एक माह तक रोजा यानी बिना खाना-पीना के बुराईंयों से सिर्फ एक अल्लाह को साक्षी मान कर रूक जाना. वक्त की पाबंदी के साथ जिन्दगी में अच्छाईंयों को दाखिल करने की आदत बनाना ही सिर्फ रमजान के रोजा का हुक्म हैं. महिना का अंतिम जुम्मा अलविदा कहलाता है. जिस तरह खास मेहमान के जाते समय दर्द व गम का एहसास होता हैं, ठीक उसी तरह रमजान के रोजा को विदा कहते दर्द का एहसास होता हैं. रमजान का रोजा और खास नमाज तरावहि इस पाक महीने में पढ़ी जाती हैं. रमजान के पवित्र महिना में जकात और फितरा भी निकाला जाता हैं, जो कि गरीब और माजुर लोग को दिए जाते हैं.
अलविदा जुम्मे की नमाज अदा करने में रहीं नमाजियों की भीड़: रमजान का अंतिम जुम्मा संपन्न हो गया. मधेपुरा में जिले भर की मस्जिदें नमाजियों से खचाखच भरी रही. नमाजियों की संख्या अधिक होने के कारण उन्हें सड़कों पर भी नमाज अदा करनी पड़ी. रमजान के महीनों में हर मुसलमान जुम्मे की नमाज पढ़ता है. यही कारण हैं कि अन्य दिनों की तुलना में रमजान के महीनों में मस्जिदों में नमाजियों की संख्या बढ़ जाती है. जगह कम पड़ने की वजह से सड़क पर नमाज पढ़ने को बाध्य होना पड़ता हैं. नमाज को लेकर छोटे-छोटे बच्चे भी उत्साहित दिखे.
अलविदा जुम्मा: मस्जिदें रहीं खचाखच भरी, जगह कम पडी तो सडकों पर भी अदा करनी पड़ी नमाज
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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July 01, 2016
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