रूद्र नारायण यादव/०६ मार्च २०११
बालक:, बालकौ, बालका ......की आवाज जब हमारे कानों तक पहुंची तो आश्चर्य हुआ कि इस ग्वालपाड़ा के दुधैला गाँव के पास इस सुनसान जगह पर पढ़ने की आवाज कहाँ से आ रही है.नजर चारों तरफ दौड़ाई और जो दृश्य हमने देखा वो और भी आश्चर्यचकित कर गया.
हमने देखा कि एक छोटा सा बच्चा चरती भैंस पर सवार है और संस्कृत व्याकरण की चीजें रट्टा मार रहा है.बच्चे की उम्र मुश्किल से ५-७ साल रही होगी.पूछने पर उसने बताया कि उसका नाम नीरज है और वह
ग्वालपाड़ा प्रखंड के अरार के पास के दुधैला गाँव का रहने वाला है.नीरज गाँव के ही दुधैला प्राथमिक विद्यालय ने पहली कक्षा का छात्र है.हमारी उत्सुकता और बढ़ गयी.हमने सवाल दागा कि पहली कक्षा में तो संस्कृत नही चलता है तो हमें गाँव के लोगों से पता चला कि वह अपनी किताब के अलावे ऊँची कक्षाओं की किताबें भी समय निकाल कर पढ़ लेता है.नीरज के विषय में और जानने हम पहुंचे दुधैला प्राथमिक विद्यालय.शिक्षिका बेबी कुमारी सिंह बताती हैं कि नीरज जैसी शिक्षा की ललक गाँव में पहले किसी ने नही देखा.नीरज के पिता नाई का काम करते हैं और गाँव में घूम-घूम कर बाल-दाढ़ी बनाते हैं.गरीबी में पल-बढ़ रहा नीरज अद्भुत प्रतिभा का धनी है.स्कूल में मिले होमवर्क को नीरज रोज ही सही-सही बना कर लाता है.अपनी कक्षा के अलावे वह ऊँची कक्षाओं के छात्रों को भी पढ़ाई में मदद करता है.पिता ने गरीबी की वजह से भैंस की जिम्मेवारी भी इस छोटे से कंधे पर डाल दी है.पर नीरज को इन सब से कोई परेशानी नहीं है.उसके लिए शांतिनिकेतन भैंस की पीठ ही है.आत्मविश्वास इतना कि वह कहता है कि उसे किसी और के मदद की कोई आवश्यकता नही है.स्कूल के भैया लोग ही खूब मानते हैं और मदद कर देते हैं.हो भी क्यों नही,ऐसी प्रतिभा की सफलता का अंश भला कौन नही बनना चाहेगा?
ग्वालपाड़ा प्रखंड के अरार के पास के दुधैला गाँव का रहने वाला है.नीरज गाँव के ही दुधैला प्राथमिक विद्यालय ने पहली कक्षा का छात्र है.हमारी उत्सुकता और बढ़ गयी.हमने सवाल दागा कि पहली कक्षा में तो संस्कृत नही चलता है तो हमें गाँव के लोगों से पता चला कि वह अपनी किताब के अलावे ऊँची कक्षाओं की किताबें भी समय निकाल कर पढ़ लेता है.नीरज के विषय में और जानने हम पहुंचे दुधैला प्राथमिक विद्यालय.शिक्षिका बेबी कुमारी सिंह बताती हैं कि नीरज जैसी शिक्षा की ललक गाँव में पहले किसी ने नही देखा.नीरज के पिता नाई का काम करते हैं और गाँव में घूम-घूम कर बाल-दाढ़ी बनाते हैं.गरीबी में पल-बढ़ रहा नीरज अद्भुत प्रतिभा का धनी है.स्कूल में मिले होमवर्क को नीरज रोज ही सही-सही बना कर लाता है.अपनी कक्षा के अलावे वह ऊँची कक्षाओं के छात्रों को भी पढ़ाई में मदद करता है.पिता ने गरीबी की वजह से भैंस की जिम्मेवारी भी इस छोटे से कंधे पर डाल दी है.पर नीरज को इन सब से कोई परेशानी नहीं है.उसके लिए शांतिनिकेतन भैंस की पीठ ही है.आत्मविश्वास इतना कि वह कहता है कि उसे किसी और के मदद की कोई आवश्यकता नही है.स्कूल के भैया लोग ही खूब मानते हैं और मदद कर देते हैं.हो भी क्यों नही,ऐसी प्रतिभा की सफलता का अंश भला कौन नही बनना चाहेगा?
बड़े होकर क्या बनना चाहोगे?पूछने पर नन्हा नीरज कहता है कि बड़ा होकर खूब बड़ा आदमी बनूँगा.
जहाँ भैंस पर भी बसती हैं प्रतिभाएं.
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 06, 2011
Rating:

Cool...Please convey my best wishes to Niraj.
ReplyDeleteThanks
-Dharmendra