वे मंगलवार को 21वें अधिषद् अधिवेशन के अवसर पर अध्यक्षीय अभिभाषण एवं प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत कर रहे थे. कुलपति ने कहा कि 10 जनवरी, 1992 को इस विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी और गत 18 मार्च 2018 में इसे विभाजित कर पूर्णिया विश्वविद्यालय, पूर्णिया का गठन किया गया है और अब हमारे विश्वविद्यालय का कार्यक्षेत्र कोसी प्रमंडल के तीन जिलों मधेपुरा, सहरसा एवं सुपौल तक ही है. 1992 से अब तक विश्वविद्यालय की विकास यात्रा में काफी उतार-चढ़ाव आए हैं. मैंने इस विकास यात्रा को करीब से देखा है और आप सभी ने भी इसे देखा-सुना है. हमसे भी अधिक यह सदन इस विकास यात्रा का साक्षी है. इस विश्वविद्यालय को बेहतर से बेहतर बनाया जाए.
कुलपति ने कहा कि विश्वविद्यालय अधिनियम की पुस्तक ही हमारी गीता है, बाइबिल है और कुरान है. हम इसी पुस्तक को साक्षी मानकर नियम-परिनियम के अनुरूप कार्य करने हेतु प्रतिबद्ध हैं. तदनुसार सभी निर्णय सम्बन्धित समितियों एवं निकायों की सहमति से किए जा रहे हैं. हम वित्तीय स्वच्छता एवं प्रशासनिक पारदर्शिता के आदर्शों के अनुरूप कार्य कर रहे हैं.
अंत में कुलपति ने कहा कि विश्वविद्यालय के समग्र शैक्षणिक उन्नयन हेतु विद्यार्थियों की समस्याओं का त्वरित समाधान एवं उन्हें पुनः कक्षा तक लाना, शिक्षकों एवं कर्मचारियों की समस्याओं का शीघ्र निष्पादन और अभिभावकों का विश्वविद्यालय एवं इसकी कार्य-संस्कृति में विश्वास जगाना ही उनका सर्वोच्च लक्ष्य है. यही उनका दायित्व है और यही उनका कर्तव्य भी है. उन्होंने इसमें सबों से समवेत रूप से इसमें सहयोग का आग्रह किया. उन्होंने सभी पदाधिकारियों, शिक्षकों, कर्मचारियों एवं विद्यार्थियों से भी अपील की कि वे सभी अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को निभाएँ और अपने-अपने स्वधर्म का पालन करें. जो जहाँ हैं, वहाँ विश्वविद्यालय के बारे में सोचें और विश्वविद्यालय के हित में काम करें. हम सब मिलकर काम करेंगे, तो विश्वविद्यालय की यश, कीर्ति एवं ख्याति दूर-दूर तक जाएगी.

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