निर्वाचन आयोग के निर्देशानुसार मधेपुरा नगर परिषद के नव निर्वाचित सदस्यों का शपथ ग्रहण और मुख्य पार्षद और उप मुख्य पार्षद का चुनाव 9 जून को होना है।
इस बीच हर बार की तरह इस बार भी पार्षदों को वोट के बदले विदेश भेजकर अपने पक्ष में मत सुरक्षित रखने का खेल शुरू हो गया है। इस बावत अनुभवी लोगों को कहना है कि अपने पक्ष में बुक किए गए पार्षदों को विदेश (नेपाल) या हिल स्टेशन वाले दूसरे राज्य भेजना आवश्यक प्रक्रिया है। यहां अगर बुक होने के बाद भी रखा जाएगा तो फिर विपक्षी उन्हें और अधिक का ऑफर देंगे और यह मेंढ़क को तौलने वाली स्थिति हो जाएगी। लिहाजा ‘बुक माल’ को नेपाल या अन्य सुरक्षित जगह भेजकर निश्चिंत होना ही बेहतर है।
लेकिन यह स्थिति विरोध पक्ष के लिए बड़ी ही पीड़ादायक होती है। इसका इलाज यही है कि शेष बचे पार्षदों को भी अधिक से अधिक देकर अपने पक्ष में किया जाय या फिर अज्ञातवास में गए पार्षदों को किसी प्रकार अधिक प्रलोभन की सूचना देकर उन्हें विश्वासघात के लिए प्रेरित किया जाय।यहां भी अब यही प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
दरअसल नगर निकाय के इस चुनाव में इस अवैध प्रक्रिया को राज्य सरकार द्वारा ही ग्रीन सिग्नल दिए जाने की आरोप लगाया जाता है। मुखिया के समान सीधे मतदाता से चुनाव के बदले पार्षदों द्वारा मुख्य और उप मुख्य पार्षद का चुनाव होना इस बुकिंग व्यवस्था का सबसे बड़ा कारण है। न्यूनतम 40-50 लाख का खर्च कर इस पद पर बैठने वाले से कितनी स्वच्छता की आशा की जा सकती है, ये आसानी से समझा जा सकता है। मुश्किल इस बात की भी है कि यह बुकिंग भी मात्र दो वर्ष के लिए होती है। इसके बाद वही पार्षद जो आज साथ होते हैं, वे अपने मुख्य पार्षद पर अविश्वास करने लग जाते हैं और अविश्वास प्रस्ताव लाकर फिर खरीद बिक्री का दौर शुरू होता है।
बहरहाल यहां के नागरिक भी इस खुले तथ्य से अवगत हैं कि उनके प्रतिनिधि अब बुक हो चुके हैं। लेकिन फिर भी उन्हें आशा है कि अब हालात सुधरेंगे। यही शहरवासियों की नियति है।
लेकिन यह स्थिति विरोध पक्ष के लिए बड़ी ही पीड़ादायक होती है। इसका इलाज यही है कि शेष बचे पार्षदों को भी अधिक से अधिक देकर अपने पक्ष में किया जाय या फिर अज्ञातवास में गए पार्षदों को किसी प्रकार अधिक प्रलोभन की सूचना देकर उन्हें विश्वासघात के लिए प्रेरित किया जाय।यहां भी अब यही प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
दरअसल नगर निकाय के इस चुनाव में इस अवैध प्रक्रिया को राज्य सरकार द्वारा ही ग्रीन सिग्नल दिए जाने की आरोप लगाया जाता है। मुखिया के समान सीधे मतदाता से चुनाव के बदले पार्षदों द्वारा मुख्य और उप मुख्य पार्षद का चुनाव होना इस बुकिंग व्यवस्था का सबसे बड़ा कारण है। न्यूनतम 40-50 लाख का खर्च कर इस पद पर बैठने वाले से कितनी स्वच्छता की आशा की जा सकती है, ये आसानी से समझा जा सकता है। मुश्किल इस बात की भी है कि यह बुकिंग भी मात्र दो वर्ष के लिए होती है। इसके बाद वही पार्षद जो आज साथ होते हैं, वे अपने मुख्य पार्षद पर अविश्वास करने लग जाते हैं और अविश्वास प्रस्ताव लाकर फिर खरीद बिक्री का दौर शुरू होता है।
बहरहाल यहां के नागरिक भी इस खुले तथ्य से अवगत हैं कि उनके प्रतिनिधि अब बुक हो चुके हैं। लेकिन फिर भी उन्हें आशा है कि अब हालात सुधरेंगे। यही शहरवासियों की नियति है।
मुख्य पार्षद का चुनाव 9 जून को, अधिकांश पार्षद विदेश और अंतर्राज्यीय दौरे पर
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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June 04, 2017
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