क्या क्रोध के प्रतीक पौराणिक ऋषि दुर्वासा का तात्कालिक आश्रम था मधेपुरा में?

मधेपुरा जिले और प्रखंड के दूबियाही गांव में सतयुग, त्रैता एवं द्वापर तीनों युगों के एक प्रसिद्ध सिद्ध योगी महर्षि दुर्वासा का आश्रम था और द्वापर युग में बात बात पर क्रोधित हो जाने वाले महर्षि दुर्वासा यहीं से पुष्पक विमान से महाभारत का युद्ध में शामिल  होने जाते थे.
ऐसा मानना है दूबियाही गाँव के बूढ़े और बुजुर्गों का जिन्हें इस कहानी की जानकारी अपने स्वर्ग सिधार गए बुजुर्गों से मिली थी. कहते हैं कि इसलिए इस गांव का नाम दूबियाही रखा गया था. इस गांव से गुजरने वाली नदी में लोग अभी भी मछलियाँ नहीं मारते हैं. यही नहीं इस गांव में हिन्दू धार्मिक त्यौहारों में पशुओं की बलि भी नहीं प्रदान करते हैं और न ही यहां के मुसलमान कुर्बानी. जबकि गांव में हिन्दू तथा मुसलमान की काफी संख्यां है. दुर्वासा ऋषि का आश्रम अब भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं जहां स्थानीय लोग पूजा-अर्चना किया करते हैं.
गाँव के मुखिया पति अजीर बिहारी उर्फ देवराज अर्श, स्थानीय टुनटुन दास, डा० सुलेन्द्र आदि बताते हैं कि श्रद्धालु मानते हैं कि बराह-पुराण के मुताबिक यहीं से भगवान दुर्वासा ऋषि  महाभारत का युद्ध लड़ने जाते थे. गांव का नाम दुर्वासा के नाम पर ही दूबियाही रखा गया था.
हालांकि इससे पहले यमुना के किनारे मथुरा में दुर्वासाजी का अत्यन्त प्राचीन आश्रम होने की बात कही गई है जहाँ अब भी महर्षि दुर्वासा की सिद्ध तपस्या स्थली एवं तीनों युगों का प्रसिद्ध आश्रम है. पर यहाँ के लोगों का यह मानना है कि तात्कालिक रूप से महर्षि दुर्वासा ने कुछ समय मधेपुरा के दूबियाही में व्यतीत किया था.     
क्या क्रोध के प्रतीक पौराणिक ऋषि दुर्वासा का तात्कालिक आश्रम था मधेपुरा में? क्या क्रोध के प्रतीक पौराणिक ऋषि दुर्वासा का तात्कालिक आश्रम था मधेपुरा में? Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on January 23, 2015 Rating: 5

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