बेरहम बीएनएमयू: बात करने से ही बात बनती है, अधिकारी हुए तुम कहाँ गुम?

उफ़! ये मधेपुरा का मंडल विश्वविद्यालय. क्या सोचकर इसकी स्थापना की गई होगी और यहाँ क्या होने लगा? वर्ष 1992 में भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय की स्थापना के समय निश्चित रूप से इस इलाके के छात्रों को उच्च और बेहतर शिक्षा देना यहाँ के प्रशासन और शिक्षाविदों के जेहन में रहा होगा.
            पर एक तरफ पढ़ाई यहाँ मजाक बनकर रह गया तो आरोपों के मुताबिक़ बीएनएमयू घपलों-घोटालों का विश्वविद्यालय बनकर यहाँ की बेहतरी का सपना देखने वालों के गाल पर तमाचा है.
            स्थिति यह हुई कि अरबों रूपये बेकार जा रहे हैं और विश्वविद्यालय जहाँ कई शिक्षकों के टाइम पास की जगह बनी हुई है तो दूसरी तरफ ये छात्र राजनीति का अड्डा भी बन गया.  धरना-प्रदर्शन, पुतला दहन आज यहाँ की शोभा है तो आठ दिनों से आमरण अनशन पर बैठे छात्रों की सुधि लेना तक अधिकारी मुनासिब नहीं समझते. विश्वविद्यालय में धरना पर बैठे छात्रों की मांग कितनी जायज या नाजायज है और जो जायज हैं वो कबतक पूरी होगी, इस पर तो बातें करने से ही बात बनेगी, पर करीब तीन महीने से विश्वविद्यालय का सारा काम-काज लगभग ठप्प है इसपर चिंता अधिकारियों को होनी चाहिए और गतिरोध समाप्त करने के लिए उन्हें आगे आना चाहिए.
अनशन पर बैठे एनएसयूआई के मनीष और एआईएसएफ के हर्षवर्धन को सैलाइन के सहारे सुरक्षित रखा जा रहा है, इस बात को जिला मुख्यालय में बैठे और कुलपति भी भलीभांति जानते होंगे. छात्रों का आरोप है कि पिछले अनशन में कुलपति ने लिखित समझौता किया था जिस पर कोई अमल नहीं हुआ. लाचार वे विश्वविद्यालय बचाने के लिए दुबारा अनशन पर बैठ गए.
            उधर धरना पर बैठे अस्थायी कर्मचारियों में से एक की मौत होने के बाद उत्पन्न हुई स्थिति को सँभालने में जिला प्रशासन तक को हस्तक्षेप करना पड़ा. विश्वविद्यालय की प्रगति रूक जाने से हजारों छात्रों का भविष्य अचानक से दांव पर लग गया. हर कोई जानना चाहता है कि विश्वविद्यालय में कब से सबकुछ ठीक होगा. छात्र-छात्राएं परीक्षा, परिणाम और सत्र में विलम्ब होने से हताश हैं और इस बात को लेकर पछता रहे हैं कि बेकार ही इस यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया था. कॉलेजों को भी बंद कराया जा रहा है.
            हालात से चिंतित कुछ सिंडिकेट सदस्यों ने आपस में एक बैठक कर कुलपति से अभिषद की आपात बैठक आहूत करने की मांग की है. एमएलसी संजीव कुमार सिंह, विधायक रमेश ऋषिदेव, डॉ. जवाहर पासवान, डॉ. अजय कुमार आदि ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन के स्तर से विश्वविद्यालय में जारी गतिरोध को समाप्त करने के लिए कोई प्रयास न किया जाना दुखद है. जबकि बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 तथा राज्य सरकार द्वारा निर्गत पत्र के आलोक में अभिषद की बैठक प्रत्येक महीने नियमित रूप से आयोजित करने का निर्देश भी है.
            कुछ भी हो, सवाल भूखे-प्यासे आमरण अनशन पर बैठे दो छात्रों का है जिनकी स्थिति कभी भी नियंत्रण से बाहर हो सकती है और यदि ऐसा कुछ हुआ तो महान शिक्षाविद भूपेन्द्र नारायण मंडल के नाम पर रखे विश्वविद्यालय पर लगे दाग को मिटाना आसान नहीं होगा. वीसी साहब! बात करने से ही बात बनती है.
बेरहम बीएनएमयू: बात करने से ही बात बनती है, अधिकारी हुए तुम कहाँ गुम? बेरहम बीएनएमयू: बात करने से ही बात बनती है, अधिकारी हुए तुम कहाँ गुम? Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on September 27, 2016 Rating: 5
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