ये
दुनियां भी बड़ी अजीब है. कोई बड़ा काम करके भी नाम की चाहत नहीं रखता है तो कोई
बिना कुछ किये या कम कर के अधिक नाम की चाहत रखता है.
पर अखबारों में नाम की चाहत
में लोगों की आँखों में धूल झोकने वाले की पोल खुलनी तो जरूरी है. ये
घटना परसों की है और मधेपुरा के लोगों से जुड़ी है भले ही इस घटनाक्रम में बिहार के
मोकामा स्टेशन पर के एक आरपीएफ दारोगा जी भी है. अचानक सोशल मीडिया पर एक खबर शेयर
होने लगी कि मोकामा स्टेशन पर लोग एक आरपीएफ दरोगा की तारीफ़ करते नहीं थक रहे हैं,
इसने बचाई एक पिता और पुत्री की जान. आरपीएफ दारोगा का नाम अरविन्द राम बताया गया
और खबरों के मुताबिक़ जिनकी जान बचाई गई वे मधेपुरा के तरूण कुमार और उनकी बेटी
हैं. खबर में कहा गया कि ट्रेन पर चढ़ने के दौरान पिता-पुत्री गिर गए और ट्रेन में
लटके घसीटाते जा रहे थे कि प्लेटफॉर्म नंबर 1 पर ड्यूटी में लगे आरपीएफ के बहादुर
दारोगा अरविन्द कुमार राम ने देखा और दौड़कर दोनों को बाहर निकाल लिया और जान बचाई.
पर
यहाँ हमें हकीकत तो कुछ और ही मिली. तरूण कुमार मधेपुरा जिला मुख्यालय से हैं तो
हमने सोशल मीडिया दारोगा अरविन्द राम को हीरो बनाने वाली खबर पर तरूण से सबकुछ
जानना चाहा. और जो सच हमारे सामने आया उसने उस दरोगा जी की मुफ्त में बिना कुछ
किये नाम कमाने की कहानी खोल दी. तरूण ने बताया कि ट्रेन पर चढ़ने के दौरान वे जरूर
गिर गए पर ट्रेन के साथ घसीटाने की बात गलत है. गिरने के बाद वे खुद ही उठ गए.
मौके पर कुछ लोग आसपास आ गए तो दारोगा जी भी वहां पहुंचे और उन्हें डांटने भी लगे.
फिर उन्हें नाम पता लिखाने को कहा और जब कुछ लोग वहां फोटो लेने लगे तो दारोगा
अरविन्द राम ने भी उनके साथ फोटो खिंचवा ली. उसके बाद तरूण कुमार और उनकी
पुत्री दूसरी ट्रेन से घर मधेपुरा आ गए.
पर जाहिर
है कि उसके बाद दारोगा जी ने बिना कुछ किये हीरो बनने की पटकथा लिखी और कई अखबारों
ने उन्हें हीरो बना भी दिया. शायद इसलिए कि आजकल ऐसी खबर हर कोई पढ़ना चाहता है.
कुछ किये बिना जयजयकार करवाना कोई एस.आई. अरविन्द राम जैसे ‘हीरो’ से सीखे.
(Report:
R.K. Singh)
दारोगा जी ने बिना कुछ किये ही बहादुरी दिखाने की छपवाई खबर और बन गए हीरो
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
July 17, 2017
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