34वां स्थापना दिवस: गौरवशाली अतीत है उदाकिशुनगंज अनुमंडल का

अपने मजबूत व गौरवशाली अतीत के स्तंभ पर खड़े मधेपुरा जिले के उदाकिशुनगंज अनुमंडल का आज 34वां स्थापना दिवस है।

260 वर्ग मील में फैले इस उदाकिशुनगंज को 21 मई 1983 के दिन अनुमंडल का दर्जा प्राप्त हुआ था। छ: प्रखंडों का प्रतिनिधित्व करने वाले इस अनुमंडल अंतर्गत कुल 76 ग्राम पंचायत हैं।

16वीं सदी के छाया परगना के अधीन यह क्षेत्र घनघोर जंगल, कोसी नदी तथा उसकी छाड़न नदियों से आच्छादित हुआ करती थी। किवदंतियों के अनुसार, छोटा नागपुर से मात्र एक परिवार चलकर इस दुर्गम स्थान पर पहुँचा और यहीं का होकर रह गया। कहते हैं, उसी परिवार के एक हरीश नामक व्यक्ति ने घूम-घूमकर विभिन्न जातियों तथा संप्रदायों से जुड़े परिवारों को यहाँ एकत्रित कर बसाना शुरू किया और धीरे-धीरे यहाँ की आबादी ने नगर का रूप ले लिया।

सन् 1703 ई० में उदय सिंह नामक एक क्षत्रिय चंदेल राजपूत ने इस क्षेत्र पर अपना अधिकार जमाया और यहाँ के वासिंदो के लिये कुंआ, सराय, आवागमन तथा जान-माल की रक्षा आदि जैसी सुविधाओं को लोगों तक पहुँचाया। तत्पश्चात उदय सिंह के उत्तराधिकारियों ने शाह शुजा से अपने अधीनस्थ क्षेत्र के राजस्व का वैधानिक फरमान प्राप्त कर शासन का सूत्रधार बना। कहा यह भी जाता है कि उदय सिंह और किशुन सिंह दो भाइयों के नाम पर इसका नाम उदाकिशुनगंज पड़ा है.

उदाकिशुनगंज अनुमंडल क्षेत्र का अपनी ऐतिहासिक व सांस्कृतिक पहचान के अलावे आजादी में भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यहाँ के बाजा साह स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में 20 अगस्त 1942 को शहीद हुए थे। इनको पूरे कोसी क्षेत्र में पहला शहीद होने का गौरव प्राप्त है। वहीं अनुमंडल अंतर्गत सरसंडी ग्राम में बादशाह अकबर द्वारा निर्मित एक विशाल मस्जिद जो मिट्टी में दबी हुई है, अकबर कालीन गंधबरिया राजा बैरीसाल का किला,चंद्रगुप्त द्वितीय काल में स्थापित नयानगर का मां भगवती मंदिर,चंदेल शासकों द्वारा शाह आलमनगर में निर्मित जलाशय और दुर्ग, शाह आलमनगर के खुरहान में स्थित माँ डाकिनी का अतिप्राचीन मंदिर, शाह आलमनगर में राजा का ड्योढ़ी, चौसा में स्थित मुगल बादशाह रंगीला के समकालीन चरवाहाधाम पचरासी, चौसा के चंदा में स्थित अलीजान शाह का मकबरा, ग्वालपाड़ा के नौहर ग्राम में मिले अवशेष आदि अनगिनत साक्ष्य उदाकिशुनगंज अनुमंडल के समृद्ध इतिहास के प्रमाण आज भी मौजूद हैं।

कैसे मिला अनुमंडल का दर्जा?: विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारी के अनुसार अंग्रेजी हुकूमत के समय (सन्-1883) यहां मुंसिफ कोर्ट हुआ करता था। 80 वर्ष बाद 1962 में आयी भयंकर बाढ़ के कारण यहाँ का मुंसिफ कोर्ट सुपौल में स्थानांतरित कर दिया गया। 1970 में शिक्षाविद कुलानंद साह के नेतृत्व में उदाकिशुनगंज को अनुमंडल का दर्जा दिये जाने की मांग उठी। करीब दो दशक बाद उदाकिशुनगंज के तत्कालीन विधायक सिंहेश्वर मेहता, पूर्व मंत्री वीरेन्द्र सिंह तथा पूर्व मंत्री विधाकर कवि, एम एल सी वागेशवरी परसाद सिंह के सकारात्मक प्रयास के बदौलत ही इसे अनुमंडल का दर्जा प्राप्त हुआ। उपलब्ध जानकारी के अनुसार, 21 मई1983 ई० में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ० जगन्नाथ मिश्रा के करकमलों द्वारा एच.एस उच्च विद्यालय के मैदान में अनुमंडल का उद्घाटन किया गया। उस समय इस अनुमंडल का कार्यालय, एच. एस. उच्च विद्यालय के छात्रावास में ही बनाया गया था। यह करीब 1993 तक चला। इसके बाद से अबतक यह अनुमंडल कार्यालय सरकार द्वारा अधिकृत जमीन पर बने सामुदायिक भवन में ही चल रहा है। हालांकि पास ही स्थायी व भव्य अनुमंडल कार्यालय भवन बन कर तैयार हो चुका है जो अपने उद्घाटन की बाट जोह रहा है।

उदाकिशुनगंज अनुमंडल की कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ: अनुमंडल अंतर्गत एक मात्र बिहारीगंज रेलवे स्टेशन 1931 में बना। गृह आरक्षी विभाग के आदेश से 16 अक्टूबर 1914 को उदाकिशुनगंज में थाना बना। 1अप्रैल 1932 को उदाकिशुनगंज में प्रखंड कार्यालय शुरू हुआ। 1987 में यहाँ करीब तीन करोड़ की लागत से उपकारा का निर्माण करवाया गया। 29जनवरी 1995 को यहाँ अंचल कार्यालय का शुभारम्भ हुआ। इलाके की चिरप्रतीक्षित मांग अनुमंडल कोर्ट का शुभारम्भ यहाँ 7 सितम्बर 2014 को माननीय उच्च न्यायालय की चीफ जस्टिस रेखा एम दोशित के करकमलों द्वारा किया गया।

समस्याएं और चुनौतियां भी कम नहीं: उपर्युक्त वर्णित गौरवशाली इतिहास और सुनहरे अतीत के आंकड़ों के अलावे भी कुछ बातें उदाकिशुनगंज अनुमंडल के वर्तमान दर्द को भी रेखांकित करता है।

(रिपोर्ट: अरूण कुशवाहा)
34वां स्थापना दिवस: गौरवशाली अतीत है उदाकिशुनगंज अनुमंडल का 34वां स्थापना दिवस: गौरवशाली अतीत है उदाकिशुनगंज अनुमंडल का Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on May 21, 2017 Rating: 5
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