स्वतंत्रता दिवस आने ही वाला है ..या फिर ये कह लें आजकल के युवाओं के लिए कि ‘DRY DAY’ आने वाला है ... मदर डेयरी वाले को गली
-गली जाना होगा और ‘BLENDERS PRIDE’ वाले
का शटर डाउन .... १० बजे के आस -पास अपने रूम वापस आता हूँ ..लगभग ऐसा वाकया रोज़ देखता हूँ कि शराब के दूकान पर ऐसे भीड़ दौड़ती है जैसे बचपन में
हाइड्रोजन वाले गुब्बारे के पीछे हम भागते थे ..लगभग
९०% ऐसे
इंसान मिल जायेंगे इंडिया में जो मदिरापान करते हैं ..जमाना बदल रहा है ...
आज रूम पर लौटते वक़्त एक अजीब सा वाकया हुआ ..जैसे ही मोहल्ले के अन्दर पहुंचा भीड़ ज्यादा थी ..पुलिस भी थी ...कौतुहल पूर्वक वहां थोड़ी देर खड़ा हुआ ...एक युवक से पूछा कि क्या बात है भाई भीड़ क्यों है ? उसने कहा आत्महत्या कर लिया फलाने ने..बीवी है, एक बेटी है ७-८ साल की.... तभी आदमकद बोड़े में उस आदमी की लाश लायी गयी ...दिल दहल गया ..लाश तो देखी थी लेकिन इस कदर देखने का पहला अनुभव था
क्या कारण हो सकता है?
मानसिक शोषण ../शारीरिक शोषण ../पैसे
की तंगी ??
ज़िन्दगी में ऐसे दिन आते रहते हैं जब इंसान का मन करता है की आत्महत्या कर लें ..लेकिन क्या ये समस्या का हल है ??? माँ -बाप खून पसीने से सींचते हैं अपने बच्चों को ..अगर एक बार डांट दें तो क्या बच्चे की इज्ज़त लुट जाएगी ? अगर बीवी से छोटी मोटी लड़ाई हो गयी तो क्या कोई ऐसा कदम उठाएगा ...छोटी मोटी लड़ाई तो हर घर में होती है ........
किसी का बलात्कार होता है तो क्या उसके पास आत्महत्या का विकल्प बचता है ???? अगर किसी के पास पैसे नहीं है तो क्या वो आत्महत्या करके पैसे चुकता कर देगा अगर उसने किसी का क़र्ज़ लिया है तो ???? ये अंतिम विकल्प नहीं है ...
ज़रुरत है ‘पॉजिटिव’ सोचने की ..आप जियें या मरे उससे पब्लिक को कोई फर्क नहीं पड़ता ..२-४ दिन अफ़सोस जताएंगे ..लेकिन दर्द घरवाले को भुगतना पड़ता है .. जानेवाले का ग़म तो होता ही है साथ ही पुलिस का चक्कर भी लगाना पड़ता है .....मंथन कीजिये ..संघर्ष कीजिये ..कोई ज्यादा से ज्यादा सहानुभूति दे सकता है आज के ज़माने में ..रोटी नहीं ...अपने पर भरोसा करना सीखिये, सामजिक आवश्यकता भूल जाइये ..अपना और अपने परिवार का ख़याल रखिये .....बहुत बदनसीब ऐसे भी हैं कि रोड पर सो जाते हैं ..बहुत खुशनसीब ऐसे भी हैं कि ‘स्लीपवेल’ पर भी नींद नहीं आती ...
आज रूम पर लौटते वक़्त एक अजीब सा वाकया हुआ ..जैसे ही मोहल्ले के अन्दर पहुंचा भीड़ ज्यादा थी ..पुलिस भी थी ...कौतुहल पूर्वक वहां थोड़ी देर खड़ा हुआ ...एक युवक से पूछा कि क्या बात है भाई भीड़ क्यों है ? उसने कहा आत्महत्या कर लिया फलाने ने..बीवी है, एक बेटी है ७-८ साल की.... तभी आदमकद बोड़े में उस आदमी की लाश लायी गयी ...दिल दहल गया ..लाश तो देखी थी लेकिन इस कदर देखने का पहला अनुभव था
क्या कारण हो सकता है?

ज़िन्दगी में ऐसे दिन आते रहते हैं जब इंसान का मन करता है की आत्महत्या कर लें ..लेकिन क्या ये समस्या का हल है ??? माँ -बाप खून पसीने से सींचते हैं अपने बच्चों को ..अगर एक बार डांट दें तो क्या बच्चे की इज्ज़त लुट जाएगी ? अगर बीवी से छोटी मोटी लड़ाई हो गयी तो क्या कोई ऐसा कदम उठाएगा ...छोटी मोटी लड़ाई तो हर घर में होती है ........
किसी का बलात्कार होता है तो क्या उसके पास आत्महत्या का विकल्प बचता है ???? अगर किसी के पास पैसे नहीं है तो क्या वो आत्महत्या करके पैसे चुकता कर देगा अगर उसने किसी का क़र्ज़ लिया है तो ???? ये अंतिम विकल्प नहीं है ...
ज़रुरत है ‘पॉजिटिव’ सोचने की ..आप जियें या मरे उससे पब्लिक को कोई फर्क नहीं पड़ता ..२-४ दिन अफ़सोस जताएंगे ..लेकिन दर्द घरवाले को भुगतना पड़ता है .. जानेवाले का ग़म तो होता ही है साथ ही पुलिस का चक्कर भी लगाना पड़ता है .....मंथन कीजिये ..संघर्ष कीजिये ..कोई ज्यादा से ज्यादा सहानुभूति दे सकता है आज के ज़माने में ..रोटी नहीं ...अपने पर भरोसा करना सीखिये, सामजिक आवश्यकता भूल जाइये ..अपना और अपने परिवार का ख़याल रखिये .....बहुत बदनसीब ऐसे भी हैं कि रोड पर सो जाते हैं ..बहुत खुशनसीब ऐसे भी हैं कि ‘स्लीपवेल’ पर भी नींद नहीं आती ...
--साकेत आनन्द, सहरसा
आत्महत्या..अंतिम विकल्प नहीं
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
August 14, 2012
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