डॉक्टर के रूप में भगवान थे डॉ० अर्जुन प्रसाद सिंह (भाग-2): आजादी का वर्ष 1947 रहा निर्णायक और मुफ्त इलाज करने वाले बने इलाके के पहले एमबीबीएस डॉक्टर
‘यदि सचमुच डॉक्टर भगवान का रूप होते हैं तो
यकीन मानिए डॉ० अर्जुन प्रसाद सिंह में भगवान का रूप दिखता था’ के पहले अंक में हमने
पढ़ा कि 20 मार्च 1920 को जन्मे महान चिकित्सक अर्जुन प्रसाद सिंह कोसी के पहले
एमबीबीएस थे. प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज, पटना से डिग्री हासिल करने के बाद वर्ष
1947 में उन्होंने किसी भी बड़े शहर में क्लिनिक खोलकर रूपये कमाने की बजाय अपने
जिले के लोगों के स्वास्थ्य के प्रति अपनी चिंता जाहिर की और मधेपुरा में ही रहकर
लोगों को मुफ्त देखने का फैसला लिया.
वर्ष
1947 डॉ० अर्जुन प्रसाद सिंह के लिए कई मायने में बदलाव का वर्ष रहा. पिता अम्बिका प्रसाद सिंह जहाँ आजादी की लड़ाई में सक्रिय
भागीदारी निभा रहे थे वहीँ इसी वर्ष 13 जून 1947 को अर्जुन प्रसाद सिंह की शादी
शेखोपुर, समस्तीपुर में सुनीता देवी से संपन्न हुई. एक तरफ जहाँ देश को आजादी
मिलने की खुशी थी वहीँ मरीजों को मुफ्त देखने के फैसले को परिवार की सहमति कहाँ तक
मिलती, ये संशय में था. पर जहाँ देश की आजादी के लिए जान की बाजी लगाने का
हौसला
रखने वाले पिता को पुत्र के समाजसेवा के फैसले पर गर्व हुआ वहीँ धर्मपत्नी सुनीता
देवी ने भी डॉ० अर्जुन प्रसाद सिंह के इस फैसले को सर आँखों पर लिया. और यहीं से
मरीजों को मुफ्त देखने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह वर्ष 1985 तक चला. कहते हैं कि वर्ष
1985 में मधेपुरा में करीब दर्जन भर डॉक्टर आ चुके थे और उनके लिए पेशा चलाना टेढ़ी
खीर साबित हो रही थी क्योंकि अर्जुन बाबू जैसे महान और अनुभवी चिकित्सक अभी भी
रोगियों को मुफ्त में देख रहे थे. फिर कहते हैं कि बाकी चिकित्सकों की ओर से डॉ०
अर्जुन प्रसाद सिंह से अनुरोध हुआ कि कुछ भी फीस रखें ताकि लोग उनलोगों पर अंगुली
न उठावें. इसके बाद डॉ० अर्जुन प्रसाद सिंह ने पांच रूपये फीस रखी जहाँ अन्य
डॉक्टरों की फीस दस रूपये के आसपास थी.

पर
सिर्फ मधेपुरा में ही रहकर प्रैक्टिस करना काफी नहीं था, उस समय जिले में आवागमन
की सुविधा काफी बदहाल थी और उन्हें जानकारी मिल रही थी कि किसी किसी गाँव से शय्या
पर पड़े रोगी मधेपुरा तक आने में सक्षम नहीं थे. और फिर मोटरसाइकिल और ऑटोमोबाइल के
शौक़ीन डॉ० अर्जुन प्रसाद सिंह मोटरसाइकिल से बीमार को देखने गाँव-गाँव जाने लगे. बताते
हैं कि उस समय धूप से बचने के लिए ये हैट का भी इस्तेमाल करते थे. इसी बीच जब
उन्होंने देखा कि कुछ रोगियों को लगातार देख-भाल की जरूरत है तो मधेपुरा के ही
जयपालपट्टी में उन्होंने रोगियों के रहने की भी व्यवस्था कर डाली.
बीमारी
पर डॉ० अर्जुन प्रसाद सिंह की पकड़ अत्यंत ही गहरी थी. बिना टेस्ट के अचूक इलाज
करने की कला में माहिर इस चिकित्सक के मधेपुरा स्थित क्लिनिक में भी सिर्फ तीन
यंत्र, स्टेथोस्कोप (आला), रक्तचाप मापने का यंत्र और वजन मापने के यंत्र ही रखे
गए थे. रोगियों के पेट, जीभ और आंखे देखकर ही ये बता देना कि क्या बीमारी है, किसी
और के वश की बात भी नहीं थी. शायद यही वजह थी कि यदि इस इलाके का कोई रोगी यदि
पटना के महान चिकित्सक डा० शिव नारायण सिंह के पास पहुँचता था तो वे पूछ बैठते थे
कि मधेपुरा में अर्जुन ने प्रैक्टिस करना छोड़ दिया है क्या ??? (क्रमश:..)
(अगले अंक में: ‘सिर्फ चिकित्सा के क्षेत्र में ही नहीं, शिक्षा के क्षेत्र
में भी सुधार के लिए प्रयासरत थे कोसी के भगवान रुपी डॉ० अर्जुन प्रसाद सिंह’)
(वि० सं०)
डॉक्टर के रूप में भगवान थे डॉ० अर्जुन प्रसाद सिंह (भाग-2): आजादी का वर्ष 1947 रहा निर्णायक और मुफ्त इलाज करने वाले बने इलाके के पहले एमबीबीएस डॉक्टर
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
October 11, 2014
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