मधेपुरा जिले के आलमनगर में एन.एच. 106 पर मधेली एवं
कड़ामा चौक पर अनुमण्डल स्तरीय टैक्सी यूनियन
संघ उदाकिशुनगंज द्वारा चक्का जाम से आज दिनभर आम लोग परेशानियों से जूझते रहे. जरूरी
या आकस्मिक कार्य से आने-जाने वाले लोग मुसीबत में घिरने लगे तो फिर इस नाजायज से
दिखने वाले जाम के विरोध में स्वर भी उठने लगे.
आम परेशान लोगों और कथित
आंदोलनकारियों के बीच कई बार बहस और हाथापाई की भी नौबत उत्पन्न हो गई. एक हीं दिन
तीन-तीन जगह जाम किए जाने से आम लोगों के साथ प्रशासन को भी भारी मशक्कत करनी पड़ी.
प्रशासन ने अंदोलनकारियों से कई बार वार्ता कर उन्हें समझाने का प्रयास किया, पर जाम
कर आम लोगों को परेशान करने वाले लोग जिला पदाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को जाम स्थल
पर बुलाने की जिद पर अड़े थे.
आंदोलनकारियों का नेतृत्व कर रहे
ऑल इंडिया मुस्लिम दलित महादलित मोर्चा सह अनुमंडल स्तरीय टैक्सी यूनियन संघ उदाकिशुनगंज
के अध्यक्ष मो० असगर अली का कहना था कि प्रशासन को इन नौ सूत्री मांगों के बारे में कई बार लिखित आवेदन देकर कानूनी
कार्यवाही करने हेतु अनशन भी किया गया परन्तु
प्रशासन सिर्फ आश्वासन देती रही. आंदोलनकारीयों की मुख्य मांगों में ऑटो रिक्सा चालक
की निर्मम हत्यारे को सजा के साथ-साथ पांच लाख रूपये का मुआवजा, ऑटो रिक्सा स्टैंड, शौचालय, चापाकल एवं यात्री शेड अलग
से उपलब्ध कराया जाय. यही नहीं मो० असगर अली को गंदी राजनीति के तहत आलमनगर थाना में
दर्ज मुकदमा कराने वाले पर प्राथमिकी दर्ज करते हुए निष्पक्ष जांच हो. इसके अलावे
इंदिरा आवास आदि मुद्दों को भी इस आंदोलन में शामिल किया गया था.
आलमनगर के सभी वरीय अधिकारियों
की भी बात ये नहीं मान रहे थे, मानो ये जो कह रहे थे वही सही, बाकी सब गलत. पर आम
लोगों को दिन भर तबाह करने वाले इन मुट्ठी भर लोगों को गिरफ्तार करना पुलिस
प्रशासन जरूरी नहीं समझती.
आम लोगों में जाम से भारी आक्रोश: जरूरी काम से जा रहे लोगों
के जाम में फंस जाने भारी आक्रोश देखा गया इस बाबत भागीपुर निवासी संजय झा का कहना
था कि वे प्रायागिक परीक्षा दिलाने जा रहे थे परन्तु जाम के कारण नहीं जा पाए. दूसरी
तरफ बच्चों एवं महिलाओं को इस जाम की वजह से पांच किलोमीटर पैदल चलना पड़ा. स्थानीय
लोग ऑटो चालक पर उल्टा आरोप लगते हैं. कहते हैं ये मनमाना किराया वसूल करते हैं. इस
बाबत टॉल टैक्स संवेदक आलमनगर बिजेन्द्र कुमार
सिंह कहते हैं कि छोटे वाहनों द्वारा मनमाने तरीके से यात्रियों को बिठाया जाता है
और दबंग ऑटो चालकों के द्वारा बार-बार बिना नम्बर के हीं यात्री को लेकर चले जाने से
पहले से नम्बर मे लगे हुए ऑटो चालकों को मौका नहीं मिलता है, जिससे टॉल टैक्स संवेदक
को आर्थिक क्षति उठानी होती है.
जाहिर
है, जाम की राजनीति पर यदि प्रशासन सख्त नहीं होती है तो बीमारों की जान जा सकती
है और अत्यंत आवश्यक कार्य से निकले लोगों को आर्थिक और मानसिक अपूरणीय क्षति
पहुँच सकती है. और केजरीवाल के नारे चुरा पोस्टर छपवा कर आम लोगों को परेशान करने
वाले इन जामप्रिय लोगों को इससे शायद ही कोई फर्क पड़ेगा, क्योंकि इन्हें तो सिर्फ
अपनी जायज-नाजायज मांगों को मनवा कर राजनीति की रोटी सेंकनी है. (नि० सं०)
फिर चक्का जाम: मुट्ठी भर मानसिक दिवालिया लोगों के सामने प्रशासन क्यों है लाचार?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 13, 2015
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