राजनीतिनामा (3): नीतीशजी, जवाब दें हमें...

माननीय नीतीश जी,
हम इस सूबे के युवा हैं और हमने पटना के गांधी मैदान में आपके दल के साथ अन्य दलों के महागठबंधन के द्वारा आयोजित महारैली में आपके भाषण को ध्यान से सुना. हममें से कई युवा पटना के गांधी मैदान नहीं पहुंच सके क्योंकि आपकी पार्टी या फिर आपके समर्थन में खड़ी दूसरी पार्टी हमें वहां नहीं ले गई क्योंकि उन्हें शक था कि हम आपको दगा न दे दें. बावजूद इसके हम लोगों ने आपकी बात टीवी पर सुनी.
माननीय मुख्यमंत्रीजी, आपने भाषण जरूर दिया और गांधी मैदान में आपके भाषण पर जमकर तालियां बजीं लेकिन कुछ सवाल हमारे जेहन में हैं और हम उनके जवाब की तलाश कर रहे हैं। इसके अलावा, और भी कई बातें हैं जो हम इस सूबे के युवा आपसे शेयर करना चाहते हैं.
      माननीय सीएम साहेब, पटना में आयोजित स्वाभिमान रैली में आपकी हताशा साफ झलक रही थी और आपके हावभाव बता रहे थे कि आपने चुनाव से पहले ही हार मान ली है. हमारी धरती चंद्रगुप्त मौर्य की धरती है लेकिन आपके भाषण के जो पुट थे, वे इस बात की तश्दीक कर रहे थे कि जब सेनापति मन से हार मान लेता है तो वह जनता को किस तरह संबोधित करता था और भाषण में किस तरह के विचार प्रदर्शित होते हैं.
     मसलन, आप पटना के गांधी मैदान से सूबे की जनता को संबोधित कर रहे थे। जाहिर सी बात है कि वहां आपके सूबे के लोग यानी हम या हमारे ही परिवार के लोग भारी भीड़ के तौर पर मौजूद थी. या फिर सरकार और मंत्रिमंडल में शामिल मंत्रियों और सत्ता पक्ष के विधायकों ने भाड़े पर लोगों को लाकर अपना वर्चस्व दिखाया और आपने देखा है कि लालू यादव ने मंत्रियों को इस रैली की तैयारी के लिए बधाई दी. क्या आपकी पार्टी सहित अन्य दलों के विधायकों और कार्यकर्ताओं का इस रैली को सफल बनाने में कोई योगदान नहीं था?  माननीय, आपको तो मालूम ही होगा कि जो मंत्री, विधायक या कार्यकर्ता अपने क्षेत्र से जितने अधिक लोगों को रैली में लाया, उसका दबदबा पार्टी और आने वाले विधानसभा चुनाव में होगा. हर छुटभैया नेता विधानसभा चुनाव लड़ने और प्रमुख दलों से टिकट पाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाता है. रैली में लोगों को भाड़े पर लाने-ले जाने के ऐवज में पार्टी का टिकट मिलना, यह बिहार की राजनीति का काला सच भी है.
और फिर उन भीड़ के सामने बतौर नेता और सूबे के मुख्यमंत्री के तौर पर आप बिहार के इतिहास की जानकारी दे रहे थे. माननीय, हमें अपना इतिहास पता है और यदि आपको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जवाब देना ही था तो किसी और मंच का इस्तेमाल करते. क्यों जनता के पैसे और समय की बर्बादी की?
नीतीश कुमार जी, आपने अपने भाषण में कहा कि मेरा डीएनए वही है जो बिहार का है. हमारा डीएनए काम करने वाला है, जुबान चलाने वाला नहीं है. आपने कहा कि हम जो कहते हैं, वह करते हैं. हमारे डीएनए को वह चुनौती दे रहे हैं, जिनका देश के स्वाधीनता संग्राम में कोई योगदान नहीं है. आपने कहा कि बिहार चाणक्य, आर्यभट्ट जैसे लोगों की धरती है. जब यूरोप के लोग जंगलों में भटक रहे थे, तब लोग नालंदा और विक्रमशिला में ज्ञान प्राप्त करने आते थे.
       माननीय मुख्यमंत्रीजी, कम से कम ऐसी बातों और इतिहास के पन्नों पर आप तो गर्व न करें तो अच्छा. सच कहें तो गांधी मैदान के मंच पर तो आपकी बदजुबानी चल रही थी. जनता के साथ स्वाभिमान की उन बातों को भी शेयर करनी चाहिए थी जिसमें आपका योगदान रहा हो. आप और आपके सहयोगी लालू यादव तो पिछले 25 वर्षों से बिहार पर राज कर रहे हैं और 25 वर्ष का समय किसी सूबे के लिए कम नहीं होता. आखिर आप और लालू दोनों तो जयप्रकाश नारायण (जेपी) के सानिध्य में राजनीति का ककहरा सीखा था. वहीं, आपके बौद्धिक गुरु राममनोहर लोहिया ने कहा भी था कि जिंदा कौम पांच साल तक इंतजार नहीं करती लेकिन बिहार के लोगों में धैर्य इतना था कि उन्होंने पांच नहीं पांच गुना यानी 25 वर्षों तक इंतजार किया और काम करने की पूरी छूट दी. बावजूद इसके न तो आप और आपके सहयोगी लालू यादव ने ऐसा कोई काम किया, जिसका नाम लेकर आप गांधी मैदान में आप गर्व करते. कम से कम मंच से यह बात तो बता देते कि आपके किस काम के लिए आने वाली पीढ़ी आपके मुख्यमंत्री काल को याद करती और हजारों वर्षों बाद गांधी मैदान के मंच से आपके जैसा कोई नेता कहता कि मेरा डीएनए वही है जो इस राज्य का है और जो लालू और नीतीश जैसे नेताओं का था. पूरे 25 वर्षों में यदि आप दोनों ने मिलकर यदि एक भी ऐसा काम किया होता तो उसकी मार्केटिंग करने से आप दोनों नहीं चूकते, यह हम युवा जानते हैं.
       माननीय नीतीश जी, हम युवा हैं और हमलोगों की पीढ़ी इस बात पर गर्व नहीं करती है हमारे पूर्वज क्या थे या फिर उन्होंने क्या काम किया था या फिर हमारा जन्म किस परिवार में हुआ था. हमें जाति-पाति से भी मतलब नहीं है. पिछले 25 वर्षों में हम इतने जागरूक हो चुके हैं कि हमें क्या करना है, हमें पता है. आप देख रहे हैं न कि गुजरात में ओबीसी को आरक्षण दिलाने के लिए हार्दिक पटेल ने कितनी बड़ी रैली की और वह राज्य किस तरह सुलग रहा है. आज हमारा हीरो हार्दिक पटेल है साहब. हमारा हीरो अरविंद केजरीवाल है, जिसने चाह लिया तो कांग्रेस के छक्के छुड़ा दिए. आपको तो केजरीवाल का भी समर्थन प्राप्त है और आप तो हमसे अधिक उन्हें जानते होंगे तो बताएं कि क्या उनका परिवार देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ा था. इतना ही नहीं, अरविंद केजरीवाल ने तो केंद्र सरकार के खिलाफ मुख्यमंत्री पद पर रहते अनशन किया और अपनी मांगों को लेकर केंद्र सरकार के नाकों में दम किए रहते हैं लेकिन पिछले 25 वर्षों में आप और लालू यादव ने कितनी बार बिहार को लेकर नाकों दम किया, इसका आंकड़ा क्या आप दे सकते हैं? बड़े स्वाभिमान के साथ आप कहते हैं कि केंद्र ने जो पैकेज दिया, उस पर तो हमारा हक था. चलिए, यदि आपकी बात में सच्चाई है तो आपने मोदी से पहले बिहार की जनता को यह बात क्यों नहीं बताई कि सरकार के पास कितना पैकेज बकाया है. आपने मोदी के भाषण से पहले क्यों नहीं जनता जनार्दन को बताया कि केंद्र सरकार उनके पैसे रिलीज नहीं कर रही है और फिर केंद्र में भाजपा सरकार बने एक वर्ष से अधिक हो गए हैं. अब जब मोदी ने वाहवाही लूटी तो आप सफाई दे रहे हैं.
महोदय, हम तो इस बात पर यकीन करते हैं कि हम क्या काम कर रहे हैं और हम नई पीढ़ी को क्या दे रहे हैं. हम अपने हाथों की श्रम शक्ति को समझते हैं न कि किसी की दया पर जीते हैं. आज इंटरनेट की दुनिया है. गूगल, फेसबुक और ट्विटर की दुनिया है. आज मोबाइल और स्मार्टफोन की दुनिया है और आपको मालूम ही होगा कि इसका निर्माण किसी वैज्ञानिक के बेटे ने नहीं किया है और न ही इनका निर्माण करने वाले आपकी जैसी सोच रखते हैं. इनका निर्माण करने वाले सभी हम जैसे युवा हैं और खेल-खेल में दुनिया के हाथों में ऐसा औजार थमा दिया, जिसकी मुरीद आप भी हैं.
      माननीय नीतीशजी, आप और आपके तमाम साथी अभी तक सोशल जस्टिस की बड़ी-बड़ी बातें करते थे लेकिन इस बात को आप उस वक्त क्यों भूल गए जब आपने कहा कि हमारे डीएनए को वह चुनौती दे रहे हैं, जिनका देश के स्वाधीनता संग्राम में कोई योगदान नहीं है. मुख्यमंत्रीजी, हम युवाओं ने भले ही सुना कि हमारे दादा-परदादा स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था या फिर हमारे गांव से कोई अंग्रेजों के डर से स्वतंत्रता आंदोलन में भाग नहीं लिया तो हम युवा आपसे जानना चाहते हैं कि क्या हमारी हैसियत अभी भी आपकी नजरों में दोयम दर्जे की है. हम युवा हैं और हम धर्म, जाति सहित तमाम भेदभाव सब भूलकर सूबे, देश और दुनिया के लिए मिलकर कुछ करना चाहते हैं. लेकिन आप हैं कि हमारे पूर्वजों ने ‘यह क्या’, ‘वह क्या’ जैसे जुमले कहकर हमारे उत्साह को कम कर रहे हैं और हमारे अस्तित्व और कार्यशैली को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं. हम युवाओं की दुनियां है और आप लोग आउटडेटेड हो चुके हैं. हमें भीख नहीं अपना अधिकार चाहिए. हमें स्वराज चाहिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
राजनीतिनामा (3): नीतीशजी, जवाब दें हमें... राजनीतिनामा (3): नीतीशजी, जवाब दें हमें... Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on August 31, 2015 Rating: 5

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