देश के विकास में बाधक ये ‘गुटखा-पीढ़ी’

३१ मई को इस बार भी विश्व तम्बाकू निषेध दिवस गुजर गया. मकसद के ही अनुसार इस दिन पूरी दुनियां में तम्बाकू के खतरों के प्रति लोगों को आगाह किया गया.खतरों को जानकर शायद कुछ लोग तम्बाकू का सेवन छोड़ दे,पर ये तय है कि युवाओं का एक बड़ा तबका, जिन्हें अब तक इससे बीमारियाँ नही हुई है, तम्बाकू का सेवन कम करने नहीं जा रहा है.गुटखे के रूप में तम्बाकू का फैशन आज पूरे भारत में युवाओं की एक बड़ी फ़ौज के बीच काफी लोकप्रिय है, जिसे हम गुटखा-पीढ़ी या गुटखा-जेनेरेशन कह सकते हैं. आखिर ये स्टाइल का मामला है.खास कर दो तरह के गुटखा पाउच को फाड़ कर स्टाइल से मुंह के हवाले करना इनके लिए काफी आनंददायक प्रक्रिया होती है.
             गुटखा-पीढ़ी गुटखा के सेवन के बाद उर्जावान महसूस करती है और बड़े से बड़ा काम करने का दावा करती है.इनके बड़े काम में मार-पीट करना, डायलॉगबाजी करना और फिल्मों की बातें करना मुख्य रूप से शामिल हैं.इनके दिन भर के काम पर यदि गौर फरमाया जाय तो हम
पाते हैं कि ये पृथ्वी पर भार-तुल्य हैं.चूंकि तम्बाकू के अंदर के करीब ४००० जहरीले तत्वों में से एक तत्व निकोटीन भी है जो रक्त में घुलनशील है और मनुष्य को नकली ताजगी देता है.रक्त में निकोटीन की मात्रा कम होने पर शरीर उसकी फिर मांग करता है और इस तरह से युवा इसके लत
के शिकार हो जाते हैं.शुरुआती दौर में भूख न लगना, अनिंद्रा, कब्ज, मुंह में छाले पड़ना आदि बीमारियाँ इन्हें बोनस में मिलती हैं और फिर कैंसर के रूप में अगली सौगात भी जल्द ही मिलने की सम्भावना बन जाती है.
     दरअसल भारत में गुटखा के आगमन ने यहाँ के युवाओं को कुछ ज्यादा ही प्रभावित कर दिया.लोकप्रियता में इसने सिगरेट को बहुत ही पीछे छोड़ दिया.यदि आप करीब पूरे भारत में खुले स्थान में किसी कूड़े के ढेर को देखें तो वहां आपको सैकड़ों की तादाद में गुटखा के खाली पाउच दिखेंगे.गुटखा-पीढ़ी इसके सेवन को शान के रूप में देखती है.देखा जाय तो ये भी इस बात को जानते हैं कि तम्बाकू के सेवन से कैंसर होता है, पर इनके (कु)तर्क के सामने आप चुप रहना ही बेहतर समझेंगे.ये आपकी आँखों में अपनी आँखें डाल कर कहेंगे, कौन सब दिन जीने के लिए आया है? फलां बाबू तो एक टूक सुपाड़ी तक नही खाते थे, उन्हें कैसे कैंसर हो गया? जिस दिन मरना होगा, उस दिन कोई नही रोक पायेगा.तम्बाकू से नहीं मरेंगे, एक्सिडेंट से मर जायेंगे.अरे साहब, खाते-पीते जाइए, ताकि कम से कम पछतावा नही रहेगा कि मौज-मस्ती नही किया.
      हाल में सुप्रीम कोर्ट ने प्लास्टिक पाउच में गुटखा की बिक्री पर प्रतिबन्ध भी लगा दिया पर ये लागू होता कहीं नही दिख रहा है.सार्वजनिक स्थान पर सिगरेट पीना भी दंडनीय हो चुका है,पर मानता कौन है. सिगरेट व गुटखा के असीमित खतरों के प्रति जानकारी होते हुए भी बहुतों युवाओं द्वारा इसका सेवन एक चिंताजनक बात है.यहाँ आवश्यकता है युवाओं द्वारा इस गंभीर मसले पर आत्मचिंतन की जिससे तम्बाकू रहित देश का निर्माण हो सके और गुटखा-पीढ़ी के युवाओं की निगेटिव एनर्जी को पॉजिटिव में बदलने की आवश्यकता है जिससे स्वस्थ राष्ट्र का सपना साकार हो सके.
(मधेपुरा टाइम्स ब्यूरो)
देश के विकास में बाधक ये ‘गुटखा-पीढ़ी’ देश के विकास में बाधक ये ‘गुटखा-पीढ़ी’ Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on June 01, 2011 Rating: 5

1 comment:

  1. BAT TO SAHI HAI SIR VADA KARTA HU AAJ SE APNE KISI DOST KO GUTKHA APNE SAMNE NAHI KHANE DUNGA

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