|वि० सं०|11 अप्रैल 2014|
‘सपने में भी सच न बोलना,
वर्ना पकड़े
जाओगे,
भैया, लखनऊ-दिल्ली पहुंचो,
भैया, लखनऊ-दिल्ली पहुंचो,
मेवा-मिसरी
पाओगे!
माल मिलेगा रेत सको
माल मिलेगा रेत सको
यदि गला
मजूर-किसानों का,
हम मर-भुक्खों से क्या होगा,
हम मर-भुक्खों से क्या होगा,
चरण गहो श्रीमानों का!’
ये राजनीति भी हद दर्जे की नीची चीज होती है.
अतिमहत्वाकांक्षा राजनीति की किताब का पहला अध्याय है. सत्ता या पद के लिए अपनों
की पीठ में छुरा भोंकने में जो जितना आगे होते हैं, अधिकाँश मामलों में वही शख्स
राजनीति के खेल में ‘खिलाड़ियों
का खिलाड़ी’ होता
है. और राजनीति की किताब में दूसरा अध्याय अवसरवादिता का है. सिद्धांत पर चले तो
हाशिए पर चले
जाओगे. जब जैसी बहे बयार तब पीठ वैसी कीजिए के सिद्धांत पर चलकर ही
राजनीति में नाम और धन अर्जित किया जा सकता है. दलबदलूपना राजनीति की किताब में
अवसरवादिता अध्याय का उप-अध्याय है. और यदि आपकी उम्मीदों पर कोई पानी फेर दे तो
ये हो जाते हैं आग-बबूला और यहीं से शुरू होती है भितरघात की राजनीति.
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मधेपुरा
लोकसभा क्षेत्र में भी कई दलों में भितरघात की स्थिति बनती दिखाई देती है. कार्यकर्ता के
रूप में कई वर्षों से ‘खटते’ आ रहे थे तो जाहिर सी बात है एक-एक दिन के बुने सपने ने
बड़ा आकार ले लिया था. पर अचानक कई बड़ी छवि के नेता ने दल में एंट्री मारी तो मन
सशंकित हो चला था. लगातार मिहनत करके फसल हमने तैयार की और अब काटने वाले और आ गए
? पर चलो, सत्ता के शीर्ष पर बैठे राजनेताओं को तो ये पता है कि हमने लगातार
पार्टी को मजबूत करने में खून-पसीना एक किया, टिकट तो हमें ही मिलनी चाहिए. पर
अचानक सारे सपने चूर हो गए. ‘पैराशूट’ कैंडीडेट ने एंट्री मारी और राज्य तथा केन्द्रीय नेतृत्व
की राजनीति भी खुल कर सामने आ गई. क्या पैसे का खेल हुआ है या फिर कोई और राजनीति
है? कुछ समझ नहीं आ रहा है. सिर्फ इतना एहसास है कि ऊपर से नीचे तक सब.......
प्रत्याशी
ने मनाने का प्रयास भी किया पर मुंह अधिक फुला देखकर छोड़ दिया. नेता जी का गुस्सा
सातवें आसमान पर है. ये नए चेहरे किसी तरह हार जाएँ तब पार्टी नेतृत्व को पता चले
कि हमारे साथ विश्वासघात का क्या परिणाम निकलता है. नेताजी अब चुनाव प्रचार में
कोई ‘इंटेरेस्ट’ नहीं ले रहे हैं. दबी जुबान से
अपने समर्थकों को अपना दुखरा भी सुना रहे हैं. कई समर्थक भी चाहते हैं कि
प्रत्याशी औंधे मुंह गिरे. भितरघात हो रही
है और जाहिर है इसका खामियाजा किसी न किसी को भुगतना ही पड़ेगा.
जाहिर है
मधेपुरा लोक सभा चुनाव में भी भितरघात की
चर्चा दबे जुबान से हो रही है और आगामी 16 मई को मतगणना के बाद सबकुछ साफ़ हो जाएगा
कि क्या जीतते-जीतते हार गए प्रत्याशी की हार की वजह भितरघात थी ?
भितरघात की राजनीति दिखा सकती है प्रत्याशियों को हार का मुंह: मधेपुरा चुनाव डायरी (41)
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 11, 2014
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