जर, जमीन, जोरू जोर की, नहीं तो किसी और की’ Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on August 12, 2013 Rating: 5

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