मधेपुरा की राजनीति में पानी का बुलबुला साबित हुए भाजपा प्रत्याशी विजय कुशवाहा: मधेपुरा चुनाव डायरी (98)
|वि० सं०|18 मई
2014|
मधेपुरा लोकसभा सीट के परिणाम आते ही भाजपा समर्थकों
में निराशा की लहर फ़ैल गई. पप्पू यादव (राजद) को सर्वाधिक 3,68,937, दूसरे स्थान पर शरद
यादव, (जदयू) 3,12,728 और तीसरे स्थान पर रहे भाजपा के विजय कुमार सिंह कुशवाहा को 2,52,534 मत मिले और इस तरह
पप्पू यादव ने शरद यादव को 56209 मतों से पराजित कर दिया.
जीत का
दावा करने वाले पर तीसरे स्थान से संतोष करने वाले भाजपा प्रत्याशी विजय कुशवाहा को
पप्पू यादव से 1,16,403 वोट कम प्राप्त हुए. मतलब साफ़ है मधेपुरा में नमो लहर का
असर नहीं दिखा और विजय कुशवाहा हार गए.
आइये जानते हैं क्या रही भाजपा के विजय कुशवाहा के
हार की वजह?
- कमजोर प्रत्याशी होना:
विजय कुमार सिंह कुशवाहा भाजपा के लिए एक कमजोर प्रत्याशी माने जाते रहे. उनके नाम की घोषणा के साथ ही मधेपुरा में पार्टी के नेता-कार्यकर्ता के अलावे आम जनता भी अचंभित थी. मधेपुरा के कई वोटर जो प्रत्याशी की घोषणा से पहलेनरेंद्र मोदी के कारण भाजपा के प्रति आकर्षित थे, प्रत्याशी की घोषणा के बाद उनका आकर्षण मधेपुरा में भाजपा के प्रति समाप्त होता दिखा.
- बाहरी के साथ मधेपुरा में उल्लेखनीय राजनैतिक पहचान न होना: विजय कुशवाहा को अबतक लोग जदयू की पूर्व मंत्री रेणु कुशवाहा के पति के रूप में जानते रहे हैं, उनकी अपनी छवि पहले भी मधेपुरा के लोगों को अकर्षित नहीं कर पा रही थी. वे भाजपा के लिए नया चेहरा थे और कई वोटरों ने भाजपा प्रत्याशी के रूप में कई स्थानीय चेहरों की उम्मीद लगा रखी थी. वोटरों को आकर्षित न कर पाने के पीछे एक वजह यह भी मानी जा रही है.
- चुनाव प्रचार की कमजोर रणनीति: चुनाव प्रचार में भी विजय कुशवाहा पप्पू यादव की तुलना में काफी पीछे रहे. पप्पू यादव जहाँ प्रत्याशी घोषित होने के पूर्व से ही चुनाव को ध्यान में रखकर दिन-रात एक कर लगभग पूरे क्षेत्र की जनता से बातें कर उन्हें भरोसा दिलाने का प्रयास किया वहीँ विजय कुशवाहा ने चुनाव प्रचार में कई इलाकों को छोड़ दिया और माना जाता है कि उनके भाषण भी लोगों का भरोसा जीतने में नाकामयाब रहे.
- भीतरघात भी बनी हार की वजह: पहले से टिकट मिलने या फिर अपने गुट के नेता को टिकट दिलाने की रणनीति बना रहे कई नेताओं को विजय कुशवाहा के अचानक से दूसरी पार्टी से आकर भाजपा का टिकट ले लेना गंवारा नहीं था. भाजपा के पुराने नेताओं ने अंत तक प्रत्याशी बदलने की अपनी आवाज भाजपा केराज्य तथा केन्द्रीय नेतृत्व तक पहुंचाने का प्रयास किया. बाद में भी वे एक मजबूरी के तहत ही विजय कुशवाहा के साथ अनमने ढंग से बने रहे. विश्वस्त सूत्र तो यहाँ तक बता रहे है कि कुछ असंतुष्ट भाजपा नेताओं ने अंदर ही अंदर अपने कार्यकर्ताओं को पप्पू यादव का समर्थन करने का निर्देश दे दिया था.
- पप्पू यादव का खड़ा होना: मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में पप्पू यादव की जहाँ अपनी खुद की लोकप्रियता थी वहीँ इस बार उन्हें राजद के कैडर वोटर का भी साथ मिला. अपनी मिहनत और सधे वादों से वे लोगों का दिल जीतने में कामयाब हुए तथा देश और राज्य में नमो की लहर होने के बावजूद भी उन्होंने मधेपुरा में नमो की लहर को रोककर उसे तीसरे स्थान पर धकेल दिया.
विजय कुशवाहा ने लहर के बावजूद मौका गँवा दिया और
भविष्य में यदि उन्हें सक्रिय राजनीति का मौका नहीं मिला तो करीब दो महीने तक
मधेपुरा की राजनीति में चर्चा में रहने वाले विजय कुशवाहा पानी के बुलबुले की तरह मधेपुरा
की राजनीति में क्षणभंगुर साबित होंगे.
मधेपुरा की राजनीति में पानी का बुलबुला साबित हुए भाजपा प्रत्याशी विजय कुशवाहा: मधेपुरा चुनाव डायरी (98)
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
May 18, 2014
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