निकम्मी व्यवस्था पर लोगों के आक्रोश का नतीजा है पदाधिकारियों के साथ हिंसा ?

मधेपुरा में पुलिस पदाधिकारी, बीडीओ तथा शिक्षकों के साथ लगातार हो रही हिंसा को चिंता का विषय माना जा सकता है. एक तरफ कानून को लोगों के द्वारा हाथ में लेने को सही नहीं ठहराया जा सकता है तो दूसरी तरफ कई लोगों का मानना है कि अधिकारी और कर्मचारी के व्यवहार और कार्यशैली से त्रस्त जनता अपना आपा खो रहे हैं.
बहुत सारे लोगों को लगता है कि जिनके हाथ में कानून लागू करवाने की जिम्मेवारी सौंपी गई है, उनकी रिश्वतखोरी और पक्षपातपूर्ण कार्यवाही से सामान्य और आम लोगों को न्याय नहीं मिल पा रहा है. परिणामस्वरूप ऐसी घटना की लगातार पुनरावृत्ति हो रही है.
      इस विषय पर आम और सामान्य आदमी क्या सोचता है? हमने इस विषय पर अपने पाठकों की राय जाननी चाही तो हमें ढेर सारी प्रतिक्रियाएं मिली. आप भी पढ़िए कुछ चुनी हुई प्रतिक्रियाएं:

Rajnish Singh  इस तरह की घटना के लिये पदाधिकारी और नेता दोनों दोषी हैं. लेकिन आम आदमी तो बेचारा है. अगर सोच कर देखा जाय तो आम पब्लिक को ही इसकी मार झेलनी पड़ती है.

रंजन यादव  कोई जान बूझ के ऐसी हरकत नही कर सकता. कोई न कोई समस्या जरुर होती है. जब जान आजिज हो जाती है, तो इस तरह की हरकत के लिए बाध्य होना पड़ता है.

 Santosh Kumar Raj Abvp  आज बिहार में प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं दिख रही है. हर जगह भ्रष्टाचार फैला हुआ है, जब दिन दहाड़े बस रोककर लूट लिया जाता है और प्रशान लुटेरों को पकड तक नहीं पाती है, या मुंगेंर की घटना से भी सीख लेनी होगी एक अपराधी कोर्ट आने पर धमकी देता है और दूसरे दिन एसपी कार्यालय के समीप हत्या कर दिया जाता है और पुलिस बात बनाने के अलावा किसी को पकड नहीं पाती है.  आप ब्लॉक जाईयेगा, जिस तिथि को आपका किसी प्रकार के प्रमाण-पत्र देने की तिथि है उसके दस दिन के बाद भी नहीं मिलता. पैसे के चक्कर में इतना काउन्टर दौड़ाता है कि आप जाने के बाद जानेंगें और कोई पदाधिकारी सुनने को तैयार नहीं है. हाँ ये सही है जनता कानून हाथ में न लें, लेकिन आक्रोश तो बढता है निक्कमी व्यवस्था पर. आज की पुलिस अंग्रेजी राज की याद दिला देती है.
 
 Moni Singh अगर पदासीन पदाधिकारी अपने कर्त्तव्यों का पालन ईमानदारी और समय के साथ करेंगे तो आमजनों का उग्र रूप बहुत कम ही देखने को मिलेगा. पदाधिकारियों का गैर-दोस्ताना व्यवहार भी इस तरह के घटनाओं को उकसाती है. जनता का धैर्य सरकारी लापरवाही की वजह से खत्म हो रहा है. इसे हर किसी को समझना होगा. कुछ जो कर्त्तव्यनिष्ठ हैं वो भी इनके वजह से खामियाजा भुगतते हैं.

Alok Kumar  अराजकता कोई समाधान नहीं है. सिस्टम बदलने के लिए खुद तो लोग बदलते नही और दूसरे से अपेक्षा रखते हैं. समस्या के गहराई में जा कर समाधान ढूँढना होगा.
 
Baba Dinesh  किसी भी व्यक्ति का धैर्य तब जवाब देने लगता जब सही कार्य के लिए बार-बार सरकारी कार्यालय का चक्कर लगाना पड़ता है और कार्य नहीं हो पाता. खास कर प्रखंड कार्यालयों में कन्या विवाह योजना, राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ, बृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन, निःशक्ता पेंशन, लक्ष्मीबाई आदि पेंशन योजनाओं में बिना सरकारी बाबू को खुश किए पेंशन पास करवाना संभव नहीं है. सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार चरम पर है वैसी स्थिति में आक्रोश स्वाभाविक है.

Kishor Kumar दोनो तरफ से कमी है सरकारी कर्मचारी और आम जनता अपने सोच को बदलकर सामने वाले की तरह सोचें तो इस तरह की शर्मनाक घटना घटित ही नही होगी.
पर जो भी हो, हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है.(वि० सं०)

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निकम्मी व्यवस्था पर लोगों के आक्रोश का नतीजा है पदाधिकारियों के साथ हिंसा ? निकम्मी व्यवस्था पर लोगों के आक्रोश का नतीजा है पदाधिकारियों के साथ हिंसा ? Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on April 12, 2015 Rating: 5

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