लाश की राजनीति के पांच अध्याय

                       पहला अध्याय 

रात के दस बजे का सन्नाटा. आलमनगर के खावन पंडितजी बासा में कोसी की सहायक नदी के घाट पर अचानक चीख-पुकार मच जाती है. कुछ ही देर के बाद गाँव भर में यह खबर जंगल के
आग की तरह फ़ैल जाती है कि नदी में एक नाव पलट गई है और कई मारे गए. करीब एक घंटे के बाद पता चलता है कि आठ बच्चों सहित नौ लोग मर गए, एक लापता है. प्रशासन को खबर मिलती है और सभी तेजी से घटनास्थल की ओर कूच कर जाते हैं और वहाँ पहुँच कर सुशासन सरकार की योजना के तहत पहले 1500/-रू० कबीर अंत्येष्टी के तहत फिर आपदा कोष से प्रति लाश 1.5 लाख रूपये दिलाने की बात कहते हैं.
      घटना स्थल पर जल्दी पहुँच गए हैं, मुआवजे की घोषणा भी कर दिए. इसे कहते हैं सुशासन का प्रशासन. पुल कबतक बनेगा और गरीब कब इस भयावह मौतों से निजात पा सकेगी, इस पर कोई निष्कर्ष नहीं. अब चलिए, जो लेट से आयेंगे वो जानेंगे, हम तो जीत गए अब दूसरा काम भी देखना है . (प्रथम अध्याय समाप्त)

                              दूसरा अध्याय 

पोस्टमार्टम के बाद दस लाशें गाँव आती है जिनमें नौ मासूमों की है. लाश को देखकर ग्रामीणों का कलेजा मुंह को आ रहा है. शरद भी इलाके में हैं. मंत्री जी को तो पुल बनाने को कहते-कहते हम थेथर हो गए हैं. देखिये शरद बाबू क्या हुआ, नरेंद्र बाबू, कल ही तो विपिन, सपना, खुशबू सब कैसे खेल रहे थे, अभी सफ़ेद कपड़ों में उनकी लाशें देखी नहीं जा रही है. अब तो हम जब तक शरद जी और नरेंद्र जी नहीं आयेंगे, लाश को नहीं जलाएंगे. कहते थे उनको, अब लाश दिखाकर कहेंगे, कि
देखिये पुल नहीं बनाये कम से कम सरकारी नाव तो यहाँ दे देते. हमरा बच्चा नहीं बचा.
      घंटों बीत गए पर नहीं आ रहे शरद बाबू और नरेंद्र बाबू. मासूमों की जान की कीमत ही क्या है, देश और राज्य के विकास का कोई दूसरा मुद्दा देख रहे होंगे. आखिर इन्हीं दोनों ने ही तो भारत और बिहार को चमकाया है. चिताएं जल उठती है और धुएं से भर जाता है मन-मस्तिष्क. कुछ भी सोचने में असमर्थ. (द्वितीय अध्याय समाप्त)

                             तीसरा अध्याय 

राष्ट्रीय नेता और मधेपुरा के उद्धारक सांसद शरद यादव और विधि एवं योजना मंत्री 40 घंटे बाद गाँव पहुँचते है. शरद जी ने कर्ता बने एक बच्चे को गोद में उठाया और फोटू खिंचवाया. फिर नेताओं ने जले लाश के गड्ढे में गेंदा की मालाएं फेंकी, मौन भी रखा. शरद ने कहा कि किसकी गलती से ये हादसा हुआ है इसकी चर्चा वाजिब नहीं है. फिर शरद यादव नाव में सवार होकर चले गए.
इसके बाद लोगों ने मंत्री जी को बुरी तरह घेरा. कहते थे न, नहीं न बनाये पुल. सरकारी नाव देने का कितना बार आश्वासन दिए थे आप, उहो नहीं दिए न....देखिये कितना बच्चा मर गया.
15 साल से हम आपको कह रहे हैं. मंत्री जी हम ही आपको जिताते हैं, ये अच्छा नहीं किया आपने हमारे साथ. क्या किये इस क्षेत्र के लिए, कुच्छो तो नहीं किये. क्यों आपको वोट दें, एं.....
वही त बात कर रहे थे. मुख्यमंत्री राहत कोष से हरेक परिवार को 50-50 हजार रूपया दिया जा रहा है. मंत्री जी का चेहरा गमगीन. काहे कहते हैं आपका बच्चा, मेरा बच्चा नहीं था क्या. सब काम होगा. सरकार में बहुते काम नियम से करना पड़ता है. ए...कहाँ गया ? पार्टी की ओर से हम प्रत्येक मृतक के परिजनों को पांच-पांच हजार रूपये अभी तुरंत दे रहे हैं. (तृतीय अध्याय समाप्त)

                              चौथा अध्याय 

मंत्री जी, सो सब तो ठीक है, पर हमारी समस्या का स्थायी समाधान करवाईए, नहीं तो इलाके के लोग ऐसे ही मरते रहेंगे. आप तो पटना में रहते हैं, हम कैसे रहते हैं आपको क्या पता ?
      अचानक मंत्री जी की नजर कैमरे की ओर जाती है. मीडिया वाले तब से रिकॉर्ड कर रहे हैं. मंत्री जी कहते हैं, सुनिए, आपलोग..ई हमारा आपसी मामला है. कैमरा बंद कीजिए. (चतुर्थ अध्याय समाप्त)

                              अंतिम अध्याय

विकास से कोसों दूर आलमनगर विधानसभा क्षेत्र के मंत्री करीब दो दशकों से इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. खुद के विकास के कहीं कोई कमी नहीं. पिछले साल फुलौत में नाव डूबने
से पांच लोग मरे थे, इस साल दस. अगले साल..? लाशें बिछ रही हैं इस इलाके में, पर.... ये मंत्री जी का आपसी मामला है. पार्टी (जदयू) ने एक लाश की कीमत लगाई पांच हजार रूपये. मधेपुरा समेत पूरे बिहार में चलती है और चलती रहेगी लाश की राजनीति.
लाश की राजनीति के पांच अध्याय लाश की राजनीति के पांच अध्याय Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on July 13, 2013 Rating: 5

1 comment:

  1. Sarkaar es aur jald se jaldthos kadam uthaye... marna to sbko hai ak din..... jb samay aata hai to mrne walo ko koi bcha nhi skta... ye bhagwan ki mrji se hoti hai... lekin bhagwan ne sarad ke kandhe pr rakh kr chala di goli....

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