रविवार विशेष-कविता-वो सारे ज़ख़्म पुराने, बदन में लौट आए

वो सारे ज़ख़्म पुराने, बदन में लौट आए
गली से उनकी जो गुज़रे, थकन में लौट आए

हवा उड़ा के कहीं दूर ले गई जब भी
सफ़र तमाम किया और वतन में लौट आए

जो शहरे इश्क था, वो कुछ नहीं था, सहरा था
खुली जो आँख तो हम फिर से वन में लौट आए

बहार लूटी है मैंने कभी, कभी तुमने
बहाने अश्क़ भी हम ही चमन में लौट आए

ये किसने प्यार से बोसा रखा है माथे पर
कि रंग, ख़ुशबू, घटा, फूल, मन में लौट आए

गए जो ढूँढने खुशियाँ तो हार कर "श्रद्धा"
उदासियों की उसी अंजुमन में लौट आए
श्रद्धा जैन, सिंगापुर
रविवार विशेष-कविता-वो सारे ज़ख़्म पुराने, बदन में लौट आए रविवार विशेष-कविता-वो सारे ज़ख़्म पुराने, बदन में लौट आए Reviewed by Rakesh Singh on December 11, 2010 Rating: 5

6 comments:

  1. गए जो ढूँढने खुशियाँ तो हार कर "श्रद्धा"
    उदासियों की उसी अंजुमन में लौट आए
    बहुत ही गहरी अनुभूति श्रद्दा जी!

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  2. बहुत ख़ूब ! बहुत बढ़िया ... हमेशा की तरह !!

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  3. Rakesh ji gazal prakashit karne ke liye aapki aabhaari hun

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  4. Jab bhi dil me aapki khushi ki dua aayi hai ,
    Is dil ne sachi khushi payi hai,
    Darr lagta hai kahi chot na aaye aapke dil ko mere lafzon se,
    Kyuki aapki khushi me meri khushi samai hai......

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