जी हाँ, ये कोई
मजाक नही, बिलकुल सच है. मधेपुरा में
ऐसा ही होता है. बिजली विभाग की असीम कृपा से मधेपुरा में पांच-छ: घंटे लगातार
जाने के बाद तीन दिनों के बाद ही बिजली आती है.
आज सुबह में सात बजे के आसपास जैसे
ही मधेपुरा में बिजली आयी, लोग
अचानक खुशी के मारे चिल्ला उठे. ऐसी चिल्लाहट शायद इण्डिया के वर्ल्ड कप जीतने पर
ही सुने जा सकते हैं. बाजार में भी मानो सिर्फ और सिर्फ इसी बात की चर्चा हो रही हो.
बाजार में घूमने वाले सज्जन या तो घर की ओर ये देखने को दौड़ पड़े कि घर में जलता बल्ब
आज कैसा लग रहा है या फिर फोन से कन्फर्म हो लिए कि उनके घर रानी साहिबा (बिजली) पधारी
या नहीं ?
कुछ
दिनों पहले खबर पढ़ा था कि दुनियां के बढ़ते 25 शहरों में पटना भी. सोचने लगा कि हमारे मधेपुरा का कौन सा स्थान
होना चाहिए. मैं तो दावा करता हूँ दुनिया के सबसे पिछड़ते शहरों की अगर लिस्ट निकाली
जाय तो मधेपुरा नीचे से टॉप पर रहेगा. और इसे नीचे से टॉप बनाने में यहाँ के
राजनेताओं ने भी कोई कसर बाक़ी नहीं रखी है. लगता है कि यहाँ की जनता जल्द ही रेलवे
स्टेशन पर के उस बोर्ड को उखाड़ फेकेगी जिस पर लिखा है 'दौरम मधेपुरा'. एक नया बोर्ड लगना चाहिए
जिस पर लिखा हो, 'टापू मधेपुरा'.
बिहार
संभवत: दुनिया का एकलौता राज्य होगा जहाँ के मुख्यमंत्री पूरे राज्य के नहीं, सिर्फ राजधानी के
मुख्यमंत्री हैं. ये भी हो सकता है कि वे बाक़ी जिले के लिए मुख्यमंत्री हो, पर मधेपुरा को तो उन्होंने
विकास के हाशिए पर धकेल कर रखा है, इसमें
कोई संदेह नहीं. इसीलिये तो उनकी कृपा से मधेपुरा से पटना के लिए आवागमन की
व्यवस्था भी न के बराबर ही है. टापू में तब्दील मधेपुरा को संभवत: राज्य में
न्यूनतम सुविधा प्राप्त है. इलाके में एक कहावत प्रचलित है, 'मजबूरी का नाम म......
.....' .
मधेपुरा
की जनता भी शायद कुछ न कर पाने के लिए लाचार है. खैर.. जो भी हो... लिखते लिखते
फिर बिजली चली गयी है, न जाने
फिर कब तक के लिए. जय मधेपुरा, जय
बिहार.
(वि. सं.)
एक शहर...जहाँ बिजली आते ही लोग खुशी से नाचने-गाने लगते हैं
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
May 11, 2013
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