ये निश्चित तौर पर एक नृशंस हत्या का मामला था.छोटी सी बात का बतंगड बन जाना और फिर दो-दो ह्त्या होना निश्चित रूप से ऐसा समाज सभ्य समाज नही कहा जा सकता है.कहानी बड़ी ही मार्मिक है.मुरलीगंज के दिग्घी गाँव में बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे.गेंद बगल में खेल रहे सीनियर्स के पास जा पहुंची तो उन्होंने गेंद रख लिया और बच्चों को भला बुरा कहा.बात बड़ों तक पहुँचने पर मध्यस्थता करने पहुंचे बीरेन्द्र नारायण झा को गाँव के ही बिरेन यादव,सुभाष यादव आदि ने १३ मार्च २००४ को पीटकर अधमरा कर दिया.गंभीर हो चुके बीरेन्द्र
झा को इलाज के लिए बाहर जाना पड़ा.भाई धीरेन्द्र झा ने भाई होने का फर्ज निभाया और बीरेन्द्र की जान बचाने हेतु पैसे की
जुगाड़ में भाई के पास से गाँव वापस आये.फिर क्या था? तथाकथित जंगल राज में यादव बहुल गाँव में इस बेबस ब्राह्मण को फिर अभियुक्तों ने लाठी और समाठ से इतना पीटा कि इन्हें भी पुलिस की गाड़ी से ही मुरलीगंज
अस्पताल पहुंचाना पड़ गया.पुलिस ने घायल धीरेन्द्र ना० झा के बयान के आधार पर मामला दर्ज किया.पर धीरेन्द्र को उन वहशी लोगों ने इतनी गहरी चोट दी कि मधेपुरा पहुँचते धीरेन्द्र दुनियां को छोड़ चुके थे.उधर भाई बीरेन्द्र ने भी पैसे के अभाव में समुचित इलाज न हो पाने से दम तोड़ दिया.और बच्चों को क्या पता था कि गेंद के बदले उन्हें पिता की लाश मिलेगी.जिसने भी सुना दिग्घी के इस घटिया समाज को जम कर कोसा.
झा को इलाज के लिए बाहर जाना पड़ा.भाई धीरेन्द्र झा ने भाई होने का फर्ज निभाया और बीरेन्द्र की जान बचाने हेतु पैसे की
जुगाड़ में भाई के पास से गाँव वापस आये.फिर क्या था? तथाकथित जंगल राज में यादव बहुल गाँव में इस बेबस ब्राह्मण को फिर अभियुक्तों ने लाठी और समाठ से इतना पीटा कि इन्हें भी पुलिस की गाड़ी से ही मुरलीगंज
अस्पताल पहुंचाना पड़ गया.पुलिस ने घायल धीरेन्द्र ना० झा के बयान के आधार पर मामला दर्ज किया.पर धीरेन्द्र को उन वहशी लोगों ने इतनी गहरी चोट दी कि मधेपुरा पहुँचते धीरेन्द्र दुनियां को छोड़ चुके थे.उधर भाई बीरेन्द्र ने भी पैसे के अभाव में समुचित इलाज न हो पाने से दम तोड़ दिया.और बच्चों को क्या पता था कि गेंद के बदले उन्हें पिता की लाश मिलेगी.जिसने भी सुना दिग्घी के इस घटिया समाज को जम कर कोसा.
आज सात साल बाद जब मधेपुरा के जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री अमलेन्दु कुमार सिन्हा ने जब कांड के २६ अभियुक्तों को निर्णय सुनाने हेतु बुलाया तो एक सचेन यादव तो हाजरी देने के बाद भी पैखाना लगने का बहाना बनाकर न्यायालय में उपस्थित ही नही हुआ.विद्वान न्यायाधीश ने सिर्फ सलेंन को रिहा किया पर शेष बचे चौबीसों अभियुक्तों को कांड में दोषी करार दिया.सात साल बाद फैसला सुनने हजारों की संख्यां में पहुंचे लोगों में अधिकाँश ने कहा कि ये न्याय की जीत हुई है.क़ानून के मुताबिक़ ३१ मार्च को सजा के बिंदु पर सुनवाई होनी है.न्यायविदों के अनुसार हत्या के मामले में दोषसिद्ध होने पर कम से कम आजीवन कारावास होना तो तय ही है पर नृशंस हत्या में फांसी की सजा की संभावना से भी इनकार नही किया जा सकता.
जो भी हो,पर ऐसे जघन्य अपराध के लिए न्यायालय द्वारा अभियुक्तों को दोषी करार देने से ऐसे अपराधियों के हौसले निश्चित रूप से पस्त होंगे.
न्यायालय ने दोषी पाया तो लोगों ने कहा न्याय हुआ
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 28, 2011
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Sach kaha aapne.Aise faislo se logo ka vishwas kanoon ke prati badhta hai.
ReplyDeleteNyaypalika sarvopari hai.
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