मिथिलांचल की नवविवाहिताओं के जीवन का सबसे
महत्वपूर्ण पर्व मधुश्रावणी आज संपन्न हो गया. सावन के महीने में कृष्णपक्ष के नाग
पंचमी से प्रारम्भ होकर शुक्लपक्ष के तृतीया तक होने वाला यह पर्व खासकर मिथिलांचल
के ब्राह्मणों और कुछ कायस्थ परिवारों के लिए काफी अहम है.
सामान्यतया
चौदह दिनों तक नवविवाहिताओं के द्वारा की जाने वाली इस पूजा में कोहवर घर में
मिट्टी के बने नाग-नागिन तथा हाथी स्थापित किये जाते हैं. पूजा अवधि तक नवविवाहिता
ससुराल से भार (सन्देश) ने आये अरवा अन्न ही ग्रहण करती है जिसमें अरवा चावल, चना,
फल, मिठाई, पूजन सामग्री आदि लड़की के माइके भेजा जाता है. कोहवर में स्थापित पूजन
सामग्री में कपड़े के पोटली में केंचुआ, मिट्टी के नाग-नागिन, हाथी के अलावे फूल,
मैना पत्ता आदि होते हैं. हाथी पर गौरी की पूजा होती है जिससे नवविवाहिता का भाग्य
प्रबल होता है. शायद इसी परंपरा से मिथिला में एक कहावत प्रचलित हुई है कि ‘हाथी पर गौर पूज कर आना’ यानी अत्यंत ही भाग्यशाली होना.
पूजा की
अवधि में प्रत्येक दिन ‘कथकहनी’ (कथावाचिका) महिला द्वारा मधुश्रावणी व्रत कथा सुनाया जाता
है जो शिव-पार्वती के गार्हस्थ जीवन पर आधारित है. अंतिम दिन टेमी दागने के साथ ही
पूजा संपन्न माना जाता है. टेमी रूई से बनी बाती होती है जिसे गर्म कर नवविवाहिता
के घुटने को आठ बार दागा जाता है और घुटने पर फफोले होना शुभ मानते हैं. पूजा के अंतिम
दिन नवविवाहिता के पति भी पूजा के दौरान उपस्थित रहते है.
विद्यापुरी,
मधेपुरा की नमिता मधुश्रावणी के विषय में कुछ और जानकारी देते हुए बताती हैं कि ये
पूजा पति के दीर्घायु होने के लिए की जाती है. नमिता को पूरा सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें.
टेमी दागने के साथ संपन्न हुआ मिथिलांचल में मधुश्रावणी
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
August 09, 2013
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