मनोकामनापूर्ण स्थल है सिंघेश्वर



मधेपुरा जिला मुख्यालय से ८ किमी उत्तर में अवस्थित श्रृंगी ऋषि का स्थल सिंघेश्वर स्थान मंदिर का सम्पूर्ण देश में अलग ही महत्त्व है.सिंघेश्वर का यह मंदिर मयगिरी पर्वत पर अवस्थित है.द्वापर में भगवान् विष्णु द्वारा यहाँ मंदिर का निर्माण कराया गया था.देश का पहला धार्मिक स्थल है सिंघेश्वर जहाँ देवता द्वारा निर्मित मंदिर है.

यहाँ हर किसी की मनोकामना पूर्ण होती है,इसीलिए यह मनोकामना लिंग के रूप में भी जाना जाता है.यहाँ का मंदिर ४ हजार वर्ष पुराना है.वराह पुराण के अनुसार भगवान् शिव को ढूंढते हुए देवराज इंद्र के साथ विष्णु और ब्रह्मा यहाँ पहुंचे तो भगवान् शिव एक सुन्दर हिरन के रूप में विचरण करने लगे थे.
तीनों अन्तर्यामी देवताओं ने इस हिरन को देख कर ही समझ लिया कि ये ही भगवान् शंकर हैं और उस हिरन को पकड़ने  में सफल भी हुए.इंद्र ने हिरन के सिंग का अग्रभाग,ब्रम्हा ने मध्यभाग और विष्णु ने निम्नभाग  पकड़ा.एकाएक सिंग तीन भाग में टूट कर विभाजित हो गया.तीनो देवताओं के हाथ में सिंग का  एक-एक भाग रह गया  और हिरन लुप्त हो गया.तभी आकाशवाणी हुई कि अब शिव नहीं मिलेंगे.देवताओं ने अपने-अपने हाथ में आये सिंग के भाग को पाकर ही संतोष कर लिया और सिंग को जिस स्थान पर स्थापित किया वही वर्तमान में सिंघेश्वर है.इस प्रकार इसका सिंघेश्वर स्थान नाम सार्थक हुआ.
    सिंघेश्वर मंदिर में जो शिवलिंग है उसे किसी ने स्थापित  नहीं किया बल्कि शिवलिंग स्वयं अवतरित हुए हैं.स्वयं अवतार रहने एवं देवता द्वारा निर्मित मंदिर होने के कारण कोशी के उफान में भी मंदिर ज्यों का त्यों रह गया.अंतत: नदी को ही धारा बदलनी पडी जो नदी अब भी मंदिर से पूरब करीब २ किमी अलग हटकर बह रही है.
  राजा दशरथ को पुत्र की प्राप्ति नहीं हो रही थी तो उम्र के चौथे अवस्था में सिंघेश्वर आये और पुत्रेष्ठी यज्ञं किये तदोपरांत  राम,लक्ष्मण,भरत व शत्रुघ्न जैसे चार पुत्र की प्राप्ति हुई,यहाँ यज्ञं के दौरान सात पोखर भी राजा दशरथ द्वारा खुदवाए गए थे जो अब भी मौजूद है तथा उसी पोखर के नाम पर सतोखर नाम के गाँव की उत्पत्ति हुई है.यहाँ जो श्रद्धालु शुद्ध मन से मनोकामना लेकर आते है,उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है.
(2010 में जिले के ही एक व्यक्ति ने चीन की एक युवती से सिंघेश्वर मंदिर में शादी की.)   
सिंघेश्वर में प्रत्येक वर्ष शिवरात्री के अवसर पर सरकार द्वारा एक पखवारे का मेला भी लगाया जाता है जहाँ देश-विदेश के श्रद्धालु पूजा अर्चना करने आते है.झारखंड अलग होने के बाद सिंघेश्वर को बिहार का देवघर  भी कहा जाता है.यहाँ का मेला सरकार का सोनपुर के बाद दूसरा सबसे बड़ा मेला है.धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सिंघेश्वर मंदिर में होने वाली शादियाँ पवित्र व अटूट मानी जाती है.इसीलिये देश  के कोने-कोने से एवं पडोसी देश चीन और नेपाल के लोग यहाँ अपने पुत्र और पुत्री की शादी करने के लिए बारहों मास आते हैं.सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मंदिर में होने वाली शादी में लड़का पक्ष और लड़की पक्ष को अलग-अलग शुल्क देने पड़ते हैं,जिसके एवज में सिंघेश्वर न्यास परिषद् द्वारा रसीद दी जाती है जिसे न्यायालय भी शादी की वैधता का सबूत मानती है.बिहार सरकार सिंघेश्वर  को पर्यटन स्थल भी  घोषित कर चुकी है. यहाँ पर्यटन विभाग द्वारा एक सुसज्जित होटल भी बनवाया गया है जहाँ बाहर से आने वाले श्रद्धालु ठहरते है.बिहार में पटना महावीर मंदिर के बाद राजस्व प्राप्ति में सिंघेश्वर मंदिर का स्थान दूसरा है.सरकार सिंघेश्वर के विकास के लिए कटिबद्ध है.रूद्र नारायण यादव
सिंघेश्वर मंदिर से सम्बंधित वीडिओ देखने के लिए यहाँ क्लिक करें.
मनोकामनापूर्ण स्थल है सिंघेश्वर मनोकामनापूर्ण स्थल है सिंघेश्वर Reviewed by Rakesh Singh on April 18, 2010 Rating: 5

No comments:

Powered by Blogger.