
बचपन
में एक कहानी सुनी थी कि एक व्यक्ति ने दूसरे से कह दिया कि कौआ तुम्हारा कान लेकर
भाग गया. और फिर दूसरा कौआ के पीछे दौड़ने लगा और उसके पीछे कई लोग. जब किसी तीसरे
ने कहा कि तुम्हारा कान तो तुम्हारे पास है तो फिर कान के लिए कौए के पीछे क्यों
दौड़ रहे हो? तब जाकर दूसरे को बात समझ में आई कि पहले अपना सामान देखना चाहिए, तब किसी
के पीछे दौडें.
ताजा
विवाद भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के कथित वेबसाईट (bnmu.in) से जुड़ा है और इसी पर हायतौबा
मचा दी गई.
आइये देखें क्या कहती है मधेपुरा
टाइम्स की पड़ताल?:
1. दरअसल मंडल विश्वविद्यालय की जिस वेबसाईट (bnmu.in) को कुछ लोगों के द्वारा ऑफिशियल वेबसाईट कहा जा रहा है वो बीएनएमयू की ऑफिशियल
वेबसाईट है ही नहीं. वेबसाईट के ‘डिस्क्लेमर’ में इस आशय की सूचना
दे दी गई है कि ये ऑफिशियल वेबसाईट नहीं है. इस पर विभिन्न स्रोतों से
जानकारी लेकर पाठकों तक पहुंचाई जा रही है. गलत सूचना के लिए वेबसाईट जिम्मेदार
नहीं होगा.
2. जानें
क्या है मंडल विश्वविद्यालय का ऑफिशियल वेबसाईट: वर्तमान में भूपेन्द्र नारायण मंडल
विश्वविद्यालय का ऑफिशियल वेबसाईट www.bnmuniversity.com है, जिसकी पुष्टि विश्वविद्यालय के वीसी डा०
विनोद कुमार भी करते हैं. इस पर मंडल विश्वविद्यालय से सम्बंधित सूचना आधिकारिक
तौर पर प्रकाशित की जाती है.
3. क्या
हो सकती है कन्फ्यूजन की वजह?: दरअसल
bnmu.in पहले
मंडल विश्वविद्यालय का ऑफिशियल वेबसाईट हुआ करता था जिसे कोसी आईटी वेंचर्स (www.webx99.com/) के द्वारा चलाया जाता था. यहाँ हम पाठकों को समझाना
चाहेंगे कि किसी भी डोमेन नेम (जैसे bnmu.in ) के खाली रहने पर कोई भी व्यक्ति या संस्था
खरीद सकता है और इसे समय-समय पर रिन्वूअल भी कराना होता है. बीएनएमयू के पूर्व के
डोमेन bnmu.in को रिन्वूअल कराने और कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार वेबसाईट के मेन्टेनेन्स के लिए
कोसी आईटी वेंचर्स विश्वविद्यालय के अधिकारियों को सूचित किया करता था और स्वीकृति
मिलने पर इसे बहाल रखा जाता था. विगत वर्षों में कम से कम दो बार समय पर स्वीकृति
नहीं मिलने पर यह वेबसाईट अस्थायी तौर पर बंद भी हुआ था जिसपर मधेपुरा टाइम्स ने
खबर भी छापी थी. पढ़ें: मंडल
विश्वविद्यालय का वेबसाईट फिर हुआ खल्लास! पर बाद में विश्वविद्यालय ने इसे
फिर से पुनर्जीवित कर लिया था. (क्रमश:)
बीएनएमयू वेबसाइट मामला (भाग-1): बात का बनाया बतंगड: जानिए सच क्या है???
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 16, 2014
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अगर इस बात पर गौर करें तो :
ReplyDelete१. bnmu,in website बी.न.एम्.यु की अधिकारिक वेबसाईट थी.. जिसे युनिवर्सिटी ने पहले टेंडर दी थी..... तो टेंडर क्या बस कुछ समय के वेबसाइट बनाने के लिए हुआ था.. और अगर सिमित समय के लिए हुआ था और नाम परिवर्तित हुआ तो इसकी जानकारी क्या मीडिया में कभी दी गयी..
२. क्या टेंडर ख़त्म होने के बाद पुराने कंपनी को वह वेबसाइट बंद नहीं करनी चाहिए थी.. डोमेन बंद होने के बाद कोई भी लोग उस डोमेन को खरीद सकता हैं यह बात तो सभी जानते हैं मगर जिस कंपनी को इस बार टेंडर मिला ही नहीं उसका फिर से वही डोमेन खरीदने का क्या मकसद हो सकता हैं?
३. पेपर में खबर आने के बाद bnmu,in ने अपने पेज में तुरंत बदलाव किया. यह बदलाव जब टेंडर नहीं मिला तो ही क्यू नहीं किया गया? नहीं बदलने के सूरत में युनिवर्सिटी ने क्या करवाई की?
४. नए अधिकारिक वेबसाईट की सूचना क्या कभी छात्रों के पास पहुंची?
५. डोमेन की कीमत दस साल के लिए ख़रीदा जाए तो महज दस हजार का खर्च आयेगा, युनिवर्सिटी लाखो रूपए का टेंडर इसके नाम पर करती हैं तो डोमेन एक वर्ष का लेने का क्या मतलब? क्या इसे कामधेनु गाय समझ कर जब मन आया दुहते हैं?
६. रेनुवल के नाम पर लाखो का खेल का जिम्मेदार अज्ञानता हैं या साजिश यह तो विभागीय लोग ही बस बतला सकते हैं.
७. नए वेबसाइट का टेंडर किस किस मिडिया मे प्रकाशित किया गया था?
ऐसे बहुत सी बाते हैं तो पुर्णतः जाँच का विषय हैं... युनिवर्सिटी प्रशासन को बदले की भावना से सोचे बिना मंथन करना चाहिए और अपने गलती को स्वीकार करते हुए आगे फिर ऐसी गलती न हो इसपर काम करना चाहिए.