भारत को विश्वगुरू एवं सोने की चिड़ियाँ इसीलिए कहा जाता है कि दुनियां में सबसे ज्यादा पांडुलिपियाँ (हस्तलिखित) हमारे देश में ही थी.
प्राचीनकाल में ज्ञान के संसाधान के रूप में पांडुलिपियाँ ही था जिसका उदाहरण नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला विश्वविद्यालय था. जब अलाउद्दीन खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में आग लगाई तो छह महीने तक वहां की पांडुलिपियाँ जलती रहीं.
उपरोक्त बातें राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, अगरतला, त्रिपुरा के सहायक आचार्य डा० उत्तम सिंह ने अपने व्याख्यान में कही.
दूसरी पाली में पांडुलिपि का सूचीकरण से संबंधित व्याख्यान देते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुस्तकालयाध्यक्ष डा० बीके सिंह ने कहा कि हमारा देश 1947 में आजाद हुआ लेकिन पांडुलिपि संरक्षण का काम पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न अटल बिहारी बाजपेयी ने अपने कार्यकाल 2003 में किया. उन्होंने देश स्तर पर पांडुलिपि संरक्षण के लिए सांस्कृतिक मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन बनाया जिससे हमारी संस्कृति और प्राचीन कृतियाँ पूरी दुनियां के सामने डिजीटल फॉर्म में है.
उन्होंने वर्तमान परिवेश में नेशनल डिजीटल लाइब्रेरी (एनडीएल) के बारे में भी विस्तार से बताया. उन्होंने बताया कि एनडीएल के साईट पर 13 करोड़ के लगभग पाठ्य सामग्री मुफ्त में उपलब्ध है.
उन्होंने पांडुलिपि के सूचीकरण को मैन्यूल से लेकर कंप्यूटर फॉर्म में विस्तार से बताया जहाँ से पाठक आसानी से कोई भी सूचना या जानकारी ले सकता है.
कार्यशाला में मुख्य रूप से टीएम भागलपुर विवि पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान के पूर्व निदेशक डा० बसंत कुमार चैधरी, कार्यशाला संगठन सचिव डा० अशोक कुमार, कार्यशाला इवेंट मैनेजर पृथ्वीराज यदुवंशी, कार्यशाला कोषाध्यक्ष सिद्धू कुमार के अलावे अंजली कुमारी, सोनम सिंह, सुनीता भारती, रश्मि कुमारी, शोभा कुमारी, शंकर, सोनू, शिवनंदन मंडल, पवन दास, अंजली कुमारी, डा० आफताब आलम, मृत्युंजय कुमार, अनमोल, अंशू,अरविंद विश्वास, डा० अरूण, जय प्रकाश भारती समेत दर्जनों प्रतिभागी उपस्थित रहे.
प्राचीनकाल में ज्ञान के संसाधान के रूप में पांडुलिपियाँ ही था जिसका उदाहरण नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला विश्वविद्यालय था. जब अलाउद्दीन खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में आग लगाई तो छह महीने तक वहां की पांडुलिपियाँ जलती रहीं.
उपरोक्त बातें राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, अगरतला, त्रिपुरा के सहायक आचार्य डा० उत्तम सिंह ने अपने व्याख्यान में कही.
दूसरी पाली में पांडुलिपि का सूचीकरण से संबंधित व्याख्यान देते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुस्तकालयाध्यक्ष डा० बीके सिंह ने कहा कि हमारा देश 1947 में आजाद हुआ लेकिन पांडुलिपि संरक्षण का काम पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न अटल बिहारी बाजपेयी ने अपने कार्यकाल 2003 में किया. उन्होंने देश स्तर पर पांडुलिपि संरक्षण के लिए सांस्कृतिक मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन बनाया जिससे हमारी संस्कृति और प्राचीन कृतियाँ पूरी दुनियां के सामने डिजीटल फॉर्म में है.
उन्होंने वर्तमान परिवेश में नेशनल डिजीटल लाइब्रेरी (एनडीएल) के बारे में भी विस्तार से बताया. उन्होंने बताया कि एनडीएल के साईट पर 13 करोड़ के लगभग पाठ्य सामग्री मुफ्त में उपलब्ध है.
उन्होंने पांडुलिपि के सूचीकरण को मैन्यूल से लेकर कंप्यूटर फॉर्म में विस्तार से बताया जहाँ से पाठक आसानी से कोई भी सूचना या जानकारी ले सकता है.
कार्यशाला में मुख्य रूप से टीएम भागलपुर विवि पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान के पूर्व निदेशक डा० बसंत कुमार चैधरी, कार्यशाला संगठन सचिव डा० अशोक कुमार, कार्यशाला इवेंट मैनेजर पृथ्वीराज यदुवंशी, कार्यशाला कोषाध्यक्ष सिद्धू कुमार के अलावे अंजली कुमारी, सोनम सिंह, सुनीता भारती, रश्मि कुमारी, शोभा कुमारी, शंकर, सोनू, शिवनंदन मंडल, पवन दास, अंजली कुमारी, डा० आफताब आलम, मृत्युंजय कुमार, अनमोल, अंशू,अरविंद विश्वास, डा० अरूण, जय प्रकाश भारती समेत दर्जनों प्रतिभागी उपस्थित रहे.
विश्वगुरू भारत रहा है पांडुलिपियों का देश: डॉ. उत्तम
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
August 23, 2018
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