यू० वी० के० कॉलेज करामा में चल रहे अंतर्राष्ट्रीय
सेमिनार के चौथे दिन परिचर्चा का विषय मानवाधिकार था. इस मौके पर आज माननीय उच्च
न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोपाल प्रसाद करामा पहुंचे.
मौके पर
उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति ने कहा कि वैसे तो मानव में सृष्टि
के निर्माण से ही मानवीय गुण समाहित है पर दुनियां में वर्ष 1789 में मानवाधिकार
पर चर्चा शुरू हुई और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से मानवाधिकार की चर्चा विस्तार
से होने लगी. अंत में 1948 में मानवाधिकार के प्रावधानों का प्रस्ताव लाया गया और
संयुक्त राष्ट्र ने इसे मान्यता दी. उन्होंने कहा कि मनुष्य को सामाजिक, पारिवारिक, शैक्षणिक तथा अन्य मूलभूत सुविधाओं
में समानता का अधिकार मिलना चाहिए. जहाँ तक मानवाधिकार को लागू करने की बात है तो
न्यायालय इसपर सख्त है और मानवाधिकार उल्लंघन के मामले की सुनवाई स्पीडी ट्राइल से
की जा रही है.
न्यायमूर्ति
ने कहा कि महिलाओं पर अत्याचार के लिए क़ानून बने हैं और महिलायें जागरूक भी हुई
हैं, परन्तु क़ानून का दुरूपयोग भी खूब हो रहा है. फर्जी मामलों के कारण न्यायालय
पर अनावश्यक बोझ है और न्यायाधीशों की संख्यां कम. इस वजह से न्यायालय पर अत्यधिक
लंबित मामलों का बोझ है.
आज के
व्याख्यान में पूर्व विधान पार्षद विभूति कवि, प्राचार्य माधवेन्द्र झा, डा०
कुशेश्वर झा, डा० अमरनाथ झा, डा० चित्रलेखा आदि उपस्थित थे और डा० चित्रलेखा ने
न्यायमूर्ति गोपाल प्रसाद को शॉल पहनाकर सम्मानित किया.
अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में मधेपुरा पहुंचे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
October 18, 2014
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