अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहिष्णुता पर मधेपुरा में खुला संवाद

2 से 4 अक्टूबर को मध्य प्रदेश के इंदौर में आयोजित भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के राष्ट्रीय सम्मेलन में राष्ट्रवाद के नाम पर हुए फ़ासिस्ट हमले को लेकर मधेपुरा इप्टा द्वारा एक खुला संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस संवाद कार्यक्रम में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहिष्णुता विषय पर चर्चा हुई. कार्यक्रम टीपी कालेज के गैलरी हाल में हुआ.
      कार्यक्रम के शुरुआत में विषय प्रवेश करते हुए इप्टा मधेपुरा के अध्यक्ष डॉ. नरेश कुमार ने कहा कि इप्टा महसूस करती है कि आज देश भक्ति की परिभाषा को बदलने का प्रयास हो रहा है.
कुछ वर्ग देश भक्ति और देश द्रोह के नाम पर समाज को शिक्षा, भूख, किसान-मजदूर की समस्या आदि जन-सरोकार के मुद्दे से भटकाने का काम कर रहा हैं. साहित्यकार और रंगकर्मी से अपेक्षा की जा रही है कि वे सत्ता के गुणगान में लगे रहे. इसी का परिणाम है कि आजदी की लड़ाई से लेकर आज तक भारत के जनता की पीड़ा को अभिव्यक्त करनेवाली, समाज की कुरूतियों के खिलाफ आवाज उठानेवाली इप्टा के कलाकारों पर राष्ट्रवाद के नाम पर हमले हो रहे है. खुले संवाद में इप्टा के प्रदेश सचिव सुभाष चन्द्र ने राष्ट्रीय सम्मेलन में हुए फ़ासिस्ट हमले का ब्यौरा दिया. इस कार्यक्रम  को आगे बढ़ाते हुए मीडियाकर्मी संदीप सांडिल्य, डॉ. अमिताभ कुमार और तुरबसु ने अतिथियों से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहिष्णुता से जुड़े कई सवाल किये जिसके जवाब में बीएनएमयू सिंडिकेट सदस्य और राजनीतिशास्त्र के शिक्षक डॉ. जवाहर पासवान ने कहा कि आज हमारे देश में व्यक्ति के पद और प्रतिष्ठा के हिसाब से अभिव्यक्ति की आज़ादी है. देश के सभी नागरिकों को आज भी सभी तरह की आज़ादी सामान रूप से नहीं मिली है.
            बीएनएमयू के पूर्व कुलसचिव एवं मार्क्सवादी विचारक प्रो. सचिन्द्र ने कहा कि भारतीय समाज में काफी विविधता है. इसलिए अभिव्यक्ति में भी विविधता होगी जिसे स्थान देने की जरुरत है. आज भारत में कोई हिटलर पैदा हो इसकी गुंजायश नहीं है, लेकिन कुछ लोग ऐसा चाहते हैं वो समाज हित में नहीं है. उन्होंने कहा कि मिलिट्री और लोकतांत्रिक संस्था सामानांतर नहीं हो सकती समाज के बेहतरी के लिए लोकतांत्रिक संस्था हमेशा ऊपर रहनी चाहिए. बीएनएमयू के उप कुलसचिव डॉ. नरेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि आज अभिव्यक्ति की आज़ादी के सामने सबसे बड़ा संकट वे लोग बने है जो इसकी सीमा से अवगत नहीं है. भारतीय संविधान हमें आज़ादी तो देता है लेकिन उस आज़ादी के प्रयोग के साथ हमारे कुछ कर्तव्य भी है और कुछ सीमाए भी.
       सोशल मीडिया से जुड़े मीडियाकर्मी राकेश सिंह ने सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर हो रहे दुरूपयोग की ओर इशारा किया. उन्होंने कहा की मेरी जानकारी में 50 हजार से अधिक वेबसाईट फर्जी हैं, जो समाज को बांटने और समाज में भ्रम फ़ैलाने का काम कर रहे हैं. उन्होंने चुनाव के दौरान हुए सोशल मीडिया के दुरूपयोग की ओर भी इशारा किया. भाकपा के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य प्रमोद प्रभाकर ने कहा कि आज़ादी के 70 वर्ष बाद छद्म राष्ट्रवादी तत्वों द्वारा अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमले हो रहे हैं. इसके सबसे बड़े शिकार, लेखक, साहित्यकार, कलाकार और प्रगतिशील आन्दोलनकारी हो रहे हैं. ये वे लोग हैं जो हत्या, लूट, बलात्कार जैसे संगीन अपराध करते समय भी भारत माता की जय और वन्दे मातरम बोलते हैं. ऐसे फासीवादी ताकतों के खिलाफ समाज को आगे आने की आवश्यकता है. इप्टा संरक्षक रमण कुमार ने कहा कि मनुवादी विचारकों ने समाज को कई भागों में बाँट दिया है ऐसे लोग अपने कट्टरपंथी विचार को समाज पर थोपना चाहते हैं और प्रगतिशील जनवादी आन्दोलन को समाप्त कर देना चाहते हैं. इसलिए विरोध के हार स्वर को देशद्रोह की संज्ञा दे दी जाती है. इप्टा के पूर्व अध्यक्ष और समाजशास्त्री डॉ. आलोक कुमार ने कहा कि समय-समय पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सत्ता पक्ष द्वारा हमले होते रहे हैं, लेकिन भारतीय जनमानस ऐसे हमलों का लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अधीन माकूल जवाब भी दे देती है.
          संवाद कार्यक्रम में सर्वसम्मति से वक्ताओं ने इप्टा के राष्ट्रीय सम्मेलन में राष्ट्रवाद के नाम पर हुए फ़ासिस्ट हमले का विरोध किया. वक्ताओं ने कहा कि 8-10 व्यक्ति या व्यक्ति समूह को देश भक्ति की ठेकेदारी नहीं दी जा सकती. कार्यक्रम में इप्टा के उपाध्यक्ष प्रभात रंजन भारती, संयुक्त सचिव संतोष कुमार, बबलू, अमरदीप, नितेश,अमित, मनीष, शिवशंकर आदि उपस्थित थे. कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद् ज्ञापन सचिव अंजलि कुमारी ने किया.
(नि.सं.)
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहिष्णुता पर मधेपुरा में खुला संवाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहिष्णुता पर मधेपुरा में खुला संवाद Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on October 23, 2016 Rating: 5

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