|वि० सं०| 02 मई 2013|
जिले के अधिकाँश निजी स्कूल अब अपनी औकात दिखाने को
तत्पर नजर आ रहे हैं. भेडियाधसान बनाकर क्षमता से अधिक छात्रों का दाखिला उनका
एकमात्र मकसद रह गया है. जहाँ तक सुविधा और पढ़ाई की बात है तो ये आपको सिर्फ इनकी
डींगों में ही नजर आएगा. इस भीषण गर्मीं में कोमल बच्चों के सर पर लटके पंखे तक
नहीं चलाकर ये पैसे बचाने और बनाने की जुगत में हैं. एक-दो साल में अमीर बनने का
शायद आज कौन्वेंट्स चलाने के अलावे यदि कोई दूसरा धंधा बचा है तो वह है सीधा डकैती
करना. यही वजह है कि आज जिले में गली-गली में कौन्वेंट्स खुले हुए हैं और ये अब
अपने शिक्षक तक को ‘गार्जियन
पटियाओ’ अभियान में भिडाये हुए
हैं.
पहले
जहाँ किताबों में इनका कमीशन बंधा होता था और अभिभावक बुक स्टॉल पर जाकर किताबें
खरीदते थे वहीँ अब आपको अधिकाँश स्कूल अपने कैम्पस में ही किताबें बेचते नजर
आयेंगे. किताबों में इन्हें पब्लिकेशन से 60% तक का कमीशन दिया जा रहा है पर ये
आपको जिद करने पर दस-बीस रूपये की छूट दे सकते हैं. देश के कई शिक्षा माफिया अब प्रकाशक भी बनकर इनके साथ मिल-बाँट खा रहे हैं. पतली सी किताब को देखने में आकर्षक बना कर ये बाजार में उतार रहे हैं जिनकी कीमत देखकर अभिभावकों को अपने अभिभावक याद आ जाते हैं.
टीवी पर
रियलिटी शो देखकर आप ख्याली दुनियां में विचरण करने लगते हैं. अब निजी स्कूल भी
उसी तर्ज पर विद्यालय में साल भर में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम करवा कर आपके बच्चे
के चहुमुंखी विकास का दावा करते हैं. चलो बच्चे पढ़ने में तेज नहीं हुए तो क्या
हुआ, ठुमका तो लगा लेते हैं. एपीजे अब्दुल कलाम की तरह न बन सके तो क्या हुआ
गोविंदा तो बन ही जायेगा. और इन कार्यक्रमों के नाम पर और 'डेवेलपमेंट' के नाम पर साथ में ये आपकी जेबें भी क़तर रहे हैं.
जहाँ तक
इनके पास उपलब्ध अधिकाँश शिक्षकों की बात है तो ये टीईटी तक की परीक्षा में फेल
हुए मिलेंगे. हाँ, इनके स्टाइल और टीवी-सिनेमा से सीखे बात करने के लहजे से आप
प्रभावित हो सकते हैं और इस बात की तो गारंटी है ही कि पांच-दस दिनों में ही ये
आपके बच्चों को ‘थैंक्यू-सॉरी’ बोलना सिखा ही देंगे. जरा
बच्चों की कॉपी तो जांच कर देखिये, इन शिक्षकों द्वारा सही को गलत और गलत को सही
किया हुआ लिखित सबूत आपको नजर आ जायेगा.
सरकारी
स्कूलों में पढ़ाई का स्तर गिरा तो अभिभावकों की चिंता में अपना लाभ ढूँढने की
कोशिश में ये आपके घरों के बच्चों को अपने विद्यालयों तक खींच तो जरूर लेते हैं पर
स्कूल के अलावे भी यदि आपके बच्चों को ट्यूशन पढ़ने की आवश्यकता हो तो ये आसानी से
समझा जा सकता है कि ये कैसी शिक्षा परोस रहे हैं.
हालांकि
जिले भर में आधे दर्जन से भी कम निजी स्कूल अपनी मर्यादा और स्तर को जरूर बनाये
हुए दीखते हैं जहाँ बच्चों का भविष्य थोड़ा सुरक्षित नजर आता है.
जो भी
हो, अभिभावकों के पास कोई विकल्प भी तो मौजूद नहीं है. यानि शिक्षा के नाम पर
बच्चों-अभिभावकों का शोषण जारी रहेगा या दूसरी भाषा में शिक्षा के क्षेत्र में
अँधेरा कायम रहेगा.
कौन्वेंट्स बन रहे बनिया के बाप: गिरा रहे शिक्षा का स्तर
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
May 02, 2013
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