वादे हैं वादों का क्या?: चौसा के बिजलीरहित ग्रामीणों ने कहा 'बिजली नहीं तो वोट नहीं'

 "जो उलझ कर रह गई 
है फाइलों के जाल में
गाँव तक वो रोशनी 

आएगी कितने साल में"
सूबे के मुखिया नीतीश कुमार ने चौसा में वादा किया था कि 2014 तक हर गाँव में बिजली पहुंचा दूंगा. पर वादे हैं  वादों का क्या? चौसा प्रखंड के दर्जनों गाँव आज बिजली से मरहूम हैं. मुख्यमंत्री के वाडे के मुताबिक 2014 क्या, 2015 भी जाने को है और आज तक कई गाँव के  लोगों को बिजली महारानी के दर्शन  तक नहीं हुए हैं.
        पर अब जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है इन गांवों के लोगों में सरकार के प्रति आक्रोश बढ़ता जा रहा  है. आज चौसा पूर्वी पंचायत के अभिया टोला बसैठा के सैंकड़ों ग्रामीणों ने आखिर यह आह्वान कर दिया कि इस बार यदि बिजली और सड़क नहीं तो वोट नहीं.

क्यों है इतना आक्रोश?: ग्रामीण शम्भू मंडल,गोपाल मंडल,घनश्याम मंडल समेत कई दर्जन ग्रामीणों ने बताया कि वर्ष 2006 में हम 63 ग्रामीणो ने बिजली कनेक्शन के लिए रूपये जमा किये और 2009 में हम लोगों को बिजली कनेक्शन का रशीद भी दिया गया. उम्मीद की रोशनी दिखाई दी कि अब हमारे घर में बिजली आएगी, पर 6 वर्षों के बीत जाने  के बाद भी आज तक सरकार के द्वारा रौशनी नहीं पहुंचाई गई. यही नहीं, हमारे घर के सामने से गुजरने वाला सड़क भी पोरी तरह जर्जर हो चुका है. इस सड़क से भागलपुर, पुर्णियां, कटिहार आदि दर्जनों गाड़ी गुजरती है पर सड़क का हाल इतना बुरा है कि पता ही नहीं चलता है कि सड़क में गड्ढा है या गड्ढे में सड़क. ग्रामीणों ने कहा कि यहाँ के विधायक और बिहार सरकार के मंत्री नरेंद्र नारायण यादव सिर्फ भाषण में कहते हैं कि यह सड़क पास हो चुका है, जल्द ही कम चालू हो जायेगा.
       हाल बुरा चौसा प्रखंड के अन्य कई गांवों का भी है. चिरौरी पंचायत के चिरौरी, भवनपुरा बासा में भी लोग आठ साल पहले बिजली के उपभोक्ता बना गए पर इन गांवों में बिजली के तार तक नहीं पहुंचे है. बिजली कंजूमर लोग वोट बहिष्कार का मन बना रहे है.
वादे हैं वादों का क्या?: चौसा के बिजलीरहित ग्रामीणों ने कहा 'बिजली नहीं तो वोट नहीं' वादे हैं वादों का क्या?: चौसा के बिजलीरहित ग्रामीणों ने कहा 'बिजली नहीं तो वोट नहीं' Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on August 29, 2015 Rating: 5

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