ऑनलाइन पढ़ाई के नफा-नुकसान और अभिभावकों की बेबसी

भारत की आर्थिक गतिविधि कोरोना और लॉकडाउन से बुरी तरह क्षतिग्रस्त है. पूर्णतः तालाबंदी, सड़क-बंदी, बाजार-बंदी से कोरोना की श्रृंखला-कड़ी तो अवश्य टूटी, परन्तु आर्थिक रीढ़ और और मानवों की रीढ़ भी धराशायी हो गई है. अमीरों को घर पर रहते हुए खाना-पीना या निजी जरुरतों में कोई कमी नहीं हुई, लेकिन मजदूर तबके के गरीब जीविका के लिए जरूर छटपटा रहे थे. बड़े-बड़े कल- कारखानों के बंद हो जाने से मजदूरों को काम के अभाव में दो वक्त की रोटी तक नहीं मिल पा रही थी, कितने ही मजदूर कर्ज़ में डूब गए और कर्ज़ की राशि चुकाने में असमर्थ होने की वजह से आत्महत्या तक कर ली.

कोरोना ने जहाँ एक तरफ दुनिया को एक वर्ष से अधिक से परेशान कर रखा है वहीँ दूसरी तरफ इस वायरस ने लोगों के सोचने का नजरिया ही बदल दिया. पृथ्वी पर मानव अस्तित्व पर खतरा क्या मंडराया, दुनिया भर के लोग वैकल्पिक व्यवस्था में जुट गए. दुनिया पूरी तरह वापस पटरी पर तो दौड़ने नहीं लग गई पर धीमे-धीमे जीवन रफ़्तार पकड़ने लगी है. शिक्षा मानव सभ्यता के विकास का मूल है और जब इस महामारी ने इस पर भी प्रहार किया तो तकनीक के प्रयोग से मानवों ने इसे भी फिर से बहाल करने की ठानी, और हाल के वर्षों में विकसित हुए ऑनलाइन एजुकेशन पर निर्भरता बढ़ने लगी.

पर क्या ऑनलाइन एजुकेशन भारत जैसे देश में पूरी तरह प्रभावी हो सकती है जहाँ महज चंद फीसदी लोग ही तकनीक के प्रयोग में सक्षम हैं या यूँ कहें कि जहाँ अधिकाँश आबादी के सामने खाने के लाले पड़े हों, वहां इस तकनीक में प्रयोग आने वाले संसाधनों की सुविधा गरीबों तक पहुँच पाएगी, इसमें अभी लम्बा वक्त लगेगा.

कोरोना महामारी के कारण स्कूली छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों को भी काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए 25 मार्च 2020 से पूरे देश में प्रधानमंत्री द्वारा लॉकडाउन की घोषणा की गई. लॉकडाउन के दौरान सभी स्कूल और कॉलेज बंद कर दिया गया, लिहाजा शिक्षण संस्थानों ने शिक्षण कार्य और पठन-पाठन की गतिविधियों के लिए ऑनलाइन मंच का रुख किया.

ऑनलाइन पढ़ाई से बच्चों को काफी फायदे  भी हुए, लॉकडाउन के दौरान पाठ्यक्रम को पूरा करने के लिए ऑनलाइन कक्षाएं जरिया बनी. बच्चों की पढ़ाई करने की आदत नहीं छूटी. ऑनलाइन कक्षाओं से बच्चों ने तकनीक के इस्तेमाल का नया तरीका सीखा. भविष्य को देखते हुए वर्क फ्रॉम होम की भी बच्चों में आदत पड़ी.

वहीं दूसरी ओर अभिभावकों की अपनी अलग बेबसी है, बदलती व्यवस्था में उन्हें बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है. लॉकडाउन के चलते एक तरफ उनके सारे काम और रोजगार बंद हो जाने के कारण उन्हें आर्थिक-तंगी का सामना करना पड़ रहा था तो वहीं दूसरी तरफ ऑनलाइन पढ़ाई शुरू होने के कारण स्कूल की फीस भरनी पड़ रही थी. स्कूली छात्रों पर किए गए एक अध्ययन के मुताबिक करीब 56 प्रतिशत बच्चों के पास स्मार्टफोन उपलब्ध नहीं है, जबकि ई- लर्निंग के लिए यह बेहद जरूरी है. अचानक शुरु हुई ऑनलाइन कक्षाओं से बच्चों के लिए स्मार्टफोन लेना अतिआवश्यक हो गया. अभिभावकों द्वारा सारे समस्याओं को झेलते हुए अपने बच्चों को सारी सुविधाएं उपलब्ध कराने के बावजूद कक्षाओं के बीच में ही नेटवर्क संबंधी समस्याओं से बच्चों की पढ़ाई में बाधा उत्पन्न होती. ऑनलाइन कक्षाओं में स्कूल का माहौल ना होने से बच्चों का पढ़ाई में भी विशेष मन नहीं लगता. अभिभावकों को यह भी चिंता बनी रहती की ऑनलाइन पढ़ाई करने से बच्चों की आँखों एवं स्वास्थ्य पर भी असर पड़ेगा. देखा जाय तो प्रयोगात्मक पढ़ाई के लिए भी ऑनलाइन कक्षाएं असफल रही, परन्तु शिक्षा व्यवस्था के आगे बेबस अभिभावक कुछ नहीं कर पा रहे हैं. ये भी कोई जरूरी तो नहीं कि ऐसी विषम परिस्थिति का सामना देश को फिर न करना पड़े.

ऑनलाइन पढ़ाई के नफ़ा-नुकसान की ऐसी तमाम परिस्थितियों के बीच जरूरत है सरकार को इस दिशा में एक ठोस रणनीति बनाकर कदम उठाने की, ताकि सृष्टि के विकास का मूल शिक्षा किसी भी ऐसे हालात में बाधित न हो.

प्रिया चौधरी, मधेपुरा.

ऑनलाइन पढ़ाई के नफा-नुकसान और अभिभावकों की बेबसी ऑनलाइन पढ़ाई के नफा-नुकसान और अभिभावकों की बेबसी Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on February 22, 2021 Rating: 5

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